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  विशेष  क्या किसानों के पास वाकई विकल्प नहीं!
विशेष

क्या किसानों के पास वाकई विकल्प नहीं!

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —October 8, 2020 11:26 PM IST0
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पंजाब के मोगा जिले के डाबरा गांव में अदाणी के गेहूं साइलो (भंडार) के बाहर अहले सुबह बुजुर्ग किसानों का एक समूह एक और दिन के विरोध प्रदर्शन की तैयारी में जुटा था। इससे पहले रात भर उन्होंने दो लाख टन क्षमता वाले इस विशाल परिसर के बाहर प्रदर्शन किया था। पूरे पंजाब में रिलायंस द्वारा संचालित रिटेल शृंखला, निजी रोड टोल नाकों और अदाणी के अन्य साइलो इन दिनों किसानों के धरना-प्रदर्शन के स्थल बने हुए हैं। किसान हाल में बने कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवद्र्घन एवं सरलीकरण) कानून को खत्म करनेे की मांग कर रहे हैं।
2007 में डाबरा में बनेे अदाणी साइलो की तरह की केंद्र सरकार देश भर में साइलो बनाने का प्रस्ताव किया है। इसका विरोध करने वाले किसानों का कहना है कि यह आने वाले दिनों में हमारे लिए प्रतिकूल होगा। अदाणी साइलो भारत में सबसे बड़ा गेहूं भंडारण स्थल है, जिसे 2008 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने सरकारी खरीद केंद्र (मंडी) के तौर पर अधिसूचित किया था। इतनी ही क्षमता का एक और गेहूं साइलो हरियाणा के कैथल में भी है। मध्य प्रदेश में भी छह जगहों पर ऐसे साइलो बने हुए हैं। नए कानून के तहत किसान मंडी जाने के बजाय अपनी उपज सीधे अदाणी के साइलो में ला सकते हैं। जहां उपज को तौला और खरीदा जाएगा। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) 30 साल के रियायती करार के तहत इस साइलो को चलाने के लिए करोड़ों रुपये का किराया चुकाता है, वह तीन दिन में किसानों को उपज का मूल्य सीधे अदा करेगा। अदाणी के साइलो को सरकार की अधिसूचित मंडी में बदलने के पीछे तर्क दिया गया था कि मंडी में कमीशन एजेेंटों को किए जाने वाले 2.5 फीसदी शुल्क की बचत होगी और किसानों की उपज की बिक्री प्रक्रिया में तेजी आएगी। नए कानून में इस तरह के सभी साइलो, गोदामों और कृषि उपज संग्रह केंद्रों को व्यापार क्षेत्र के तौर पर निर्धारित किया गया है। कोई भी किसान या कंपनी देश भर में इन क्षेत्र में कृषि उपज की खरीद-बिक्री करने के लिए स्वतंत्र होगी।
अदाणी के साइलो से धान के खेतों के किनारे कुछ किलोमीटर चलने के बाद दारोली भाई गांव आता है। यहां के 70 वर्षीय किसान लायब सिंह की तरह ही कई सारे किसान अपना गेहूं  वर्षों से अदाणी के साइलो में जमा करते हैं। सिंह ने कहा, ‘अदाणी के साइलो में गेहूूं लाने का हमें काफी फायदा है। यहां मंडी की तुलना में हमारी उपज का वजन पांच से सात क्विंटल ज्यादा तौला जाता है। वे हमारे गेहूं को लेने से मना नहीं करते हैं जबकि मंडी में मामूली खामी बता गेहूं को लेने से मना कर दिया जाता है। आज मेरी उपज के दाम भी 15,000 रुपये अधिक होंगे। शुरुआती वर्षों में वे न्यूनतम समर्थन मूल्य से 20 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा देते थे। लेकिन पिछले कुछ साल से यह लाभ नहीं दिया जा रहा है।’ गांव के एक बुजुर्ग किसान गुरमेल सिंह ने कहा, ‘अदाणी को मेरा गेहूं बेचने में करीब तीन घंटे का समय लगता है। मंडियों में आढ़तियों को गेहूं बेचने से पहले करीब तीन दिन लगते हैं। यहां वे खुद गेहूं को साफ-सुथरा और छांटते हैं। मंडियों में मेरे गेहूं की चोरी का भी जोखिम है क्योंकि यह कुछ दिनों तक खुले में पड़ा रहता है। यहां हमारी ट्रॉली उनके दरवाजे के बाहर कतार में खड़ी होती हैं और वे कुछ घंटे में इसे खरीद लेते हैं। लेकिन हाल में इंतजार का समय बढ़ा है और अब वे पहले की तुलना में ज्यादा गेहूं को खारिज कर रहे हैं।’
