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दूसरी खुराक में कम हुई दिलचस्पी

Last Updated- December 12, 2022 | 12:01 AM IST

भारत ने 21 अक्टूबर को कोविड-19 महामारी से बचाव के टीकों की 1 अरब खुराक लगाकर इतिहास रच दिया। हालांकि अब अगली 100 करोड़ खुराक लगाने का रास्ता सीधा नहीं दिख रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने भी स्वीकार किया है कि पहली खुराक लगवा चुके लोगों को दूसरी खुराक लगवाने के लिए तैयार करना अगली बड़ी चुनौती होगी। आखिर, दूसरी खुराक लगाने की राह इतनी कठिन क्यों जान पड़ती है? बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप(बीसीजी) के ‘सेंटर फॉर कस्टमर इनसाइट’ (सीसीआई) ने 3,500 लोगों से बातचीत की। ये सभी ऐसे लोग थे जिन्होंने कोविड महामारी से बचाव की पहली खुराक ले ली है। इनमें पहली खुराक लगवा चुके
केवल आधे लोगों ने कहा कि वे दूसरी खुराक भी लेना चाहते हैं। करीब 35 प्रतिशत लोग दूसरी खुराक  के प्रति बहुत दिचलस्पी नहीं दिखा रहे हैं। इन लोगों का मानना है कि कोविड महामारी से सुरक्षा के लिए एक खुराक ही पर्याप्त है।
बीसीजी ने कहा कि भारत में केवल 54-62 प्रतिशत लोग ही दूसरी खुराक लगवाना चाहते हैं। बीसीजी के प्रबंध निदेशक एवं पार्टनर अभिषेक गोपालका ने कहा कि टीके लगवाने के लिए लोगों में घट रही दिचलस्पी एक बड़ी समस्या साबित होगी। उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के लिए महानगरों और बड़े शहरों में पहली खुराक लेने में लोगों में दिलचस्पी मई में दर्ज 78 प्रतिशत से कम होकर सितंबर में 28 प्रतिशत रह गई। यह प्रतिशत टीका नहीं सके वयस्क आबादी की है।’ भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में बीसीजी के कार्यों का नेतृत्व करने वाले गोपालका कहते हैं, ‘कोविड की दूसरी लहर अब लगभग नियंत्रण में आ गई है इसलिए लोग दूसरी खुराक को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं। एक कारण यह भी है कि एक खुराक शरीर में प्रतिरोधी क्षमता पैदा करने के लिए काफी साबित हो रही है।’ सर्वेक्षण में कहा गया है कि ऐसे लोगों की संख्या कम है जिन्होंने एक भी खुराक नहीं लगवाई है मगर मई के मुकाबले अब टीका लगवाने में उनकी रुचि कम हो गई है। ऐसे लोगों की 44 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों और बड़े शहरों में है। बुजुर्ग लोगों में टीका नहीं लगवाने वालों की तादाद करीब 56 प्रतिशत है।
पहली खुराक ले चुके लोगों को दूसरी खुराक लगाना बेहद जरूरी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय उन राज्यों को कई पत्र लिख चुका है जो दूसरी खुराक लगाने में सुस्त गति से आगे बढ़ रहे हैं। अनुमानों के अनुसार पहली खुराक ले चुके करीब 9 करोड़ लोगों को दूसरी खुराक लगनी शेष है। शनिवार को हुई एक समीक्षा बैठक में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को उन जिलों की सूची बनाने के लिए कहा है जहां टीकाकरण पर्याप्प्त गति से नहीं हो रहा है।
भूषण ने कहा कि जिलावार आधार पर उन लोगों की सूची बनाई जा सकती है जिन्होंने दूसरी खुराक नहीं लगवाई है। बीसीजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरी खुराक लगाने के मामले में 15 सितंबर तक महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और गुजरात जैसे राज्य आगे रहे हैं। उदाहरण के लिए मई में महाराष्ट्र में दोनों खुराक लगा चुके लोगों की संख्या 4 प्रतिशत थी जो सितंबर में बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई। इस मामले में आंध्र प्रदेश का प्रदर्शन 5 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर में 19 प्रतिशत हो गया। जहां तक गुजरात की बात है तो ऐसे लोगों की आबादी इसी अवधि में 6 प्रतिशत से बढ़कर 18 प्रतिशत हो गई।  बीसीजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में टीके लगवाने में दिचलस्पी रखने वाले लोगों की संख्या मार्च से ही कम होनी शुरू हो गई थी। उदाहरण के लिए शहरी क्षेत्रों में पहली खुराक लगाने में रुचि रखने वाले लोगों की संख्या मार्च में 48 प्रतिशत थी जो सितंबर में कम होकर 34 प्रतिशत रह गई। टीका लेने से इनकार करने वाले लोगों की संख्या लगभग जस की तस है। मार्च में ऐसे लोगों की तादाद 7 प्रतिशत थी जो सितंबर में 6 प्रतिशत रही। दूसरी खुराक के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले शहरी क्षेत्रों में अधिक उत्साह देखा जा रहा है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि भारत टीकाकरण अनिवार्य नहीं कर सकता क्योंकि इससे टकराव पैदा हो सकता है। भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान (आईआईपीएच) के निदेशक दिलीप मावलंकर ने कहा, ‘अधिक से अधिक लोगों को टीका लगाने के लिए सरकार टीकाकरण अनिवार्य नहीं कर सकती। अगर ऐसा करती है तो विरोध के स्वर भी उठेंगे। हमारे पास उन क्षेत्रों के आंकड़े उपलब्ध हैं जहां लोग विभिन्न कारणों से टीका नहीं लेना चाहते हैं। हमें उन्हें तैयार करने के लिए टीके के लाभ के बारे में बताना होगा और जागरूकता फैलानी होगी।’
उन्होंने कहा कि भारत को टीका लगाने से इनकार करने वाले प्रत्येक लोगों को तैयार करना होगा। मावलंकर ने कहा, ‘कई लोगों में विभिन्न वस्तुओं जैसे खान-पान या अन्य चीजों को लेकर एलर्जी होती है। इस वजह से वे टीका नहीं लगवाना चाहते हैं। ऐसे लोगों के लिए हमें अलग से इंतजाम करना होगा और टीके की वजह से किसी दुष्परिणाम की स्थिति में सभी स्वास्थ्य सेवाएं तैयार रखनी होंगी।’ बीसीजी के शोध में भी कहा गया है कि टीके के असरदार होने से जुड़ी चिंताएं, दीर्घ अवधि में स्वास्थ्य पर होने वाले प्रतिकूल असर और तत्काल दुष्परिणाम जैसे हृदयघात या मृत्यु ऐसे तीन कारण हैं जिनसे लोग टीका लगवाने से डरते हैं।
गोपालका ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में सरकार ने एक बड़ा का किया है। उन्होंने कहा कि अब आगेे लोगों को दूसरी खुराक लगवाने के लिए प्रेरित करने हेतु सरकार को बड़े पैमाने पर प्रयास करने होंगे। देश में पिछले कुछ महीनों में देश मेंं टीकों की आपूर्ति भी बहुत हद तक बढ़ी है। सीरम इंस्टीट्यूट के अदार पूनावाला ने पिछले सप्ताह कहा था कि देश में इस समय टीके की जितनी खपत हो रही है उसके मुकाबले देश की टीका बनाने वाली कंपनियां कहीं अधिक टीके का उत्पादन कर रही हैं। 

First Published - October 24, 2021 | 11:07 PM IST

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