अर्थव्यवस्था के लभगभ सभी वाणिज्यिक क्षेत्रों में खुदरा ईंधन के रूप में सर्वाधिक इस्तेमाल होने वाले डीजल की कीमत धीरे धीरे बढ़कर मुंबई में 90 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गई है। खुदरा ईंधन कीमतों में धीरे धीरे वृद्घि होने के आसार पहले से जताए जा रहे थे क्योंकि तेल की कीमतें भी बढ़ रही हैं। ब्रेंट क्रूड की कीमत अब 65 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो चुकी है।
पिछली बार जब कच्चे तेल की कीमत इतनी थी तब मुंबई में डीजल 70-72 रुपये लीटर मिलता था। एक साल पहले के मुकाबले आज लोग ईंधन पर 15-20 रुपये प्रति लीटर अधिक चुका रहे हैं। इसकी वजह केंद्र और राज्यों की तरफ से इन पर लगाया जाना वाला उच्च कर है।
चूंकि आम उपभोक्ता डीजल के मुकाबले पेट्रोल अधिक उपयोग करता है जिससे पेट्रोल की कीमत बढऩे पर उसे प्रत्यक्ष रूप से अधिक नुकसान झेलना पड़ता है। लेकिन डीजल का हमारे जीवन पर कहीं अधिक प्रभाव है लिहाजा उपभोक्त को डीजल की कीमतों को लेकर अधिक चिंतित होना चाहिए। इसकी वजहे निम्र प्रकार से हैं।
इसका पहला कारण यह है कि देश में डीजल की खपत पेट्रोल के मुकाबले 2.5 गुना अधिक है।
एक ओर जहां पेट्रोल का उपयोग सबसे अधिक व्यक्तिगत वाहनों में होता है, डीजल का इस्तेमाल खेतों में किसान करते हैं और उपभोक्ता के उपयोग में आने वाले प्रत्येक उत्पाद/माल के परिवहन में ईंधन के तौर पर होता है। डीजल की लागत सीधे डीजल का उपयोग कर परिवहन किए जाने वाले उत्पाद पर डाला जाता है।
2012 के विश्लेषण के मुताबिक डीजल का प्राथमिक उपयोग देश में परिवहन के लिए किया जाता है। यह चिंताजनक है कि पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की सूचना शाखा पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ की ओर से ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया है।
डीजल का उपयोग करने वाले क्षेत्र
देश में परिवहन क्षेत्र में 70 फीसदी डीजल की खपत होती है। इस क्षेत्र में इसका सबसे अधिक इस्तेमाल ट्रकों में होता है जिसके बाद निजी वाहन और वाणिज्यिक वाहनों का स्थान है। केवल ट्रकों में ही देश में उपलब्ध डीजल का 28 फीसदी उपयोग किया जाता है।
आपके घर में इस्तेमाल होने वाले साबून से लेकर रेफ्रीजरेटर तक और इन दिनों एमेजॉन या फ्लिपकार्ट से जो आप मंगाते हैं सभी चीजों की ढुलाई छोटे या बड़े ट्रकों से होती है। परिवहन लागत जिसमें ट्रक का किराया, चालक की सेवा, रखरखाव खर्च और टोल को शामिल किया जाता है, आपके ओर से चुकाई जाने वाली अंतिम कीमत में जोड़ा जाता है।
मुख्य इनपुट लागत बढऩे से पिछले कुछ महीनों में परिवहन और संचार सेगमेंट की महंगाई में इजाफा हुआ है। बिजनेस स्टैंडर्ड में हाल में छपी खबर में बताया गया था कि छोटे ट्रकों पर तेल कीमतों के बढऩे का कितना बुरा असर पड़ रहा है।
परिवहन और स्वास्थ्य महंगाई
इसी तरह की कुछ परिस्थिति 2018 में थी। उस साल के अंत में तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल के पार चली गई थी और परिहवन की महंगाई खासकर उस समय पर सामान्य महंगाई से ऊपर चली गई थी। तब सरकार ने खुदरा कीमतों में कमी लाने के लिए उत्पाद शुल्क में कटौती की थी।
नील्सन की एक हालिया रिपोर्ट में दिसंबर तिमाही में उच्च ग्रामीण मांग को रेखांकित किया गया है जिसमें सवाल उठाया गया था कि क्या मांग से महंगाई बढ़ रही है। इस सवाल के जवाब में हाल की नीति बैठक में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की ओर से की गई टिप्पणी समीचीन है।
उन्होंने कहा, ‘खाद्य और ईंधन को छोड़कर दिसंबर में सीपीआई महंगाई 5.5 फीसदी के उच्च स्तर पर बनी रही थी। इसकी वजह कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का असर और पेट्रोल तथा डीजल पर उच्च अप्रत्यक्ष कर दरें तथा प्रमुख वस्तुओं और सेवाओं खासकर परिवहन और स्वास्थ्य श्रेणियों में महंगाई में वृद्घि है।’
आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (एपीएसआरटीसी) का उदाहरण लेते हैं जो देश में इस तरह के सबसे बड़े निकायों में से एक है और यह राज्य के भीतर और आसपास 11,000 से अधिक बसें चलाता है। सरकारी कंपनी में ईडी कृष्ण कुमार का कहना है कि एपीएसआरटीसी रोजाना औसतन 8,00,000 लीटर डीजल का इस्तेमाल करता है।
उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘डीजल कीमत में प्रत्येक रुपये का इजाफा होने पर इनपुट लागत प्रतिदिन 8 लाख रुपये बढ़ जाती है जो सालाना 30 करोड़ रुपये बैठता है। लेकिन हम तुरंत किराये में वृद्घि नहीं कर सकते हैं क्योंकि छात्रों सहित 60 लाख लोगों पर इसका असर होगा।’ महंगे डीजल का घाटे में चल रहे राज्य परिवहन निगमों पर गहन वित्तीय दबाव पड़ता है।
कृष्णकुमार ने कहा, ‘यदि लंबे समय तक डीजल कीमतें ऊंची बनी रहती है तो हमारे पर किराया बढ़ाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचेगा।’ खेतों की सिंचाई करने, थ्रेशर और हार्वेस्टर चलाने सहित विभिन्न कार्यों के लिए देश में 13 फीसदी डीजल का उपयोग कृषि क्षेत्र में किया जाता है। किसान के लिए व्यापार की शर्तें तब फायदेमंद होती हैं जब उसकी आमदनी इनपुट लागतों में वृद्घि के मुकाबले तेज की गति से बढ़ती है। एकतरफा इनपुट लागत बढऩे, महंगे डीजल से किसानों की आमदनी पर असर पड़ता है।