कोविड महामारी की तीसरी लहर और इसकी चपेट में बच्चों के आने की आशंका देखते हुए देश में बच्चों के अनुकूल बुनियादी ढांचा तैयार किया जा रहा है ताकि कोविड आपातकालीन स्थिति में उनका बेहतर तरीके से उपचार हो सके।
इसके लिए उपचार का मानक तरीका तैयार किया जा रहा है। साथ ही अस्पतालों में बच्चों के साथ उनके अभिभावकों को रखने के लिए बिस्तरों की संख्या बढ़ाने और मौजूदा बिस्तरों में जरूरत के हिसाब से बदलाव करने की योजना है। बच्चों के उपचार के लिए अद्र्घचिकित्साकर्मियों को भी विशेष प्रशिक्षिण देने तथा जरूरत पडऩे पर मौजूदा उपकरणों में बदलाव करने की भी तैयारी है।
मुंबई के मुलुंड इलाके में स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल के क्रिटिकल केयर के निदेशक और महाराष्ट्र के कोविड कार्यबल के सदस्य राहुल पंडित ने कहा कि महाराष्ट्र में बड़े आकार के कोविड केंद्रों में बच्चों के ही लिए बुनियादी ढांचा तैयार करने की योजना शुरू हो चुकी है। उन्होंने कहा, ‘अगर किसी बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है तो उसकी मां के भी वहीं रहने का प्रबंध होगा। उपचार के मानक तरीके पर भी काम चल रहा है और मुख्यमंत्री उद्घव ठाकरे राज्य के प्रमुख बाल-चिकित्सकों के साथ बैठकें कर चुके हैं।’
चिकित्सकों का मानना है कि कोविड संक्रमित बच्चों को अस्पताल में भर्ती करना और अभिभावकों के लिए कमरे का प्रबंध करना बड़ी चुनौती है। चेन्नई में अपोलो हॉस्पिटल्स में संचारी रोग विभाग के सुरेश कुमार ने कहा कि इस स्थिति से निपटने के लिए एकदम नए तरीकों की जरूरत है। कुमार ने कहा, ‘अभिभावक आरटी-पीसीआर नेगेटिव हो सकते हैं। ऐसे मामलों में हम बच्चों और उनके अभिभावक को ऐसे कमरे में रखने की सोच सकते हैं, जिनमें बीच में पार्टिशन हो। 10-12 साल से अधिक उम्र के बच्चों के माता-पिता को अस्पताल में अलग कमरे में रखा जा सकता है और समय-समय पर पूरी सावधानी के साथ बच्चों से मिलने दिया जा सकता है। अभी तक अस्पतालों में कोविड मरीजों के साथ परिजनों को रहने की अनुमति नहीं है। लेकिन बच्चों के मामले में व्यवस्था बदलनी होगी।’
बच्चों के उपचार के लिए दवा भी बेहद सीमित हैं, इसीलिए उपचार का उपयुक्त तरीका तैयार करना चिकित्सकों की पहली प्राथमिकता है। उपचार की पद्घति में बताया जा सकता है कि बच्चों को ऑक्सीजन किस तरह देनी है, दूसरा कौन सा उपचार करना है और कौन सी दवा उन्हें दी जा सकती हैं। चिकित्सक उम्मीद कर रहे हैं कि बच्चों में बड़ों की तरह साइटोकाइन स्टॉर्म (प्रतिरक्षा प्रणाली के हरकत में आने पर अंगों में सूजन आना) की समस्या नहीं होगी। उनका कहना है कि बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली इतनी विकसित ही नहीं होती कि ऐसी प्रतिक्रिया दे सके। लेकिन बच्चों में मल्टी-सिस्टम इनफ्लेमेटरी सिंड्रोम (एमआईएस-सी) देखा गया है।
इंडियन एकेडमी ऑफ पीडिएट्रिक्स का कहना है, ‘बच्चों से वयस्कों की तरह ही संक्रमण फैल सकता है लेकिन वह गंभीर नहीं होगा। ऐसा नहीं लगता कि तीसरी लहर केवल बच्चों को ही प्रभावित करेगी या उन्हें ज्यादा प्रभावित करेगी।’ दिसंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच किए गए सीरो सर्वेक्षण से पता चलता है कि 10 से 17 वर्ष आयु वर्ग के संक्रमित बच्चों की संख्या वयस्कों की तरह ही करीब 25 फीसदी थी। दूसरी लहर में भी काफी बच्चे संक्रमित हुए हैं।
दिल्ली में बच्चों के लिए सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल रेनबो हॉस्पिटल में बाल चिकित्सा विभाग के सहायक महानिदेशक नितिन वर्मा ने कहा, ‘इस बार कोरोना से काफी संख्या में बच्चे भी संक्रमित हुए हैं। मैंने दिन में वीडियो पर 40 मामलों में सलाह दी है, जबकि पिछले साल बमुश्किल ऐसे बच्चे आए थे। बच्चे की उम्र ज्यादा होने पर उनमें लक्षण भी ज्यादा होते हैं। चिकित्सकों का कहना है कि कोविड उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती होने वाले बच्चों में से कुछ मधुमेह से पीडि़त थे और कई को निमोनिया हुआ था।
हैदराबाद में मलकपेट में यशोदा हॉस्पिटल्स के बाल रोग विशेषज्ञ श्रीनिवास मिदिवेली ने महसूस किया कि बच्चों में कोविड के लक्षणों और चेतावनी संकेतों के बारे में माता-पिता के बीच जागरूकता बढ़ाना जरूरी है ताकि इसका जल्द पता लगाया जा सके। मिदिवेली ने कहा, ‘कोविड टीके के लिए बच्चों में क्लीनिकल परीक्षण शुरू करने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है और निमोनिया की गंभीर समस्या को रोकने के लिए इन्फ्लूएंजा के टीके देना भी जरूरी है। बेड की संख्या बढ़ाना दूसरी सबसे बड़ी प्राथमिकता है क्योंकि संक्रमण के मौजूदा मामले को देखते हुए बेड की मौजूदा तादाद पर्याप्त नहीं हो सकती है। अस्पतालों ने बेड बढ़ाने की तैयारी शुरू कर दी है और इसकी योजना बनाई जा रही है।’
