साल भर से कोरोना के ग्रहण में डूबा बाजार इस बार होली के रंगों से गुलजार होने लगा है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत ज्यादातर बड़े शहरों के थोक और फुटकर बाजारों में होली की खरीदारी जोर पकडऩे लगी है। हालांकि होली आने में अभी करीब दो हफ्ते बचे हैं मगर कपड़ों, गुलाल, मेवों, खाने-पीने के सामान के ऑर्डर व्यापारियों के पास पहुंचने लगे हैं।
बाजार में बिखरा रंग
लखनऊ के प्रमुख थोक बाजार याह्यागंज रंग और गुलाल की दुकानों पर पिछले साल के मुकाबले ज्यादा रौनक दिख रही है। पिछले साल होली पर लॉकडाउन तो नहीं लगा था मगर कोरोनावायरस की आहट आने लगी थी, जिसकी वजह से त्योहार फीका ही रहा था। लेकिन इस बार कारोबारियों को कसर पूरी हो जाने की उम्मीद है। इसी वजह से बाजार में इस बार दाम भी नहीं बढ़े हैं। गुलाल का पिछले साल का स्टॉक ही अभी बाजार में निकला है और दाम भी पिछले साल जितने ही हैं। याह्यागंज बाजार के थोक कारोबारी अनिल प्रजापति बताते हैं कि गुलाल इस साल भी 40-45 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव ही बेचा जा रहा है। उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी के कारण इस बार हर्बल गुलाल बनाने वालों की फौज खड़ी हो गई है और दाम भी कम हैं। इस बार 100 रुपये किलो में ही हर्बल गुलाल मिल रहा है।
पिछले साल होली फीकी रहने से पिचकारी का बाजार भी ठंडा रहा था और ढेर सारा तैयार माल गोदामों मे ही रह गया था। मगर इस बार थोक व्यापारियों के पास छोटे शहरों व कस्बों से धड़ाधड़ ऑर्डर आ रहे हैं। खिलौना पिचकारियों के थोक विक्रेता कौशल अवस्थी का कहना है कि चीनी उत्पादों के बहिष्कार का असर बाजार में साफ दिख रहा है। देसी कंपनियों ने आकर्षक डिजाइन की पिचकारियां उतार दी हैं और उनके अच्छे ऑर्डर भी मिल रहे हैं। मगर चीनी पिचकारी बाजार से पूरी तरह गायब नहीं हुई है और नया-पुराना स्टॉक अभी दुकानों पर उपलब्ध है।
चिकन का टशन
लखनऊ और आसपास के इलाकों में होली पर चिकन के कपड़े सबसे ज्यादा बिकते हैं। साल भर से इनके बाजार पर मंदी पसरी थी, जो अब उठती नजर आ रही है। पिछले साल होली पर चिकन के कपड़ों की मांग जबरदस्त थी मगर उसके बाद पूरे साल खरीदारों का टोटा ही रहा। इस बार बाजार संभल रहा है। लखनऊ में चिकन कपड़ों के थोक और खुदरा व्यापारी खन्ना क्रिएशन के अजय खन्ना के लिए होली की सबसे बड़ी सौगात यही है कि कारेाबार संभल रहा है। उनका कहना है कि टीकाकरण शुरू हुए दो महीने होने जा रहे हैं, इसलिए सरकार को कोविड से मुक्ति का ऐलान कर देना चाहिए। उससे बाजार तेजी से चढ़ेगा।
खन्ना ने बताया कि चिकन के कपड़ों का सीजन होली से ही शुरू होता है और गर्मी के दौरान चार-पांच महीने चलता है। मगर पिछले साल होली के बाद से ही लॉकडाउन हो गया, जिसका खमियाजा कारोबारियों को उठाना पड़ा। मगर अब कारोबारियों के पास बाहर से ऑर्डर आ रहे हैं और स्थानीय बाजारों में भी खरीदारी बढऩे लगी है। उन्होंने बताया कि फैब्रिक की कीमत बढऩे और ढुलाई महंगी होने से चिकन के कपड़े पिछले साल के मुकाबले 8-10 फीसदी महंगे हुए हैं। बाहर के ऑर्डर अगर कम हैं तो स्थानीय व्यापारी अच्छे ऑर्उर दे रहे हैं। होली के करीब आते-आते बाहर से भी ऑर्डर बढ़ेंगे।
पकवान पर मेहरबान
कोरोना महामारी के दौरान लोग बेशक बाहर खाने से परहेज कर रहे थे मगर होली ने खाद्य सामग्री के बाजार में भी रौनक पैदा कर दी है। स्थानीय स्तर पर बनने वाले चिप्स, पापड़, वड़ी, कचरी जैसे जिस माल का उत्पादन लॉकडाउन के कारण बंद हो गया था, उसकी इकाइयां फिर चलने लगी हैं। राजधानी में रकीबगंज और अमीनाबाद ऐसी सामग्री के मशहूर बाजार हैं, जहां बड़े पैमाने पर दुकानें सज गई हैं। छोटी-मझोली इकाइयों में इनका उत्पादन भी जोर-शोर से हो रहा है।
लखनऊ के गणेशगंज में राम नमकीन, आगरा पेठा और लालवानी ब्रदर्स का कहना है कि कानपुर, हापुड़ और स्थानीय निर्माताओं के पास से भारी मात्रा में माल आ रहा है और जल्द खप भी जा रहा है। लालवानी ब्रदर्स के गुलाब मखीजा का कहना है कि कोरोना के दौर में खाने-पीने के सामान से लोग जितना परहेज कर रहे थे, टीकाकरण शुरू होने के बाद उन्होंने खरीदारी उतनी ही ज्यादा शुरू कर दी है। चूंकि कच्चे माल में ज्यादा तेजी नहीं आई है, इसलिए खाने-पीने के सामान के दाम भी ज्यादा नहीं बढ़े हैं। खुदरा बाजार में आलू के पापड़ पिछले साल की ही तरह 180 से 200 रुपये किलो बिक रहे हैं। चिप्स के दाम भी पिछले साल जितने ही हैं।
राम नमकीन के इंदर गुलाटी को लगता है कि महामारी के बाद खाने-पीने के सामान की ज्यादा इकाइयां खुल गई हैं। इससे माल की आवक भी बढ़ गई है और वैरायटी भी बढ़ गई है। साथ ही दाम के मोर्चे पर भी प्रतिस्पद्र्घा है, जिससे बाजार में पिछले साल जैसे ही दाम पर ज्यादा किस्मों का सामान मिल रहा है।