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जीएसटी ने बदल दिया सूरत के कपड़ों का रंग

Last Updated- December 11, 2022 | 5:55 PM IST

37 वर्षीय मोंटी मंघानी के लिए वर्ष 2017 महत्त्वपूर्ण साबित हुआ। सालों के संघर्ष के बाद सूरत में उनकी व्यापारिक इकाई का वार्षिक राजस्व एक करोड़ रुपये तक पहुंचने वाला था। सूरत  सिंथेटिक कपड़ों का देश का सबसे बड़ा केंद्र है।
लेकिन मंघानी की सफलता अल्पकालिक साबित हुई। सरकार ने उस साल जुलाई में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू किया और नई कर संरचना उनकी छोटी इकाई के लिए चुनौती बन गई। आखिरकार उन्हें दुकान बंद करने और व्यापारिक विनिर्माण क्षेत्र में लगे अपने पिता के साथ मिलकर काम करने को मजबूर होना पड़ा। अब दोनों करीब दो करोड़ रुपये का कारोबार कर रहे हैं।

मंघानी पिता-पुत्र का कहना है कि सूरत की सिंथेटिक कपड़ा मूल्य में पॉलिएस्टर यार्न की कताई से लेकर अपरिष्कृत कपड़े की बुनाई तक कई कार्यक्षेत्र शामिल रहते हैं, जिसे देश भर में थोक विक्रेताओं को बेचने से पहले रंगा और संसाधित किया जाता है।

मंघानी जैसे कपड़ा व्यापारी, जिन्हें व्यापारी विनिर्माता के रूप में भी जाना जाता है, विद्युत करघों पर बुने हुए अपरिष्कृत कपड़ा खरीदते हैं और फिर इसे थोक विक्रेताओं को बेचने से पहले उस पर रंगाई, प्रसंस्करण, कढ़ाई आदि जैसे काम कराते हैं।

पिता-पुत्र का कहना है कि व्यापारी विनिर्माताओं को ही प्रत्येक चरण में करों का भुगतान करना पड़ता है और उनका हिसाब-किताब करना पड़ता है। जीएसटी से पहले वाले समय के विपरीत अनौपचारिक तरीके से काम करने वाला अकेला उद्यमी ऐसा नहीं कर सकता है।

हालांकि दरों के लिहाज से सूरत के कपड़ा उद्योग के मामले में शायद काफी कुछ बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन पिछले पांच वर्षों में काफी समेकन नजर देखा गया है। बड़े भागीदार अस्तित्व बचाने का इंतजाम कर रहे हैं और छोटे भागीदार या तो कारोबार से बाहर निकल रहे हैं या फिर मंघानी जैसे बड़े भागीदारों के साथ आ रहे हैं। मोंटी मंघानी का कहना है कि कुल मिलाकर जीएसटी पूरी मूल्य श्रृंखला में परिचालन को औपचारिक रूप प्रदान करते हुए उद्योग के लिए अच्छा रहा है। अब ऋण या योजनाओं के लिए आवेदन करना आसान हो गया है, क्योंकि जीएसटी से कारोबारों में वैधता आई है। एकमात्र दोष दिक्कत यह है कि बहुत-से छोटे और एकल उद्यमी जीएसटी का कार्यान्वयन जारी नहीं रख सकते हैं।

जीएसटी के पहले साल के दौरान सूरत में कपड़ा क्षेत्र कर दरों और संरचना दोनों के ही लिहाज से प्रभावित हुआ था, क्योंकि कच्चे माल से लेकर तैयार उत्पाद तक की पूरी मूल्य श्रृंखला कई चरणों से गुजरती है, प्रत्येक चरण में एक अलग कर दर होती।

उदाहरण के लिए पॉलिएस्टर पार्शली ओरियंटेड यार्न (पीओवाई) जैसे कच्चे माल पर वर्ष 2017 से 18 प्रतिशत जीएसटी लगता रहा है, लेकिन जब यह टेक्सचराइज्ड यार्न में तब्दील हो जाता है, तो नई कर व्यवस्था के पहले साल में इसकी दर 18 प्रतिशत से 12 प्रतिशत हो गई। पहले साल में उद्योग के लिए एक बड़ा झटका यह था कि भले ही टेक्सचराइज्ड यार्न को अपरिष्कृत कपड़े में तब्दील करने पर पांच प्रतिशत जीएसटी लगता हो, लेकिन बुनकर इनपुट टैक्स क्रेडिट रिफंड का लाभ नहीं उठा सकते थे। इसकी अनुमति वर्ष 2018 में दी गई थी। हालांकि आज भी रिफंड आवेदनों के निपटान में छह से आठ महीने लग जाते हैं। यही वजह है कि उद्योग के भागीदार रिफंड के लिए आवेदन करना पसंद नहीं करते हैं।
सूरत के बाहरी इलाके के पिपोदरा में एक विद्युत करघा लूम इकाई चलाने वाले रेनी फैशन के कमलेश कोताडिया कहते हैं कि रिफंड के लिए आवेदन करने की तुलना में, जिसके निपटान में महीनों का समय लगता है, सरकार के पास जमा हुए क्रेडिट को अगले साल तक छोड़ देने और फिर कर देयता के लिए इसे समायोजित करने से कारोबार करना कहीं अधिक सुविधाजनक हो जाता है। इसके अलावा इकट्ठे हुए क्रेडिट को नई मशीनरी की खरीद के लिए करों के भुगतान में लगाया जा सकता है, जिससे हमारा पूंजीगत बोझ कम हो जाता है। जीएसटी के परिचालन वाले पांच वर्षों के दौरान सूरत के कपड़ा उद्योग में मूल्य श्रृंखला के दो प्रमुख स्तरों पर समेकन देखा गया है – बुनकर और व्यापारी विनिर्माता, जिन्हें कपड़ा व्यापारी के रूप में जाना जाता है।

First Published - July 1, 2022 | 12:28 AM IST

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