चित्रा ने अपने दो बच्चों की देखभाल के लिए पांच सालों का ब्रेक लेने के बाद फिर से काम करने का फैसला किया। उन्होंने करियर के शीर्ष मुकाम पर काम छोडऩे का फैसला किया था और इसी वजह से उनके मन में फिर से काम शुरू करने को लेकर आशंका बनी हुई थी कि उनकी योग्यता के अनुरूप उन्हें काम मिलेगा या कंपनियां किसी ऐसे कर्मचारी का चयन करेंगी जिन्हें फिर से प्रशिक्षण देने की जरूरत होगी? करीब छह महीने की मशक्कत के बाद उन्हें कॉग्निजेंट के ‘रिटर्नशिप प्रोग्राम’ से जुडऩे का मौका मिला।
चित्रा अब मैनेजर (प्रोजेक्ट) के तौर पर काम करती हैं और उनका कहना है कि कॉग्निजेंट के इस प्रोग्राम के चलते न केवल उन्हें काम में वापसी करने में मदद मिली है बल्कि उन्हें प्रशिक्षण मिलने के साथ-साथ घर की जिम्मेदारियां संभालने की सहूलियत भी मिल जाती है। कॉग्निजेंट में एवीपी (एचआर और इंडिया डाइवर्सिटी ऐंड इन्क्लूजन लीड) नीता नांबियार ने कहा, ‘कॉग्निजेंट का प्रतिभाशाली तकनीकी पेशेवरों के लिए यह 12 हफ्ते का पेड प्रोग्राम है जिसके लिए न्यूनतम पांच सालों के अनुभव की जरूरत होगी, खासतौर पर उनके लिए जिन्होंने दो सालों का करियर ब्रेक लिया है। इत्तफाक से इससे ज्यादातर महिलाएं ही जुड़ी हैं। जिन लोगों ने रिटर्नशिप प्रोग्राम से जुडऩा स्वीकार किया है वे काम के बेहतर माहौल में अपने कौशल को अद्यतन करना चाहती हैं और वे रियल टाइम प्रोजेक्ट और काम करना चाहती हैं जिससे नए तकनीक जुड़े हों। प्रोग्राम के आखिर में प्रतिभागियों को कॉग्निजेंट में नौकरी देने पर भी विचार किया जाता है।’
लॉजिस्टिक्स उद्योग में बड़ी तादाद में महिला कर्मचारी नहीं हैं। ऐसी ही मुंबई की ऑलकार्गो लॉजिस्ट्क्सि ने रीस्टार्ट प्रोग्राम की शुरुआत इस महीने की शुरुआत में की थी। समूह की चीफ पीपल ऑफिसर इंद्राणी चटर्जी का कहना है, ‘जो महिलाएं करियर के ब्रेक के बाद काम में वापसी करना चाहती हैं उन्हें नौकरी के साक्षात्कार के लिए बिना किसी पूर्वग्रह के मौका दिया जाता है। इसके अलावा हम प्रोजेक्ट आधारित असाइनमेंट भी उन महिलाओं के लिए देना चाहते हैं जो दिन में सुबह 9 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक काम नहीं करना चाहती हैं। इस तरह की पहल से महिलाओं को करियर ब्रेक के बाद काम में वापसी करने में मदद मिल जाती है।’
लंबे अंतराल के बाद भारतीय कंपनियों में उन महिलाओं को नौकरी में रखने के प्रति जागरूकता बढ़ रही है जिन्होंने अपने करियर से ब्रेक लिया। बेंगलूरु की सॉफ्टवेयर उत्पाद एवं सेवाएं देने वाली कंपनी इम्पेलसिस ने भी कैलेंडर वर्ष 2022 में महिला कर्मचारियों की तादाद को 31 फीसदी से बढ़ाकर 40 फीसदी कर दिया है। कंपनी की सहायक उपाध्यक्ष (एचआर) कविता नंदगोपाल का कहना है कि इम्पेलसिस कर्मचारियों के पति/पत्नी की भी भर्ती करने की प्रक्रिया में है। कंपनी ने विभिन्न भूमिकाओं के लिए समान रूप से पात्रता रखने वाली महिलाओं को चुनने की नीति बनाई है। लक्ष्य यह है कि कंपनी के कर्मचारियों में 50 फीसदी महिलाएं हों।
