ब्राजील और बोलीविया के एमेजॉन क्षेत्र में एक ऐसा बंदर पाया जाता है जिसके मुंह का हिस्सा सफेद होता है। तीन रंगों वाली गिलहरी, थाई-मलय प्रायद्वीप और आसपास के द्वीपों के जंगलों में पाई जाती है। शुगर ग्लाइडर गिलहरी की तरह उड़ने वाला जानवर है जिसकी लंबाई 6.3 से 8.3 इंच होती है और ये ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं।
मई के महीने में ये तीनों जानवर चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पाए गए। दरअसल सीमा शुल्क अधिकारियों ने बैग के अंदर छिपे विदेशी जानवरों के समूह की तस्करी करने के प्रयासों को विफल कर दिया था।
कुछ दिनों बाद मिजोरम में 468 विदेशी जानवरों, कछुए, सांप, छिपकली और जंगली बिल्ली को जब्त कर लिया गया था।
ये सभी पालतू जानवरों के रूप में देश में ही बेचे जाने थे जिनमें से कुछ स्थानीय चिड़ियाघर भी शामिल हैं। इनकी प्रजाति, उम्र, आकार और मूल देश के आधार पर इनके बदले 1,500 रुपये से लेकर 1,50,000 रुपये तक की कमाई की जा सकती है। विदेशी जानवरों के बाजार में, अफ्रीकी ग्रे तोते की कीमत अक्सर 1,25,000 रुपये से अधिक होती है।
कीमतें उन लोगों के लिए कोई बाधा नहीं बनती है जो ‘अलग हैसियत’ दिखाने के लिए विदेशी पालतू जानवरों की मांग करते हैं। वर्ष 2020 में विदेशी जीवित प्रजातियों, पशुओं या पौधों की स्वैच्छिक जानकारी देने की योजना में 32,645 लोगों ने आवेदन किया। हाई फ्लाइंग नामक ट्रैफिक इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 2011 और 2020 के बीच भारतीय हवाई अड्डों पर 70,000 से अधिक देशी और विदेशी जंगली जानवरों को जब्त किया गया था जिनमें उनके शरीर के अंग या डेरिवेटिव (लगभग 4,000 किलोग्राम वजन) शामिल थे।
चेन्नई में एक विदेशी पालतू जानवरों की दुकान के मालिक ने कहा, ‘एक इगुआना की कीमत उनके आकार के आधार पर 20,000 रुपये से 50,000 रुपये तक हो सकती है। बेबी मैकाव की कीमत लगभग 1.5 लाख रुपये है और एक ऑस्ट्रेलियाई तोते की कीमत लगभग 6,000 रुपये है।’
उत्तर प्रदेश में एक अन्य पालतू जानवरों की दुकान के मालिक ने कहा कि वह आकार के आधार पर इगुआना बेचते हैं जिसकी शुरुआती कीमत 8,000 रुपये है। उन्होंने कहा, ‘ये इगुआना पहले फ्लोरिडा से लाए गए थे लेकिन अब केरल में पैदा किए जा रहे हैं।’ इगुआना के अलावा, विदेशी पालतू जानवरों की सबसे अधिक मांग में लाल-कान वाले स्लाइडर कछुए, विषैली मकड़ी, बॉल पायथन, मैकाव और अफ्रीकी ग्रे तोता शामिल हैं।
पशु अध्ययन में माहिर राजलक्ष्मी कांजीलाल ने कहा, ‘विदेशी जानवरों, विशेष रूप से जानवरों और पक्षियों की गैर-देशज प्रजातियां, ‘संग्रहकर्ताओं’ का ध्यान आकृष्ट करती हैं जो उन्हें वस्तु मानते हैं। विदेशी पालतू जानवरों के ‘मालिक’ वाला दर्जा पाने की लालसा की वजह से स्थिति और जटिल हुई है।’
कोलकाता में एक पालतू जानवरों की दुकान के मालिक ने कहा कि उन्हें हर महीने या दो बार रोसेला, कोनुरेस, फारसी बिल्लियों और कुत्तों जैसी विदेशी प्रजातियों के लिए अनुरोध मिलते हैं। आमतौर पर उनकी कीमत 10,000 रुपये या उससे अधिक होती है।
भारत 1976 के बाद से जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार से जुड़े समझौते, साइट्स का सदस्य रहा है। सरकारों के बीच इस अंतरराष्ट्रीय समझौते का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि जंगली जानवरों और पौधों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार से उनका अस्तित्व खतरे में न पड़े।
वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया में वन्यजीव अपराध नियंत्रण प्रभाग के प्रमुख जोस लुइस ने कहा, ‘साइट्स के तहत जानवरों को लाइसेंस के माध्यम से कुछ सुरक्षा मिलेगी, इन जानवरों के भारतीय सीमाओं के अंदर होने के बाद उनके व्यापार को नियंत्रित करने वाला कोई कानून नहीं है।’
भारत केवल विदेशी प्रजातियों के लिए गंतव्य ही नहीं बल्कि यह इस तरह के व्यापार का भी स्रोत है। वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो-पूर्वी क्षेत्र के क्षेत्रीय उप निदेशक अग्नि मित्रा ने कहा, ‘कुछ भारतीय प्रजातियों की तस्करी की जाती है। इनके अलावा बाघ की त्वचा और उसके शरीर के अंगों, हाथी दांत और टोके गेकोस जैसे पशु उत्पाद भी तस्करी की भेंट चढ़ जाते हैं। सांप के जहर की भी भारत में खूब मांग है।’ भारतीय पहाड़ी मायना सबसे अधिक मांग वाले पालतू जानवरों में से एक है क्योंकि यह मनुष्य की आवाज की नकल करता है।
वन्यजीव एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ कार्तिक सत्यनारायण ने बताया, ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, केवल देशी प्रजातियों के व्यापार को प्रतिबंधित करता है। गैर-देशी जानवर एक मुश्किल पैदा करते हैं क्योंकि वे कानून के तहत कवर नहीं किए जाते हैं।’ संरक्षणवादियों को उम्मीद है कि संसद इस साल वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 पारित करेगी जिससे कानून के दायरे को बढ़ाने में मदद मिलेगी।