एफसीआई के मोगा बेस डिपो के एक अधिकारी ने कहा कि अदाणी के साइलो तीन स्तरों- श्रमिकों को दिहाड़ी, मंडी से गोदामों तक पहुंचाने की परिवहन लागत और गेहूं के भंडारण और परिवहन के लिए जूट की बोरी खरीदने पर सरकार के करोड़ों रुपये बचाते हैं। इन साइलो में गेहूं की बरबादी ना के बराबर है, जबकि एफसीआई के गोदामों में काफी गेहूं खराब हो जाता है।
ज्यों ही सुबह से दोपहर हुई, अदाणी साइलो के बाहर प्रदर्शन स्थल पर भीड़ जमा हो गई। अदाणी साइलो पर दिन-रात विरोध-प्रदर्शन करने वाले किसानों में से एक बूटा सिंह ने कहा, ‘बड़ी कंपनियां ऐसे साइलो और गोदाम बनाएंगी और एक या दो साल आकर्षक कीमत देंगी। एक बार किसानों ने उन्हें बेचना शुरू किया और सरकार के बाजार से गायब हुई, वे जानबूझकर कीमतों को घटाना शुरू कर देंगे। क्या यह वैसा ही नहीं है, जैसा रिलायंस जियो ने किया है? मुफ्त में फोन और डेटा दो, बाजार कब्जाओ और फिर ज्यादा कीमत वसूलना शुरू कर दो। किसान बड़ी कंपनियों के गुलाम बन जाएंगे।’
एक अन्य बुजुर्ग किसान गुरनाम सिंह ने कहा, ‘नया विधेयक मंडियों को खत्म कर देगा और सरकारी खरीद घटा देगा। किसानों को एमएसपी की गारंटी देने वाला कोई कानून नहीं है।’
सरकार ने ऐसे साइलो विकसित करने के लिए एक महत्त्वाकांक्षी योजना बनाई है। सरकार ने आने वाले वर्षों में देश भर में एक करोड़ टन की साइलो भंडारण क्षमता विकसित करने को मंजूरी दी है। इस योजना के तहत 62 साइलो बनेंगे, जिनमें 10 पंजाब में बनाए जाएंगे। वहीं अन्य हरियाणा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और बिहार में बनेंगे। इनमें से हरके की क्षमता 50,000 टन होगी।
इस कारोबार में अदाणी के अलावा प्रेम वत्स का फेयरफैक्स समूह एक बड़े खिलाड़ी के रूप में उभरा है। नैशनल कॉलेटरल मैनेजमेंट सर्विस (एनसीएमएस) में बहुलांश हिस्सेदारी फेयरफैक्स की है। एनसीएमएस देश भर में ऐसे साइलो बनाने के लिए कम से कम 15 ठेके मिले हैं। एनसीएमएस के ठेके के तहत देश में कम से कम आठ लाख टन क्षमता के साइलो बनाए जाने हैं। अदाणी के पास 8.75 लाख टन की साइलो भंडारण क्षमता है। वह चार लाख टन क्षमता के साइलो उत्तर प्रदेश के कन्नौज और बिहार के दरभंगा एवं समस्तीपुर में बना रही है। नए कानून से देश भर में ये साइलो और हजारों निजी गोदाम कारोबारी क्षेत्र बन गए हैं, जहां किसान अपनी उपज बेच सकते हैं और कोई भी व्यक्ति मंडी के बाहर कोई भी उपज खरीद सकता है। कंपनी के उपाध्यक्ष पुनीत मेहंदीरत्ता कहते हैं, ‘किसान साइलो के कुशल और पारदर्शी कामकाज से इतने खुश हैं कि उन्हें किसी भी तरह के प्रोत्साहन का लोभ देने की जरूरत नहीं है। उनकी प्रतिक्रिया इतनी बेहतर है कि वे पिछले 12 साल से साइलो पर आए हैं। साइलो उनके जीवन जीने का तरीका बन गया है। एक बार जब कोई किसान साइलो आएगा तो उसे किसी अन्य मंडी में नहीं जाना पड़ेगा, भले ही उसे कुछ समय के लिए इंतजार क्यों न करना पड़े। अदाणी एग्री लॉजिस्टिक्स इस क्षेत्र में अग्रणी है। फिलहाल हम करीब दस लाख टन खाद्यान्न का प्रबंधन कर रहे हैं। हमारी योजना है कि आने वाले वर्षों में क्षमता दोगुनी की जाए।’
प्रदेश के संगरूर, लुधियाना और मोगा जिले के कई किसानों से बिज़नेस स्टैंडर्ड ने बात की और उन्होंने नए कानून को लेकर एक डर जाहिर किया। कानून के मुताबिक किसान और कंपनियां या उनसे खरीद ारी कर रहे व्यापारी के बीच किसी भी विवाद का निपटारा सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के माध्यम से ही किया जा सकता है, जिसे दीवानी अदालत की शक्तियां दी गई हैं। संगरूर के एक किसान राजबीर सिंह ने कहा, ‘बड़ी कंपनियां सरकार चलाती हैं। एक बड़ी कंपनी के साथ एक मामूली एसडीएम क्या कर सकता है? अब अगर सरकार भुगतान में देरी करती है तब भी हमें पता है कि पैसा आएगा। एक किसान कुछ भी नहीं कर सकता अगर कंपनियां भुगतान करने से इनकार कर दे या फिर भुगतान में देरी हो। कानून हमें गुलाम बना देगा।’

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