बीएस बातचीत
सरकार, डिजिटल स्वास्थ्य पहचान पत्र (हेल्थ आईडी) की शुरुआत के साथ ही देश भर में आयुष्मान भारत के डिजिटल स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए तैयार है। निवेदिता मुखर्जी और रुचिका चित्रवंशी के साथ बातचीत में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के मुख्य कार्याधिकारी आर एस शर्मा कहते हैं कि डिजिटल स्वास्थ्य आईडी को लेकर निजता या गोपनीयता की चिंता नहीं है और मरीजों की सहमति की वजह से उनका अपने डेटा पर पूर्ण नियंत्रण रहेगा। बातचीत के संपादित अंश:
प्रधानमंत्री ने डिजिटल स्वास्थ्य पहचान पत्र की शुरुआत की है। अब इस अभियान का सफर यहां से कैसा रहने वाला है?
हेल्थ आईडी के लॉन्च के बाद से ही पूरे देश में इसकी शुरुआत का रास्ता साफ हो गया है। अब तक यह छह केंद्र शासित प्रदेशों तक ही सीमित था। इस प्लेटफॉर्म की कई सुविधाओं की शुरुआत करने का काम शुरू हो जाएगा। टेली-कंसल्टेशन, डॉक्टरों का पंजीकरण, लैब और स्वास्थ्य सुविधाओं में तेजी आएगी।
इसकी घोषणा पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर की गई थी और सितंबर 2021 में इसे लॉन्च किया गया था। आखिर इसमें इतना समय क्यों लगा?
यह एक नई मिसाल है। कई प्रायोगिक परीक्षणों की आवश्यकता थी। व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड संरचना, स्वास्थ्य मानकों और टेली-कंसल्टेशन जैसी कई चीजों पर काम करना था। सहमति से जुड़े पहलू, अस्पतालों की स्वास्थ्य सूचना प्रबंधन प्रणाली और ऐसी कई चीजों को एकीकृत और समन्वित करना होगा। उदाहरण के लिए, पहली आधार संख्या जारी करने में 15 महीने लग गए क्योंकि हम अवधारणा के कई साक्ष्यों का परीक्षण करते हुए तकनीक को मंजूरी दे रहे थे।
डिजिटल हेल्थ आईडी से जुड़ी निजता संबंधी चिंताओं के बारे में आपका क्या मानना है? आधार के लिए भी ऐसे ही मुद्दों को उठाया गया था…
निजता एक मौलिक अधिकार है और सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसे अनिवार्य बताया है और आधार की जांच इस कसौटी पर की गई थी। उच्चतम न्यायालय ने 2018 में फैसला किया कि आधार, निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। निजता महत्त्वपूर्ण है और स्वास्थ्य प्रणालियों में और भी संवेदनशील डेटा होते हैं। ऐसे में इसकी पूरी संरचना डेटा के मालिक की सहमति पर आधारित है। मरीज की सहमति के बिना कोई डेटा साझा नहीं किया जाता है। केंद्रीय स्तर पर कोई डेटा एकत्रित नहीं किया जाता है। कोई केंद्रीय रजिस्ट्री नहीं है। डेटा जहां है वहीं रहता है और मरीज ही उस डेटा को देख सकते हैं या निकाल सकते हैं। इसलिए, इसमें गोपनीयता को लेकर कोई चिंता की बात नहीं है।
कुछ कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार स्वैच्छिक होते हुए भी अनिवार्य हो जाता है। इस लिहाज से स्वास्थ्य आईडी के लिए क्या रणनीति होगी?
यह आधार की तरह एक विशिष्ट स्वास्थ्य पहचान पत्र है लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। यह स्वैच्छिक है। सरकार जहां भी खर्च कर रही है और सब्सिडी दे रही है, वहां आधार अनिवार्य है। आयुष्मान भारत के लिए हमने आधार को अनिवार्य कर दिया है। लेकिन जिन्हें कोई सहायता नहीं चाहिए, वे किसी अन्य मोबाइल नंबर का उपयोग करके आधार के बिना स्वास्थ्य पहचान पत्र बना सकते हैं।
यह डिजिटल हेल्थ कार्ड अनिवार्य नहीं होने पर कैसे व्यापक स्तर पर कारगर हो पाएगा?
