मेरठ के करीब 350 साल पुराने कैंची उद्योग की धार अब कुंद पड़ने लगी है। चीन से कैंचियों के बढ़ते आयात ने मेरठ के उद्यमियों को मुश्किल में डाल दिया है। दिलचस्प है कि चीनी कैंचियां महंगी हैं मगर देसी कैंची का कारोबार हड़प रही हैं क्योंकि ये देखने में अच्छी लगती हैं। समस्या चीनी कैंची की ही नहीं है। बढ़ती लागत से भी देसी कैंची उद्योग के मुनाफे पर चोट पड़ी है और उसे मजदूरों के पलायन का भी सामना करना पड़ रहा है।
मेरठ में 1 रुपये से 1,000 रुपये तक की कैंची बनती है। यहां की कैंची हाथ से बनी होने की वजह से पकड़ने में आरामदेह होती है और उससे हाथ पर निशान भी बहुत कम बनते हैं। यही वजह है कि दर्जी और नाई इन कैंचियों को पसंद करते हैं। इनमें बार-बार धार लगाई जा सकती है, इसलिए ये सालों तक चलती रहती हैं।
मगर इस समय यह उद्योग चीनी कैंची की घुसपैठ से परेशान है। 2021-22 के दौरान देश में करीब 92 करोड़ रुपये की कैंची आयात के जरिये आई थीं, जिनमें 82.50 करोड़ रुपये की कैंची चीन से ही थीं। उस साल कैंची का आयात 33 फीसदी बढ़ गया था। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल महीने में कैंची आयात करीब 45 फीसदी बढ़कर 7.76 करोड़ रुपये रहा। पिछले 5 साल में कैंची आयात 2.5 गुना से ज्यादा बढ़ चुका है। इससे राहत के लिए मेरठ के उद्यमियों ने सरकार से रियायती दरों पर कच्चा माल दिलाने, सस्ता कर्ज दिलाने और जीएसटी दर 18 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी करने की मांग की है।
मेरठ कैंची निर्माता संघ के अध्यक्ष शरीफ अहमद कहते हैं कि कोरोना महामारी शुरू होने के कुछ महीने बाद तक कैंची उद्योग को काफी ऑर्डर मिले थे क्योंकि तब चीन से आयात ठप होने के कारण देसी कैंचियों की मांग बढ़ गई थी। मगर अब आयात शुरू होते ही मुसीबत बढ़ गई है। 80 से 90 करोड़ रुपये सालाना कारोबार वाला यह उद्योग घटकर 30 से 35 करोड़ रुपये पर ही रह गया है। मार इतनी अधिक है कि डेढ़ साल में 40-50 उद्यमियों ने कारोबार ही छोड़ दिया है। इस समय 125 से 150 उद्यमी कैंची बनाने के कारखाने चला रहे हैं। के के सीजर नाम से कैंची बनाने वाले मोहम्मद आदिल सैफी ने बताया कि पहले दिन में 600-700 कैंची बनती थीं। मांग कम होने के कारण अब 300-350 कैंची ही बनाई जा रही हैं और ये भी पूरी तरह बिक नहीं रही हैं। मेरठ के ही कैंची उद्यमी मोहम्मद अख्तर जिया कहते हैं कि चीनी कैंची मेरठ की कैंची से महंगी होने के बावजूद ज्यादा बिक रही है। 10 इंच की देसी कैंची 120 से 150 रुपये में मिलती है और इतनी ही बड़ी चीनी कैंची 200 रुपये में आती है। चीन की कैंची मशीन से बनती है, इसलिए अच्छी फिनिशिंग के साथ यह देखने में आकर्षक होती है। इसमें धार भी ज्यादा पैनी होती है। हालांकि मेरठ की कैंची ज्यादा समय तक चलती है, इसलिए चीन की कैंची को टक्कर दे पा रही है।
लागत बढ़ने से मुनाफे पर चोट
कैंची उद्यमी तंसीर सैफी ने कहा कि कैंची बनाने के कच्चे माल पीतल और लोहे के दाम जरूरत से ज्यादा बढ़ गए हैं। कोरोना से पहले 300-350 रुपये प्रति किलोग्राम मिलने वाला पीतल अब 540 से 600 रुपये में मिल रहा है। लोहे के दाम भी 40-45 रुपये किलो से बढ़कर 60-70 रुपये किलो हो गए। कच्चा माल महंगा होने से कैंची के दाम 15 से 25 रुपये बढे हैं। चीनी कैंची से प्रतिस्पर्द्धा के लागत के हिसाब से दाम बढ़ाए तो खरीदार छिटक सकते हैं। इसलिए उद्यमियों को कम मार्जिन पर काम करना पड़ रहा है।