पिछले साल होली पर कोरोनावायरस के साये के कारण कारोबार चौपट होता देख चुके कारोबारी इस साल भी आशंकित हैं। देश भर में कोरोनावायरस संक्रमण के मामले एक बार फिर जोर पकडऩे लगे हैं, जिसकी वजह से इस बार भी होली फीकी ही जाने का खटका बढ़ रहा है। राजधानी दिल्ली से देश भर में होली का सामान जाता है और रंग, गुलाल, मिठाई, मेवे, कपड़े, खानपान सामग्री की बिक्री चरम पर होती है मगर इस बार कारोबारी सुस्ती की शिकायत कर रहे हैं। पहले तो यही माना जा रहा था कि इस बार कारोबार पटरी पर आ जाएगा मगर अब 2019 के मुकाबले आधे से भी कम कारोबार की बात कही जा रही है।
कारोबार कम होने की एक वजह लागत बढऩा भी है। कच्चा माल और ढुलाई महंगी होने से पिचकारी, रंग-गुलाल, मुखौटों आदि के दाम बढ़ गए हैं। इससे भी बिक्री पर असर पड़ रहा है। नया माल इसलिए भी कम मंगाया जा रहा है क्योंकि पिछले साल का काफी स्टॉक बचा हुआ है और सुस्त कारोबार का अंदेशा पहले से ही था। इसलिए कारोबारियों का जोर पुराना स्टॉक निकालने पर ही ज्यादा है।
महामारी की मार
साल 2020 बीतते-बीतते तो ऐसा लग रहा था कि कोरोनावायरस दम तोडऩे लगा है। मगर पिछले एक महीने में दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश में संक्रमण के मामले जोर पकडऩे लगे हैं। इसलिए भी कारोबारी हाथ बांधकर बैठ गए हैं।
दिल्ली स्थित सदर बाजार में होली माल के थोक कारोबारी मयूर गुप्ता कहते हैं कि होली पर कारोबार ज्यादा नहीं बढऩे का अंदेशा तो पहले ही था। मगर संक्रमण के मामले बढऩे से बची-खुची उम्मीद भी टूट रही है। ऑर्डर मिलने मुश्किल हो रहे हैं और पिचकारी, रंग-गुलाल के बढ़ते दाम ने कमर तोड़ दी है। ज्यादातर थोक ऑर्डर पहले ही जा चुके हैं और इस बार आधा कारोबार भी हो गया तो बड़ी बात होगी।
गुप्ता ने बताया कि पिछले साल भी उनके पास करीब 30 फीसदी स्टॉक बच गया था। इसलिए उन्होंने इस बार 50 फीसदी कम माल मंगाया। देश भर के कारोबारियों के पास भी पिछला माल बचा है, इसलिए उनके पास से भी ऑर्डर कम आ रहे हैं। गुप्ता ने कहा कि बच्चों के कारण पिचकारी तो बिक जाएंगी मगर रंग और गुलाल की बिक्री पर मार पड़ रही है।
कपड़ों का बाजार भी रौनक से महरूम दिख रहा है। रेडीमेड गारमेंट ऐंड क्लॉथ डीलर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष सतवंत सिंह कहते हैं कि होली पर कपड़ों की बिक्री इस बार 30-40 फीसदी कम है। कुर्ता-पाजामा कारोबारी अजय मित्तल ने बताया कि इस बार कोरोनावायरस का डर कुछ कम होने के कारण बिक्री 5-10 फीसदी सुधरी है मगर 2019 के मुकाबले काफी कम है। कपड़ा बाजार पर बढ़ती लागत का असर कम दिख रहा है क्योंकि पिछले साल का ही काफी स्टॉक है, जो पुराने दामों पर ही बिक रहा है।
मिठाई और मेवों का कारोबार भी इस बार फीका है। बंगाली स्वीट्स के साझेदार श्रीत अग्रवाल ने बताया कि होली के लिए बिक्री 15 मार्च से शुरू होगी मगर माहौल देखकर यही लगता है कि इस बार मिठाई-नमकीन की बिक्री पिछले साल से 25-30 फीसदी कम रहेगी। कंपनियां आम तौर पर होली के उपहार के तौर पर मिठाई के ऑर्डर अब तक दे देती थीं मगर इस बार सूखा पड़ा हुआ है। राजधानी में मेवा कारोबारी कमलजीत बजाज ने बताया कि मेवों के दाम पिछली होली से 5-10 फीसदी कम होने के बाद भी बिक्री कमजोर है। मेवा व्यापारी दलजीत सिंह को बिक्री पिछले साल जैसी ही महसूस हो रही है मगर 2019 की तुलना में 25-30 फीसदी कम है। दिल्ली के मावा कारोबारी भी कोरोना के बढ़ते मामलों की मार मावे यानी खोये पर पडऩे का डर जता रहे हैं। यूं तो मावे की बिक्री होली से हफ्ते भर पहले ही जोर पकड़ती है मगर इस बार 10 फीसदी महंगा माल होने और कोरोना का डर होने से इसमें सुस्ती रह सकती है।
मगर बड़ी मार पिचकारी-खिलौना कारोबारियों पर पड़ रही है। इस कारोबार से जुड़ी कंपनी हाई-वे कॉरपोरेशन के निदेशक दीपक वत्स कहते हैं कि कोरोना के मामलों में वृद्घि देखकर कुछ खरीदार ऑर्डर रद्द करने लगे हैं। प्लास्टिक दाने के दाम 15-20 फीसदी बढऩे के कारण महंगा माल देखकर भी ऑर्डर छोटे हो रहे हैं। वत्स को 2019 के मुकाबले आधे से भी कम कारोबार होने का अंदेशा है। सदर बाजार के थोक कारोबारी विमल जैन ने बताया कि इस साल नया माल कम मंगाया गया है। फिर भी माल बच सकता है क्योंकि ऑर्डर बहुत कम आ रहे हैं। सदर बाजार में छोटे-बड़े मिलाकर करीब 100 कारोबारी होली का सामान बेचते हैं और आम तौर पर सालाना 150 से 200 करोड़ रुपये का कारोबार करते हैं। मगर इस बार कारोबार 70 से 100 करोड़ रुपये पर ही सिमट जाने के आसार दिख रहे हैं।
कारोबार मंदा है, पिछले साल का स्टॉक भी बचा है मगर दाम कम नहीं हो रहे हैं। बाजार में 20 रुपये से 1,500 रुपये तक की पिचकारी हैं, जो पिछले साल से 20 फीसदी तक महंगी हैं। गुब्बारों का पैकेट 40-50 रुपये और मैजिक बैलून का पैकेट 60-70 रुपये में बिक रहा है। इस साल आपूर्ति सुधरने के बाद भी इनकी कीमत नहीं घटी। कलर स्प्रे के कैन थोक बाजार में 120 रुपये से 400 रुपये दर्जन के भााव बिक रहे हैं। गुलाल के पैकेट 10 से 50 रुपये तक कीमत के हैं। लागत बढऩे के कारण पैकेटों में गुलाल की मात्रा कम कर दी गई है। दिल्ली में ज्यादातर रंग-गुलाल गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से आता है। उत्तर प्रदेश में हाथरस गुलाल का बड़ा केंद्र है। पिचकारी महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली-एनसीआर में बनती हैं। देसी पिचकारी ज्यादा बनने के कारण बाजार में चीनी पिचकारी की हिस्सेदारी 80 फीसदी से घटकर 30 फीसदी ही रह गई है।