ज्यूस न्यूमेरिक्स नाम की एक एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रम) को इस साल बेंगलूरु में आयोजित एयरो इंडिया 2021 के दौरान युद्धपोतों को रडार से बचाने वाला सिम्युलेशन सॉफ्टवेयर बनाने के लिए आईडेक्स (इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस) चैलेंज का विजेता घोषित किया गया तो ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ।
पुणे की ज्यूस न्यूमेरिक्स पहले से ही लगातार विजेता रही है। वर्ष 2004 में इसके संस्थापकों- बसंत कुमार गुप्ता, इरशाद खान और अभिषेक जैन ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बंबई में नाम कमाया था। उन्होंने द्वारा स्थापित स्टार्टअप पहली ऐसी स्टार्टअप थी, जिसे सोसाइटी फॉर इनोवेशन ऐंड एंटरप्रेन्योरशिप (साइन) से वित्तीय मदद मिली थी। साइन शोध गतिविधि को उद्यमिता उपक्रम में बदलने में मदद देकर तकनीकी स्टार्टअप को पोषित करती है।
अब इस कंपनी को रक्षा मंत्रालय की तरफ से सार्वजनिक क्षेत्र की गोवा शिपयार्ड लिमिटेड में साझेदार बनने के लिए 1.5 करोड़ रुपये दिए गए हैं। इस साझेदारी के तहत भारत के भावी युद्धपोतों- तथाकथित अगली पीढ़ी के समुद्री गश्ती जहाज, मिसाइल पोत, फ्रिगेट और डेस्ट्रॉयर आदि बनाए जाएंगे, जो रडार की पहुंच से लगभग दूर रहेंगे। ज्यूस न्यूमेरिक्स में महज 42 कर्मचारी हैं, लेकिन इसके 50 रक्षा ग्राहक हैं और यह 225 से अधिक रक्षा परियोजनाओं को पूरा कर चुकी है।
यह एमएसएमई कंपनी कंप्यूटर सिम्युलेशन के क्षेत्र में काम करती है। कंपनी युद्धपोतों के लिए भौतिक रूप से जहाज का ढांचा एवं सुपरस्ट्रक्चर बनाने बनाने की कठिन एवं निशाना लगने या चूकने की प्रक्रिया से गुजरने और फिर यह तय करने कि वे रडार की कितनी जद में हैं, के बजाय इस प्रक्रिया को सुपरकंप्यूटरों पर सिम्युलेट करेगी।
कंप्यूटर सिम्युलेशन से काफी बचत होगी। सिम्युलेशन मॉडल उन प्रणालियों के व्यवहार की एकदम वैसी ही नकल करते हैं, जिनकी वे मॉडलिंग कर रहे हैं। विशेष रूप से उस स्थिति में, जब उन्हें कोई कुशल पेशेवर विकसित करता है। समकालीन मिसाइल या बम विकसित करने में सिम्युलेशन का इस्तेमाल वास्तविक फायरिंग से पहले होता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी विमान से फायर की जा रही मिसाइल मदर क्रॉफ्ट से सुरक्षित तरीके से अलग हो सके। सावधानीपूर्वक बनाए गए सिम्युलेशन मॉडल 95 फीसदी सटीकता के साथ बम या मिसाइलों के पथ का पूर्वानुमान लगा सकते हैं। इससे विमान के वास्तविक परीक्षण के दौरान विमान और पायलट के सुरक्षित रहने को लेकर भरोसा पैदा होता है। सिम्युलेशन उन मामलों में अत्यधिक उपयोगी है, जिनमें परीक्षण या तो बहुत महंगा है या जोखिमपूर्ण है।
वर्ष 2010 में ज्यूस न्यूमेरिक्स ने भारतीय वायु सेना की एक अहम परियोजना पर काम शुरू किया था, जिसमें सुखोई-30एमकेआई पर ब्रह्मोस मिसाइल को तैनात करना था। इस कंपनी ने लड़ाकू विमान से बह्मोस के अलग होने की सफलतापूर्वक पुष्टि की, इसलिए आज ब्रह्मोस भारतीय वायु सेना के ताकतवर हथियारों में से एक है।
