नई दिल्ली के पहाडग़ंज में एक स्थानीय रेस्तरां में ओहाना ली ग्लेनेक लंच का लुत्फ उठा रही हैं। राजधानी दिल्ली आने के पांच दिन बाद ओहाना स्कार्फ और स्टोल खरीदने में ही मसरूफ रहीं। फ्रांस की ओहाना मूलत: कारोबार करती हैं और भारत से कपड़े ले जाकर अपने देश में बेचती हैं। कोविड की वजह से वह इस बार दो साल के अंतराल के बाद यहां आई हैं। वह कहती हैं, ‘मैं 2019 में आखिरी बार यहां थी और उस वक्त से चीजें काफी बदल गई हैं।’ उन दिनों पहाडग़ंज में करीब 1,200-1,500 होटल थे जहां किराये की दर अलग थी और यहां अंतरराष्ट्रीय पर्यटक भरे हुए थे।
उन्होंने हाल में खुले हेयर सलून की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘कई छोटी दुकानें, चाय के स्टॉल और कैफे जहां मैं अक्सर जाती थी, वे सभी बंद हो गए। मुझे लगता है कि उनकी कमाई में घाटा होने लगा जिसकी वजह से उनका काम प्रभावित हुआ है। लेकिन कुछ नई जगहों पर भी ये दुकानें खुल गई हैं।’ ओहाना कहती हैं कि विदेशियों की वजह से इस क्षेत्र को हिप्पी हॉटस्पॉट कहा जाता था लेकिन एक बात अब यहां अच्छी दिखती है कि इस क्षेत्र में अब ज्यादा स्थानीय लोग दिखते हैं।
हालांकि व्यापारी और यहां के कारोबार मालिक इतने उत्साह में नहीं दिखते हैं। उन्हें उम्मीद थी कि 27 मार्च को अंतरराष्ट्रीय विमान सेवा बहाल होने के बाद विदेशी पर्यटक आएंगे। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से उनकी उम्मीदों पर फिलहाल पानी फिर गया है। हालांकि पहाडग़ंज में पर्यटकों की एक अच्छी तादाद उसी क्षेत्र से है। अरेबियन शीशा कैफे में रूस और उज्बेक व्यंजन का लुत्फ उठाया जा सकता है। इस कैफे का संचालन करने वाले श्याम राजे ने कहा, ‘हमारी किस्मत ही खराब है, इसके बारे में क्या बताएं।’ उनका रेस्तरां खाली है और उन्हें नजदीक के होटलों से कुछ ऑर्डर मिल जाते हैं लेकिन यह पूरे दिन के लिए काफी नहीं है।
इस क्षेत्र में ट्रैवल एजेंसी चलाने वाले रूबिन मनचंदा ने कहा, ‘पहाडग़ंज के ज्यादातर पर्यटक रूस, यूक्रेन और उज्बेकिस्तान के होते थे लेकिन युद्ध की वजह से यहां की तस्वीर बदल गई है। अब यहां जो लोग कारोबार करने आते हैं उनमें स्पेन और इजरायल के लोग हैं। उनका टिकट पहले ही बुक हो चुका है (इसलिए उन्हें उनकी सेवाएं नहीं चाहिए) और उन्हें मुद्रा बदलने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि वे कार्ड का इस्तेमाल करते हैं।’ मनचंदा ट्रैवल एजेंसी के बाहर ऑर पेले हरे रामा गेस्ट हाउस जाने का रास्ता पूछ रहे हैं। इजरायल के कारोबारी पेले भारत से अगरबत्तियां खरीदते हैं और उन्हें इजरायल में बेचते हैं, जहां वह इस महीने के आखिर तक वापस जाएंगे।
तीन महीने पहले के मुकाबले यहां बाजार में काफी हलचल है। लेकिन यहां ज्यादातर स्थानीय लोगों की भीड़ है। हालांकि विदेशी पर्यटकों की भीड़ कम ही है लेकिन घरेलू मांग में तेजी की वजह से पहाडग़ंज के होटलों को कुछ घाटे की रिकवरी करने में मदद मिली है। डी क्रूज होटल में एक व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘पिछले कुछ हफ्ते में हमारी बुकिंग में लगभग 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन यह 90 फीसदी घरेलू मांग के चलते हुआ है। लेकिन इससे हमें हमारे कुछ घाटे की रिकवरी करने में मदद मिलेगी जो काफी लंबे समय तक रहा है।’ होटल का हर रात का शुल्क करीब 1,800 रुपये है लेकिन महामारी के दौर के बीच जुलाई 2021 में खुलने पर इसकी दर 800 रुपये से 1,000 रुपये हो गई। प्रबंधक हरप्रीत सिंह का कहना है कि मैजिक ट्री होटल में बुकिंग 100 फीसदी तक हो गई है और यह घरेलू मांग की वजह से है। उनका कहना है, ‘लगभग 60 फीसदी चेक-इन करने वाले लोग भारतीय हैं जो काम के लिए दिल्ली आए हैं। कई लोग अभी छुट्टियों पर जा रहे हैं क्योंकि गर्मी भी बहुत ज्यादा है। बुकिंग की तादाद अधिक है ऐसे में लोग काफी लंबे समय तक लोग ठहर नहीं रहे हैं।’
पहाडग़ंज मार्केट एसोसिएशन के सदस्य रमन सखूजा का कहना है कि सरकार को हस्तक्षेप करते हुए मदद करनी चाहिए जिस तरह कर्ज में छूट और आवास कर तथा बिजली शुल्क में राहत दी गई थी। उनका कहना है, ‘प्रशासन को भी दिल्ली का प्रचार-प्रसार एक पर्यटन केंद्र के तौर पर करने की जरूरत है। हम होटलों की घरेलू मांग में बढ़ोतरी देख रहे हैं लेकिन यह या तो ट्रांजिट पर्यटकों के लिए है या फिर जो लोग कुछ समय के वास्ते काम के लिए रुकते हैं।’ पहाडग़ंज में लोग अन्य जगहों के बारे में भी बात कर रहे हैं मसलन मनाली, वाराणसी, कसौली। पहाडग़ंज ठहरने के लिए एक सस्ता विकल्प है। सपना होटल के बाहर केरल के करीब 20 लोगों का समूह किफायती होटल की तलाश में है। उनका बजट 300 रुपये प्रतिदिन है। अपने तीन दोस्तों के साथ यात्रा कर रहे जो उत्साह में कहते हैं, ‘हम यहां एक दिन के लिए हैं क्योंकि हमें ट्रेन के लंबे सफर के बाद आराम करने की जरूरत है। ऐसे में ज्यादा भुगतान करके ठहरने का कोई मतलब नहीं है। अगली सुबह हम मनाली निकलेंगे।’
सखूजा का कहना है, ‘समस्या यह है कि वे दिल्ली को ऐसे शहर के तौर पर नहीं देखते हैं जहां घूमा जा सकता है। सभी राज्यों का अपना पर्यटन विज्ञापन है। हमें दिल्ली के लिए भी कुछ ऐसा करना चाहिए। इससे हमारे क्षेत्र को भी मदद मिलेगी क्योंकि लोग शहर को न केवल एक संपर्क बिंदु के तौर पर बल्कि उससे कुछ ज्यादा देखते हैं।’ पहाडग़ंज को भी इस वक्त इससे कुछ ज्यादा की जरूरत है।