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पश्चिम बंगाल: दूसरी लहर के बाद टीकाकरण के लिए लंबी कतारें

Last Updated- December 12, 2022 | 4:31 AM IST

दुध कुमार साहा (52 वर्ष) अप्रैल में अपने भाई द्वारा इंजेक्शन लिए जाने के बावजूद इसके दुष्प्रभाव के जोखिम का आकलन करते हुए रुककर इंतजार कर रहे थे। लेकिन दूसरी लहर में जैसे ही कोविड के मामले बढ़े, तो उन्होंने कोलकाता से लगभग 46 किलोमीटर दूर जंगीपाड़ा (हुगली) के ग्रामीण अस्पताल में हर रोज टीकाकरण केंद्र का दौरा करना शुरू कर दिया।
वह कहते हैं ‘अब, जब मैं इंजेक्शन लेना चाहता हूं, तो टीके ही उपलब्ध नहीं हैं।’ साहा अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं। पिछले एक सप्ताह में इस स्थान पर सैकड़ों लोगों को कतार में लगा देखा गया है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि 15 मई को करीब 200 लोग कतार में लगे हुए थे, लेकिन कुछेक लोगों को ही टीका लगा। आपूर्ति की कमी के कारण 18 मई को अगला सत्र रद्द कर दिया गया तथा शनिवार को सीमित संख्या में प्राथमिकता वाले समूहों के लोगों और पंचायत सदस्यों को ही यह लग पाया।
श्रीकांत कन्नार (51 वर्ष) ने मार्च में पहला टीका लगवाया था, जब 60 साल और इससे अधिक तथा अन्य रोगों से पीडि़त 45 साल से अधिक उम्र वाले लोगों के लिए टीकाकरण शुरू हुआ था। वह अपने दूसरे टीके के बारे में पूछताछ करने के लिए तकरीबन हर रोज ही उस स्थान पर साइकिल चलाते हुए आते हैं। आखिरकार रविवार को केंद्र की ओर से उन्हें बताया गया कि अब उनकी दो खुराकों के बीच 84 दिन का अंतर है। 1 अप्रैल से 45 वर्ष और इससे अधिक उम्र के लोगों के लिए टीकाकरण शुरू कर दिया गया था, भले ही उन्हें दूसरे गंभीर रोग हों या न हों। फिर भी कुछ लोगों के लिए मामलों में भारी उछाल के साथ दूसरी लहर निर्दयी साबित हुई, जिसने उन्हें टीके से झिझकने वालों से टीके के लिए अधीर बना दिया। लेकिन आपूर्ति की कमी और मांग में तेजी की वजह से यह इंतजार लंबा हो सकता है।
राज्य सरकार दूसरी खुराक को प्राथमिकता दे रही है और प्राथमिकता वाले उन समूहों को पहली खुराक दे रही है, जो नियमित रूप से लोगों के संपर्क में आते हैं और कोरोना के संभावित प्रसारकर्ता हो सकते हैं- जैसे परिवहन कर्मचारी, फेरीवाले, खुदरा विक्रेता। लेकिन ज्यों-ज्यों लोगों को टीका लगवाने के लिए इंतजार करना पड़ रहा है, उनकी उत्सुकता अधीरता में बदलती जा रही है। एकमात्र उम्मीद की किरण यह है कि कोविड के मामलों की संक्रमण दर में कमी आ रही है।
जंगीपाड़ा अस्पताल के भीतर कोविड की जांच करने वाली प्रयोगशाला के कर्मचारियों का कहना है कि अप्रैल के अंत में एक दिन में जांचे गए 120 नमूनों में से करीब 40 से 45 नमूने संक्रमित पाए जाते थे। उन्होंने कहा कि अब यह संख्या घटकर 17 से 18 रह गई है। जंगीपाड़ा गांव के स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि पश्चिम बंगाल में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों का प्रतिकूल असर हुआ है। राज्य में 27 मार्च से 29 अप्रैल तक आठ चरण वाला मतदान हुआ था।