यह स्वास्थ्य आईडी अनिवार्य होने की वजह से लोकप्रिय नहीं हो पाएगा बल्कि यह सुविधाओं की पेशकश की वजह से लोकप्रिय होगा। यह तंत्र सूचनाओं के आदान-प्रदान और इस्तेमाल में सक्षम होंगे। हम इसे यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस या यूपीआई के समान एक सार्वभौमिक स्वास्थ्य इंटरफेस कह रहे हैं। यूपीआई ने बैंकों के भुगतान का रास्ता खोल दिया है। यह ऐप्लिकेशन किसी बैंक से नहीं जुड़ा है। यह एक प्रोटोकॉल की तरह है। यह एक प्रोटोकॉल-आधारित नेटवर्क होने जा रहा है जहां कई कनेक्शन स्थापित होंगे और इसलिए आप केवल एक विशेष ऐप्लिकेशन तक ही सीमित नहीं रहेंगे।
निजी अस्पतालों से आपको क्या प्रतिक्रिया मिली है?
हम इस प्रक्रिया को शुरू करने जा रहे हैं और डॉक्टरों या अस्पतालों की एक टीम तैयार कर रहे हैं। कार्ड निजी और सरकारी अस्पतालों में काम करेगा। हम इसका प्रचार करेंगे क्योंकि यह सभी की प्रतिबद्धता है। अस्पताल, स्वास्थ्य सुविधाएं इसकी अहमियत को जानेंगे क्योंकि इससे एकाधिकार खत्म होगा।
पिछले साल आयुष्मान भारत को लेकर कोई काम नहीं हो सका। ऐसे में 2021 में क्या उम्मीदें हैं?
हम चार क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। पहला काम यह है कि लोगों में उनके अधिकारों को लेकर अधिक जागरूकता पैदा की जाए। हम एक छोटा, प्लास्टिक का आयुष्मान कार्ड बना रहे हैं और इसे मुफ्त में बांट रहे हैं ताकि बीमार व्यक्ति अस्पतालों में कार्ड दिखा सके और उन्हें बाहर न निकाला जाए। दूसरी बात यह है कि हम अस्पताल के पैनल को बढ़ा रहे हैं, ताकि निजी क्षेत्र के और अस्पताल इसके दायरे में आ सकें। तीसरा, हमने लगभग 600 लाभ पैकेजों की दरों को युक्तिसंगत बनाया है। कई शिकायतों में खराब दरों की शिकायत भी शामिल हैं। वर्तमान में निजी क्षेत्र की भागीदारी लगभग 55 प्रतिशत है और अस्पतालों की संख्या लगभग 50 प्रतिशत है। हम अस्पतालों के राष्ट्रीय एक्रीडेशन बोर्ड और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से स्वीकृति मिलने पर उच्च दर देकर निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित कर रहे हैं। अंत में, हम यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि क्षतिपूर्ति के दावों की ऊपरी समय-सीमा कम करके अधिकतम 15 दिन किया जाए।
कितने राज्यों को अभी कवर किया जाना है?
33 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश इसका हिस्सा हैं। केवल दिल्ली, ओडिशा और पश्चिम बंगाल आयुष्मान भारत का हिस्सा नहीं हैं। इस वित्त वर्ष में तेलंगाना को जोड़ा गया था।
टीकाकरण प्रमाणपत्र एक बड़ा मुद्दा रहा है। ब्रिटेन में इसको लेकर क्या समस्या है और क्या बाधाएं है?
हमारी प्रमाणपत्र प्रक्रिया कई देशों की तरह मजबूत है। केवल मामूली अंतर यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार केवल जन्म तिथि स्वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं है। हम केवल जन्म का साल इक_ा कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए, हम उन्हें उनके पासपोर्ट में लिखी तारीख और जन्म का महीना दर्ज करने के लिए कह रहे हैं ताकि वे प्रमाण पत्र डाउनलोड कर सकें, जो डब्ल्यूएचओ का मानक भी है और इसमें जन्म की पूरी तारीख होती है। उस हिस्से को हम लाइव कर रहे हैं।
क्या तंत्र में टीकों की कमी है और मांग कैसी है?
मुझे नहीं लगता कि कोई कमी है। मांग अच्छी है। हमने कई दिनों में 1 करोड़ के आंकड़े को पार कर लिया है। स्वीडन के व्यापार आयुक्त ने हाल ही में कहा था कि हमलोग एक दिन में पूरे स्वीडन की आबादी जितना टीकाकरण कर रहे हैं। अच्छी बात यह है कि टीका को लेकर हिचकिचाहट खत्म हो गई है। उम्मीद है कि हम साल के अंत तक निर्धारित लक्ष्य तक पहुंच जाएंगे।