एचएएल के पूर्व चेयरमैन आर के त्यागी कहते हैं कि रूस ने सुखोई-30एमकेआई को ब्रह्मोस मिसाइल से सुसज्जित बनाने के लिए 1,300 करोड़ रुपये मांगे थे, लेकिन ज्यूस न्यूमेरिक्स ने 80 करोड़ रुपये में यह काम कर दिया।
इस परियोजना के दौरान रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की प्रमाणन एजेंसी- द सेंटर फॉर मिलिटरी एयरवर्दीनेस ऐंड सर्टिफिकेशन (सीईएमआईएलएसी) द्वारा ज्यूस को हवाई क्षेत्र सर्वोच्च प्रमाणन दिया गया। बीते वर्षों के दौरान ज्यूस न्यूमेरिक्स ने भारतीय वायु सेना के अग्रिम पंक्ति के लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों से 15 तरह के बम, मिसाइल और उपकरणों को सुरक्षित तरीके से अलग करने पर काम किया है। हाल के दिनों में इसने हेलीकॉप्टरों से आर्टिलरी तोपों को उठाकर सीमावर्ती इलाकों में ले जाने के लिए सिम्युलेशन अध्ययन किया है।
सिम्युलेशन के फायदों का पता आर्मर पियरसिंग एम्यूनिशन में इस्तेमाल से चलता है। इसे फिन-स्टेबलाइज्ड आर्मर पियरसिंग डिस्कार्डिंग सबोट (एफएसएपीडीए) कहा जाता है, जिसे टैंकों से फायर किया जाता है। भौतिक परीक्षण के लिए 500 राउंड फायर करने की जरूरत होती है, तभी इसकी निरंतरता और सटीकता तय होती है। सिम्युलेशन से भौतिक फायरिंग की जरूरत घटकर महज 50 राउंड रह जाती है।
एक एफएसएपीडीएस राउंड की लागत करीब 3,50,000 रुपये आती है, इसलिए 500 राउंड के बजाय 50 राउंड फायर करने से 16 करोड़ रुपये की बचत होती है। इसके अलावा 450 राउंड फायर करने में दो टैंक की बैरल का जीवन चक्र खत्म हो जाता है, इसलिए सिम्युलेशन से इस मोर्चे पर भी 5-6 करोड़ रुपये की अतिरिक्त बचत होती है। इसकी तुलना में फायरिंग के सिम्युलेशन की लागत महज 2-3 करोड़ रुपये आती है। इससे लागत घटकर महज 10 फीसदी रह जाती है और समय और लॉजिस्टिक की बचत होती है।
ज्यूस न्यूमेरिक्स युद्ध पोत स्टील्थ के लिए अनुमान सॉफ्टवेयर विकसित किया है, इसलिए वह इसे विमान में भी इस्तेमाल कर सकती है। यह पहले ही तेजस लड़ाकू विमान की रडार क्रॉस-सेक्शन का अनुमान लगाने के लिए वैसा ही सॉफ्टवेयर विकसित कर चुकी है।
भविष्य के ऑटोनोमस सिस्टम सेंसर और सिग्नेचर पर निर्भर करेगा। जैन ने कहा कि इस रुझान का अनुसरण करते हुए ज्यूस न्यूमेरिक्स सिम्युलेशन की आपूर्ति कर मॉडलिंग पिरामिड में ऊपर आ रही है। वह कहते हैं, ‘सटीक भौतिक मॉडलों पर बने ऐसे सिम्युलेशन के आधार पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या मशीन लर्निंग मॉडल विकसित किए जाएंगे।’ उन्होंने कहा, ‘एमएसएमई और स्टार्टअप के लिए आईडीईएक्स जैसी इन योजनाओं का लाभ लेने और डिजाइन प्रक्रिया की बौद्धिक संपदा को हासिल कर ‘मेक इन इंडिया’ को ‘मेक इन इंडिया’ में बदलने का सही समय है।
