भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर को पिछले दिनों एक व्यक्ति की तरफ से 100 करोड़ रुपये मिले जो अब तक का सबसे अधिक रकम वाला अनुदान है। इसे आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्र और इंडिगो एयरलाइंस के सह संस्थापक राकेश गंगवाल ने दिया। हाल के वर्षों में कोविड-19 महामारी के बावजूद इस तरह के योगदान में काफी वृद्धि देखी गई है। आईआईटी मद्रास के पूर्व छात्र और कॉरपोरेट रिलेशन के डीन महेश पंचागनुला के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में इस प्रमुख संस्थान ने अकेले शिक्षा में इस तरह की दान श्रेणी से 135 करोड़ रुपये से अधिक जुटाए हैं। कोविड महामारी के बावजूद आईआईटी मद्रास को मिली दान श्रेणी वाली फंडिंग में एक रुझान दिख रहा है जिसमें पिछले पांच सालों में साल-दर-साल औसतन लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। आईआईटी मद्रास में सालाना अनुदान और अपनी इच्छा से किए जाने वाला दान वर्ष 2016-17 के 55 करोड़ रुपये से बढ़कर 2020-21 में 101.49 करोड़ रुपये हो गया जो इसकी सालाना रिपोर्ट के आधार पर आईआईटी में यह सबसे अधिक है।
इस बीच आईआईटी बंबई के अनुदान में भी बढ़ोतरी दिखी और यह 2017-18 के 17.12 करोड़ रुपये से बढ़कर 2020-21 में 77 करोड़ रुपये हो गई। आईआईटी कानपुर ने स्वैच्छिक स्तर पर किए जाने वाले दान के मोर्चे पर अच्छी तेजी दर्ज की और यह 2016-17 के 7.62 करोड़ रुपये से बढ़कर 2020-21 में 84.39 करोड़ रुपये तक हो गई। आईआईटी कानपुर में यह तेजी अधिक है क्योंकि गंगवाल ने स्कूल ऑफ मेडिकल साइंसेज ऐंड टेक्नॉलॉजी के लिए 100 करोड़ रुपये से अधिक का दान दिया है जिसे संस्थान अपने परिसर में ही तैयार कर रहा है। आईआईटी कानपुर के निदेशक अभय करंदीकर के अनुसार, गंगवाल का योगदान एक शैक्षणिक संस्थान में किसी व्यक्ति द्वारा दिए गए सबसे अधिक दान में से एक था। पूर्व छात्रों के मजबूत नेटवर्क और बेहतरीन अनुसंधान कार्यों को देखते हुए, वैश्विक रैंकिंग में भी उनके प्रतिनिधित्व में क्रमिक वृद्धि हुई है और आईआईटी को कई सालों से व्यक्तियों से निजी तौर पर और कॉरपोरेट संस्थाओं से समान रूप से इतने बड़े दान मिले हैं। उदाहरण के तौर पर 2014 में आईआईटी बंबई को अपने इतिहास में सबसे बड़ा दान मिला, उच्च तकनीक उत्पाद और समाधान तैयार करने के लिए एक केंद्र स्थापित करने के लिए टाटा समूह से 95 करोड़ रुपये तक का अंशदान मिला।
पंचगनुला ने कहा कि मिली राशि का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा चेयर प्रोफेसरशिप के लिए है। उन्होंने बताया, ‘चेयर प्रोफेसरशिप के माध्यम से, आईआईटी मद्रास अकादमिक या अनुसंधान के विशेष क्षेत्रों के वैश्विक विशेषज्ञों को चेयर प्रोफेसर के रूप में लाने में सक्षम रहा है। इससे कक्षा में बेहतर तरीके से मूल्यवद्र्धन होता है जिससे छात्रों के सीखने की प्रक्रिया समृद्ध होती है। अगर हम किसी ऐसी थीम पर जोर देना चाहते हैं जिससे इस तरह की फंडिंग सबसे अधिक हो तो यह निश्चित रूप से यह क्षेत्र शिक्षा ही होगी और इसमें छात्रवृत्ति के माध्यम से समर्थन, बुनियादी ढांचे में सुधार और चेयर प्रोफेसरशिप का प्रावधान शामिल होगा।’