जंगीपाड़ा के एक स्थानीय निवासी राजू साहा कहते हैं ‘चुनाव के दौरान और बाद में मामले बढ़े हैं।’ लेकिन बांग्ला फिल्म स्टार देव के वहां से गुजरने के अलावा राजनीतिक दिग्गजों के लिए जंगीपाड़ा में ऐसा कोई आकर्षण नहीं था।
जंगीपाड़ा से करीब 22 किमी दूर ऐतिहासिक भूमि आंदोलन वाले स्थल-सिंगूर ने ज्यादा ध्यान आकर्षित किया था। आखिरकार यह वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल में सरकार बदलने वाला प्रमुख जरिया था तथा यहां बड़ी सार्वजनिक सभाएं और रोड शो का आयोजन किया गया था।
30 बिस्तरों वाला स्वास्थ्य निवास नर्सिंग होम चला रहे उदयन दास के अनुसार सिंगूर के गांवों में एक भी ऐसा परिवार नहीं है, जो दूसरी लहर से प्रभावित न हुआ हो। वह बताते हैं ‘ऐसा नहीं है कि चुनाव से पहले कोविड नहीं था, लेकिन बैठकों और सभाओं ने इसे बढ़ा दिया।’ दास का कहना है कि हालांकि सिंगूर में बिस्तरों की उपलब्धता में अब सुधार हुआ है और मामलों में कमी आ रही है। वह कहते हैं ‘कुल लोग केवल घरों में ही रुके हुए हैं और उपचार करवा रहे हैं। लेकिन उपचार में देरी करने वालों में जटिलताएं देखी गई हैं।’ आजकल उनके नर्सिंग होम के बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) में लोगों की ज्यादातर शिकायतें कोविड के बाद की कमजोरी से संबंधित हैं।
शायद इससे लोगों को जल्दी से जल्दी मास्क छोडऩे का भरोसा मिल रहा है। सिंगूर के गोपालनगर गांव में करीब आधे लोग बिना मास्क के हैं। सपन दास (55 वर्ष) एक बेंच पर बैठे हुए हैं। उनकी ठुड्डी के चारों ओर ढीला-ढाला-सा एक गमछा लिपटा हुआ है, जो बार-बार गिर जाता है। शुरुआत में झिझकने वाले दास अपने टीके का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। हालांकि उन्हें अपनी बारी का इंतजार करना पड़ सकता है।
गोपालनगर पंचायत के अध्यक्ष अमिय धारा कहते हैं कि पहली खुराक के लिए कल 200 लोगों की सूची भेजी गई थी। वे प्राथमिकता समूह का हिस्सा हैं। वह कहते हैं ‘हर कोई टीका लेना चाहता है। पिछली दफा जब एक शिविर का आयोजन किया गया था, तो 500 खुराक के लिए 1,000 लोग थे। लोग इंतजार कर रहे हैं और निराश लौट रहे हैं। कई दफा इससे दिक्कतें पैदा हो रही हैं। आपूर्ति के मुकाबले मांग काफी ज्यादा है।’ कई लोग वैक्सीन को लॉकडाउन से बाहर निकलने का उपाय मानते हैं। राज्य सरकार ने 16 मई से दो सप्ताह के लॉकडाउन की घोषणा की है। लेकिन कोविड को रोकने की जंग के साथ-साथ बेरोजगारी के दबाव से चिंता बढ़ रही है।
लॉकडाउन के बाद से राजमिस्त्री अरुण पाल (50 वर्ष) बेरोजगार हैं। लेकिन पाल पिछले साल के कार्य को याद करते हुए कहते हैं कि अनलॉक के तुरंत बाद बहुत सारी निर्माण गतिविधि थी। इस साल कोई काम नहीं है तथा मुफ्त चावल और गेहूं का दान बहुत कम किया जा रहा है।

First Published - May 24, 2021 | 9:10 PM IST

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