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हालात सुधरते ही चल पड़ी पलायन एक्सप्रेस

Last Updated- December 11, 2022 | 7:50 PM IST

कोरोना महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन के बाद देश के विभिन्न हिस्सों से उत्तर प्रदेश के अपने गांव-घर वापस लौटे लाखों श्रमिकों की भीड़ अब गायब हो गई है। हालात सुधरने के साथ न केवल वापस आए लोग दूसरे प्रदेशों में काम पर लौट गए हैं बल्कि उनके साथ कई नए लोग भी काम की तलाश में पलायन कर रहे हैं।
हालत यह है कि बीते दो साल में जहां रबी की कटाई और गन्ने के मौसम में मजदूरों की कमी नहीं थी वहीं इस बार मजदूरों का टोटा है। कोरोना संकट से उबरने के बाद सबसे पहले कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की वापसी शुरू हुई थी, वहीं हालात में सुधार आने के बाद अब खेतिहर मजदूर भी दूसरे प्रदेशों का रुख कर चुके हैं। खेतिहर मजदूरों का पलायन अभी भी जारी है।
कोरोना संकट का पहला दौर खत्म होने के बाद मुंबई, महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली जाने वाली ट्रेनों में जैसी भीड़ नजर आ रही थी वैसी ही स्थिति अब पंजाब की ओर जाने वाली रेलगाडिय़ों में दिख रही है। उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा खेतिहर मजदूर पंजाब और हरियाणा का रुख करते हैं।
उद्योगों के लिहाज से देखें तो सबसे ज्यादा कारखानों में काम करने वाले मजदूर और निर्माण श्रमिकों ने दूसरे राज्यों का रुख किया है। इस बार महाराष्ट्र और गुजरात में बड़ी तादाद में बुनकरों का भी पलायन हुआ है। उत्तर प्रदेश में पावरलूम का हब कहे जाने वाले शहर टांडा के कारोबारी इश्तियाक अंसारी का कहना है कि मांग में कमी और अन्य दिक्कतों के कारण यूपी में धंधा मंदा हो गया है। लिहाजा बुनकरी का काम करने वालों में गुजरात और महाराष्ट्र में नया ठिकाना खोज लिया है। कोरोना संकट के दौरान ही उत्तर प्रदेश में पावरलूम के लिए बिजली दरों में भी संशोधन कर दिया गया जिसके चलते धंधे का मुनाफा घट गया था। उनका कहना है कि हथकरघा कारीगरों का पलायन तो लंबे समय से जारी था मगर कोरोना की मार के बाद पावरलूम क्षेत्र से भी लोग दूसरे राज्यों को निकल गए हैं। मजदूरों के सेवायोजना के मामले में कालीन उद्योग की हालात में जरूर सुधार हुआ है जहां विदेश से ऑर्डर मिलने के बाद काम बढ़ गया है।
कोरोना से पहले से ही दिक्कतों से जूझ रहे टेनरी उद्योग से भी पलायन में तेजी आई है। कानपुर के टेनरी कारोबारी हाजी फहीम का कहना है कि पहले प्रदूषण के नाम पर धंधा खत्म हुआ था और रही सही कसर कोरोना के दौरान हुए लॉकडाउन ने निकाल दी थी। उनके मुताबिक बंगाल में बड़ी तादाद में टेनरियां खुल गई हैं और मजदूर भी उधर का रुख कर रहे हैं। पहले चरण के लॉकडाउन में टेनरी में काम करने वाले बिहार के मजदूर अपने घर वापस चले गए थे। हालात संभलने के बाद मजदूरों ने वापसी तो नहीं की बल्कि कुछ स्थानीय मजदूरों ने बंगाल का रास्ता पकड़ लिया।
उत्तर प्रदेश खेत मजदूर संघ से जुड़े आशीष अवस्थी बताते हैं कि खेतिहर मजदूरों ने जरूर काफी समय तक छोटे मोटे काम धंधे कर अपना ठिकाना यहीं जमाया मगर बाद में उनमें से भी ज्यादातर पंजाब और हरियाणा लौट गए हैं। इस बीच अच्छी बात यह भी रही कि मॉनसून लगातार बेहतर रहा है और खेती भी अच्छी हुई है। इसके चलते पंजाब हरियाणा में मजदूरों की मांग भी बढ़ी है और मजदूरी भी अच्छी मिलने लगी है। उनका कहना है कि लॉकडाउन के पहले चरण के बाद भी अन्य राज्यों में भवन निर्माण की गतिविधियां शुरू नहीं होने से निर्माण श्रमिक लंबे समय तक उत्तर प्रदेश में ही टिके रहे। इसका नतीजा मजदूरी की दरों में कमी के रूप में भी दिखाई पड़ी लेकिन बीते एक साल से रियल एस्टेट क्षेत्र में सुधार होने और निर्माण गतिविधियों में तेजी आने से हालात में सुधार हुआ है। हालांकि तेजी से देश के अन्य राज्यों में भवन निर्माण के काम में तेजी आई है, वैसी तेजी उत्तर प्रदेश में नहीं दिख रही है। लिहाजा निर्माण श्रमिकों के पास स्थानीय स्तर पर ज्यादा काम नहीं है और वे बाहरी राज्यों को जाने के लिए मजबूर हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता का कहना है कि कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन के पहले दौर में करीब 90 लाख प्रवासी मजदूरों ने घर वापसी की थी। बड़ी तादाद में श्रमशक्ति के वापस आने के बाद उनके जीवन-व्यापन के लिए प्रदेश सरकार ने न केवल मजदूरों की स्किल मैपिंग करवाई बल्कि प्रदेश के छोटे व मझोले उद्यमों में रोजगार के लिए प्रोत्साहन भी दिया। योगी सरकार ने बंदी की हालात का सामना कर रहे छोटे व मझोले उद्योगों के लिए विशेष तौर पर शिविर लगाकर कर्ज बांटे और उनसे अपने उद्यम में कम से कम एक प्रवासी मजदूर के सेवायोजन की अपील की। सरकार की इस अपील के बाद दावों के मुताबिक बड़ी तादाद में प्रवासी मजदूरों को काम भी मिला। हालांकि उसी अनुपात में पहले से कार्यरत मजदूरों की रोजी रोटी पर भी आंच आई।
औद्योगिक विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि बीते पांच सालों में योगी सरकार में एमएसएमई सेक्टर में कारोबार करने के लिए 76.73 लाख लोगों को 24,2028 करोड़ रुपये का ऋण दिया गया है। सरकार का दावा है कि एमएसएमई क्षेत्र को मिली इस संजीवनी के चलते प्रदेश में दो करोड़ नए लोगों को रोजगार मिला है। अकेले कोरोना संकट के दौरान ही इस क्षेत्र में करीब डेढ़ लाख से अधिक नई इकाइयां लगाई गईं हैं। आंकड़ों के मुताबिक बीते साल अप्रैल से नवंबर तक 1,25,408 नई एमएसएमई इकाइयों को 16,002 करोड़ रुपये का ऋण मुहैया कराया गया था।
हालांकि सरकारी दावों के उलट उद्योगों से जुड़े लोगों का कहना है कि देश भर में आज भी अकुशल और अद्र्घकुशल मजदूरों की आपूर्ति करने वाले सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार ही हैं। हालात में सुधार आने के बाद मजदूरों का पलायन होना ही था। कोरोना संकट के बाद गृह राज्य में रोजगार नहीं मिलने से पलायन की रफ्तार बढ़ी है।

First Published - April 15, 2022 | 11:59 PM IST

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