आईआईटी कानपुर के अलावा, आईआईटी बंबई सालाना दान की मात्रा और दीर्घकालिक योगदान के लिहाज से अग्रणी लाभार्थियों में से एक रहा है। उदाहरण के तौर पर आईआईटी बंबई हेरिटेज फाउंडेशन (आईआईटी-बीएचएफ ) एक अमेरिका-आधारित पूर्व छात्र सहायता समूह है जिसने संस्थान को पिछले 25 वर्षों में लगभग 380 करोड़ रुपये (5 करोड़ डॉलर) का दान दिया है। आईआईटी में बड़े पैमाने पर दान मिल ही रहा है। 2020-21 में आईआईटी मद्रास को मिले सबसे अधिक दानों में पूर्व छात्र तथा जैसे अधिक हैसियत वाले निवेश बैंकर अरुण स्वामीनाथन और प्रौद्योगिकी क्षेत्र के उद्यमी सुब्रमण्यम शंकर द्वारा दिए गए क्रमश: 7.27 करोड़ रुपये और 7.01 करोड़ रुपये का दान शामिल है।
इसी तरह आईआईटी बंबई में, एक प्रौद्योगिकी सेवा कंपनी मास्टेक के संस्थापक, उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, अशांक देसाई ने 2020-21 में नीति अध्ययन केंद्र के लिए 15 करोड़ रुपये का उच्चतम व्यक्तिगत योगदान दिया है। यहां तक कि गांधीनगर आईआईटी जैसे नए संस्थान को भी अपने पूर्व छात्रों के नेटवर्क और भारत के बाहर स्थित शुभचिंतकों से अच्छा योगदान मिला है। संस्थान के प्रवक्ता ने कहा, ‘एक नए संस्थान के तौर पर जिसके पूर्व छात्र अब भी अपने करियर के शुरुआती या मध्य चरण में हैं उन्होंने आईआईटी गांधीनगर में पूंजी जुटाने के अपने प्रयासों में अच्छी प्रगति की है। यह असाधारण तरीके के समर्थन के माध्यम से संभव हुआ है जो हमें दुनिया भर में फैले संस्थान के बड़ी तादाद के शुभचिंतकों की वजह से मिलता है। पिछले तीन सालों में औसत वार्षिक दान 13 करोड़ से अधिक हो गया है।’
आमतौर पर मुख्य दान संस्थान के शुभचिंतकों से मिलता है जिनका संस्थान के साथ कोई पहले से संबंध नहीं है जबकि आईआईटी गांधीनगर के हाल में निकले पूर्व छात्र भी अपने संस्थान से गहराई से जुड़े हुए हैं।
प्रवक्ता ने कहा कि वित्त वर्ष 2020 में 50.1 प्रतिशत पूर्व छात्रों, वित्त वर्ष 2021 में 55 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2022 में 50 प्रतिशत छात्रों ने संस्थान की ‘एनुअल एलुमनी गिविंग’ गतिविधि में हिस्सा लिया जिसमें स्नातक और स्नातकोत्तर के पूर्व छात्रों की लगभग समान भागीदारी थी।
बी-स्कूलों ने भी बढ़ाया कदम
आईआईटी के अलावा शीर्ष बिजनेस स्कूल भी अनुदान आदि के माध्यम से फंड जुटाने में अच्छी वृद्धि दिखा रहे हैं। इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी)के वरिष्ठ निदेशक (एडवांसमेंट) अजित मोटवानी ने कहा कि बी-स्कूल को 57 करोड़ रुपये का सबसे अधिक अनुदान मिला है, जिसमें पांच दानदाताओं ने पिछले दो दशकों में 50 करोड़ रुपये या उससे अधिक का योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि पिछले 20 वर्षों में बी-स्कूल को या तो निर्बाध दान के रूप में या अनुसंधान में मदद देने के लिए अधिक फंड मिला है जिसका सीधे आईएसबी से संबंध है जो देश में शीर्ष शोध-आधारित बिजनेस स्कूल हैं। उन्होंने कहा कि आगे हर साल दान की मात्रा में काफी वृद्धि की है। मोटवानी ने कहा, ‘अनुदान का आईएसबी की स्थापना और इसके शुरुआती वर्षों के दौरान दो दशक पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर की फैकल्टी की भागीदारी के साथ अत्याधुनिक परिसर बनने में महत्त्वपूर्ण भूमिका है और इसके बाद एक दशक पहले मोहाली में इसके दूसरे परिसर की स्थापना के दौरान भी इसकी अहम भूमिका रही।’