मणिपाल हॉस्पिटल्स के प्रबंध निदेशक और सीईओ दिलीप होसे ने कहा कि योजनाएं पहले से ही जारी थीं और अगले कुछ महीनों के भीतर उनके पास बच्चों के लिए ज्यादा व्यापक और उनके अनुकूल बुनियादी ढांचा होगा। मुंबई में 108 कोविड बेड की सुविधा देने वाले हिंदुजा हॉस्पिटल का कहना है कि बेड के दोबारा आवंटन की योजना है। हिंदुजा हॉस्पिटल्स के मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) जॉय चक्रवर्ती ने कहा, ‘हमारी योजना 28 बेड वाले कोविड आईसीयू में बच्चों के लिए 4 बेड आवंटित करने की है।’
वर्ष 1993 में देश में गंगाराम हॉस्पिटल में पहली बार बच्चों के लिए आईसीयू की सुविधा शुरू करने वालों में से एक फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक (बाल रोग विशेषज्ञ) कृष्ण चुघ ने कहा कि फोर्टिस बच्चों के इलाज के लिए अपनी क्षमता को बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा कर रहा है। चुघ ने कहा, ‘हमें इस वक्त मौजूदा स्टाफ में ही बदलाव करने की जरूरत है मसलन वयस्कों के आईसीयू में मौजूद नर्सों सहित अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण इकाई और हृदय के मरीजों वाले आईसीयू में काम कर रहे चिकित्सा कर्मचारी बच्चों के लिए बेहतर काम कर सकते हैं। उन्हें बस बच्चों के कोविड से जुड़ा एक छोटा प्रशिक्षण दिया जा सकता है इसीलिए वे जरूरत पडऩे पर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार होंगे।’ देश भर के कई अस्पतालों ने कहा कि वे बच्चों के बीमार पडऩे की स्थिति में हालात के प्रबंधन के लिए अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने लगे हैं।
एक अन्य बाधा वेंटिलेटर और एचएफ एनसी मशीनों सहित मौजूदा उपकरणों की फिर से एक बार जांच करना है। बच्चों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मेकेनिकल वेंटिलेटर और एचएफएनसी मशीनें वयस्कों की मशीनों से थोड़ी अलग हैं ऐसे में पर्याप्त संख्या में खरीद और अस्पताल आधारित इलाज प्रोटोकॉल के साथ घर में इलाज का प्रोटोकॉल तैयार करना भी आवश्यक है।
पंडित ने बताया कि नए वेंटिलेटर को अद्यतन करने के लिए सॉफ्टवेयर अद्यतन करने के बाद बच्चों के इलाज वाले मोड में लाया जा सकता है। वेंटिलेटर निर्माता भी इस बात पर सहमत दिख रहे हैं। देश के प्रमुख इनवेसिव वेंटिलेटर निर्माताओं में से एक स्कैनरे टेक्नोलॉजीज के संस्थापक वी अल्वा ने कहा कि उनके वेंटिलेटर बच्चों के हिसाब से तैयार हैं लेकिन तीन किलोग्राम से कम वजन वाले बच्चों को नियोनैटल वेंटिलेशन मशीनों की जरूरत है जो मशीन जटिल होने के साथ ही महंगी भी है। अल्वा ने कहा कि केवल तृतीय श्रेणी के अस्पतालों के नियोनैटल आईसीयू में ही ऐसी मशीनें होंगी।
यहां तक कि अतिरिक्त बेड, बच्चों के अनुकूल इलाज के प्रोटोकॉल, मशीनों में बदलाव के साथ ही सबसे बड़ी चुनौती प्रशिक्षित चिकित्साकर्मियों की होगी जो ऐसे हालात में काम कर सकें। वर्मा सवाल करते हैं, ‘हमें इन नए बेड के लिए कर्मचारी कहां से मिलेंगे? हम कोविड और गैर-कोविड कर्मचारी को एक साथ नहीं रखते हैं।’
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी हाल ही में सभी राज्यों से कहा है कि कोविड की तीसरी लहर नवजात शिशुओं और बच्चों के लिए जोखिमपूर्ण रहने की आशंका के बीच देश में नवजात शिशुओं और बाल चिकित्सा देखभाल के लिए जरूरी स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं के आंकड़े उपलब्ध कराएं। राज्यों से कहा गया है कि वे पिछले तीन सालों में इन स्वास्थ्य सेवा इकाइयों में होने वाली मौतों की संख्या और बाल रोग विशेषज्ञों, नर्सों, सहायक कर्मचारी, पैरामेडिकल कर्मचारी की संख्या की भी जानकारी दें। जानकारी इसलिए जुटाई जा रही है कि स्वास्थ्य सेवा की स्थिति, मानव संसाधन, बुनियादी ढांचे, उपकरण और रिकॉर्ड की स्थिति का अंदाजा मिल सके। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने पिछले हफ्ते कहा था कि किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को अद्यतन किया जा रहा है क्योंकि भविष्य में वायरस के म्यूटेट होने की वजह से बच्चों में खतरा बढऩे की आशंका है।