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कोविड से उबरे मरीजों पर चिंता, थकान की मार

Last Updated- December 11, 2022 | 8:52 PM IST

कोविड के कारण मुंबई के एक व्यक्ति के हाथ की मांसपेशियां इस तरह हिलने लगीं कि उससे अपने हस्ताक्षर ही ठीक से नहीं हो पा रहे थे। सटीक हस्ताक्षर के बगैर बैंक में उसकी पहचान की पुष्टि होना मुश्किल था। ऐसे में उसे डॉक्टर के पास जाना पड़ा।  सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल के संक्रामक रोगों के सह-निदेशक ओएम श्रीवास्तव ने कहा, ‘ऐसे लोगों में से कुछ पहले की तरह कलम नहीं पकड़ सकते हैं। मुझे कई लोगों से यह अधिकृत करने का अनुरोध मिला है कि मैं इस व्यक्ति को वर्षों से जानता हूं और यह वही आदमी है।’
डॉक्टरों के मोटे अनुमानों के अनुसार लंबे समय तक के कोविड ने कम से कम 15 प्रतिशत लोगों पर असर डाला है, जिनके शरीर के लगभग सभी अंगों को वायरस ने प्रभावित किया है।

तंत्रिका संबंधी क्षति-थकान से अनिद्रा तक
कोविड के बाद के उपचार में देखा जा रहा है कि विशेषज्ञता वाले सभी डॉक्टरों को विभिन्न समस्याओं से निपटना पड़ रहा है, जिनमें सभी का संबंध एक सामान्य कारक से है-पहले हो चुका कोविड संक्रमण।
सीमा घोष (बदला हुआ नाम) एक महीने से भी अधिक समय से सोने में असमर्थ हैं। उन्होंने कहा,’ जनवरी में कोविड संक्रमण के बाद से मैं रात भर तब तक सोने में असमर्थ रही हूं, जब तक कि नींद लाने वाली दवा नहीं ले लेती। मेरा डॉक्टर मुझे इन दवाओं से छुड़ाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन नींद की कमी तनावपूर्ण होती है।’
बच्चों में भी नींद न आना और थकान होना कोविड के बाद के ऐसे सामान्य लक्षण हो गए हैं, जो उनमें देखे जा रहे हैं। दिल्ली स्थित मधुकर रेनबो अस्पताल में बाल रोग निदेशक नितिन वर्मा ने कहा कि उनके कोविड से उबरने और फिर से सामान्य जीवन शुरू करने के तीन सप्ताह बाद ये लक्षण सामने आने लगते हैं। ऐसे ज्यादातर मरीज डेल्टा लहर के हैं। ओमीक्रोन लहर, जो अभी हाल ही की है, के मामले में यह कहना जल्दबाजी होगा कि ये लक्षण कितने लंबे वक्त तकबने रहेंगे। हालांकि लंबे समय तक रहने वाले कोविड के अलग-अलग तरह के 150 लक्षण होते हैं, लेकिन ज्यादातर मरीजों को थकान, सिरदर्द, अनिंद्रा, खांसी, मांसपेशियों में दर्द, ब्रेन फॉग का अनुभव होता है। घोष के मामले में इसके अलावा हाथों और पैरों के अनियंत्रित रूप से हिलने के लक्षण भी थे, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि करीब एक महीने बाद यह धीरे-धीरे अपने आप सही हो गया।
लेकिन सभी लोग घोष की तरह भाग्यशाली नहीं होते। कई मामलों में वायरस से उबरने के बाद मांसपेशियों में ऐेंठन सहित कोविड के बाद के लक्षण एक साल से भी ज्यादा वक्त तक रहे हैं।
कोशिका संबंधी क्षति
मुंबई के मसीना हॉस्पिटल की कन्सल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट सोनम सोलंकी के पास एक ऐसा मरीज आया था, जिसने डेढ़ साल से भी अधिक समय से अपनी सूंघने की ताकत गंवा दी। डॉक्टर कहती हैं कि उस मरीज को जनवरी 2021 में कोविड हुआ था और घर पर कुछ ही दिनों में ठीक हो गया। उसे हल्का संक्रमण था। लेकिन उसके बाद से उसकी सूंघने की ताकत वापस नहीं आई।
चिकित्सा विशेषज्ञ कहते हैं कि कोविड कोशिकीय स्तर पर बदलाव ला रहा है। सोलंकी का कहना है कि छाती के एक्स-रे या ब्लडप्रोफाइल जैसी नियमित जांच उन परिवर्तनों को पकडऩे में सक्षम नहीं होती हैं, जो मरीज के लक्षणों को बताती है। वह कहती हैं कि अगर किसी को खांसी हो रही है, तो छाती का एक्स-रे सामान्य हो सकता है, इसी तरह उसका ब्लड प्रोफाइल भी सामान्य हो सकता है। ये बदलाव कोशिकीय स्तर पर होते हैं।
कुछ रोगियों में जहां एक्स-रे या सीटी-स्कैन जैसी नियमित जांच में असामान्यताएं सामने नहीं आईं, वहीं दूसरी ओर फेफड़े के ऊतक की इलेक्ट्रॉन एमआरआई ने दिखाया है कि उस मरीज के फेफड़ों के ऊतकों में कुछ बदलाव हैं।
डॉक्टर बताते हैं कि कोविड कोशिका के माइटोकॉन्ड्रिया में परिवर्तन ला रहा है और इस तरह ये परिवर्तन गहरे हैं। कुछ मरीजों ने कोविड से उबरने के हफ्तों बाद इरेक्टाइल डिसफंक्शन की सूचना दी है। डॉक्टर ऐसे सभी मामलों का उपचार रोगसूचक स्तर पर कर रहे हैं। वे विटामिनों, व्यायाम करने और इलाज तक की सलाह दे रहे हैं।

त्वचाविज्ञान से लेकर मनोविज्ञान तक
वयस्कों और बच्चों दोनों में ही बालों का झडऩा कोविड के बाद के एक अन्य ऐसे असर के रूप में सामने आया है, जिससे मरीजों को जूझना पड़ रहा है। कई मामलों में तो बीमारी से उबरने के महीनों बाद ऐसा हो रहा है। कोविड से ठीक होने वाले मरीजों में चकते जैसी त्वचा संबंधी समस्याएं भी आम शिकायत बन गई हैं।
शालीमार बाग के फोर्टिस हॉस्पिटल के एचओडी और निदेशक (पल्मोनोलॉजी) विकास मौर्य ने कहा कहा कि हमारे पास एक पोस्ट कोविड क्लीनिक है, जहां हम पल्मोनोलॉजी, हृदयरोग और मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से मरीजों रोगियों का पूरा मूल्यांकन करते हैं, क्योंकि कोई भी अंग शामिल हो सकता है।
इसके अलावा कई बार कोविड के मरीजों त्वचा की समस्याओं को मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखा जा रहा है, साथ ही कोविड से उबरने वाले मरीजों में चिंता की समस्या भी बनी हुई है।
डॉक्टरों को लगता है कि एक ऐसे केंद्रीकृत डेटाबेस की आवश्यकता है, जो न केवल मरीजों के आंकड़ों को एकत्रित करे, बल्कि इन मरीजों पर लंबे समय तक नजर भी रखे। मरीजों का ऐसा डेटाबेस तैयार करने के संबंध में महाराष्ट्र के कार्यबल में चर्चा पहले ही शुरू हो चुकी है।

First Published - March 7, 2022 | 11:04 PM IST

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