वहीं पैनासोनिक इंडिया के प्रमुख एचआरओ आदर्श मिश्रा का कहना है कि 2014 से ही महिला कर्मचारियों की संख्या में 90 फीसदी तक की उछाल आई है और कंपनी उनके लिए काम में मनचाहे विकल्प देती है। अब कई कंपनियां न केवल काम में कई तरह की छूट देती हैं बल्कि वे घर में बुजुर्गों और बच्चों की देखभाल से जुड़े समाधान भी दे रही हैं ताकि महिलाएं समय निकाल कर पेड काम कर सकें। न्यू हैम्पशर मुख्यालय वाली स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनी सेवा ऐट होम के संस्थापक सीईओ अतुल गांधी का कहना है, ‘बुजुर्गों (घर में नर्स और सहायक, डायग्नॉस्टिक जांच) और बच्चों (तनाव प्रबंधन, 24 घंटे डॉक्टर या न्यूट्रिशिनिस्ट की पहुंच) के लिए सेवाओं की मांग है। कुछ कंपनियों ने पूर्ण स्वास्थ्य जांच का प्रायोजन भी किया है। इसके अलावा संपूर्ण स्वास्थ्य और फिटनेट कार्यक्रम पर भी जोर दिया जा रहा है।’
वापसी पर जोर
कंपनियां महिलाओं की भर्ती क्यों करना चाहती हैं और वे उनके काम में थोड़ा लचीलापन लाने के लिए नीतियों में क्यों बदलाव कर रही हैं? भारत में भुगतान वाली नौकरी में महिलाओं का अनुपात हमेशा कम रहा है लेकिन महामारी की वजह से स्थिति और खराब रही है। सीएमआईई डेटा के मुताबिक दिसंबर 2021 में करीब 80 लाख बेरोजगार महिलाएं सक्रियता से काम ढूंढ रही थीं और करीब 90 लाख महिलाएं काम करने की इच्छुक थीं हालांकि वे सक्रियता से काम नहीं ढूंढ रही थीं।
सीएमआईई प्रबंध निदेशक और सीईओ महेश व्यास ने एक ब्लॉग में सवाल किया, ‘यह जानना जरूरी है कि कई महिलाए जो काम करने के लिए इच्छुक हैं वे सक्रियता से काम क्यों नहीं ढूंढ रही हैं। क्या काम की कमी है या फिर महिलाओं की नौकरी करने में सामाजिक समर्थन में कोई कमी दिख रही है?’ 2021 में महिलाओं के राष्ट्रीय औसत मासिक रोजगार में महामारी से पहले 2019 की तुलना में 6.4 फीसदी की कमी है। औसत मासिक रोजगार (शहरी महिला) में काफी कमी दिख रही है क्योंकि 2019 की तुलना में 2021 में शहरी इलाकों में 22.1 फीसदी महिलाएं ही नौकरी में थीं। कुछ कंपनियां इस तस्वीर को सुधारना चाहती हैं।
मिसाल के तौर पर एमेजॉन इंडिया के कई ऐसे कार्यक्रम हैं जिसके तहत काम में कई तरह के सहूलियत की पेशकश की जाती है और साथ ही उन्हें नेतृत्वकर्ता की भूमिका तक पहुंचने में मदद मिलती है। महिलाएं अब कई प्रमुख कारोबारी और रणनीतिक टीमों का नेतृत्व कर रही हैं। एमेजॉन इंडिया के दफ्तर में काम कर रही नवजात शिशुओं की मां के लिए ‘मदर्स रूम’ हैं।
एऑन ह्यूमन कैपिटल सॉल्यूशंस की निदेशक शिल्पा खन्ना का कहना है कि महामारी के दौरान औरतों पर घर और बाहर की जिम्मेदारियों का असमान बोझ बढ़ गया। उनका कहना है कि भारत में महिलाओं के घरेलू कामों में 30-40 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई जिसकी वजह से भी महिलाओं ने काम छोड़ दिया। वह कहती हैं कि टाटा समूह, एमेजॉन, फिडेलिटी, गोदरेज महिलाओं के लिए ‘रिटर्न टू वर्क’ प्रोग्राम की पेशकश कर रहे हैं जिनमें कौशल से जुड़े प्रशिक्षण के कार्यक्रम भी शामिल हैं।
एमेजॉन इंडिया में निदेशक (डीईऐंडआई, इंटरनैशनल मार्केट, डब्ल्यूडब्ल्यू कंज्यूमर) स्वाति रुस्तगी का कहना है कि पिछले कुछ सालों से कंपनी ने कुछ पहल शुरू की है जिसमें काम के वर्चुअल विकल्प हैं, इसके अलावा काम के मौके में कुछ लचीलता है, काम के सिलसिले में यात्रा करने से छूट, रात्रि पाली में औरतों के काम के लिए सिफारिश जैसी पहल शामिल है। इसके अलावा रिटर्नशिप प्रोग्राम की वजह से उनके लिए एक उपयुक्त व्यवस्था हो जाती है। नौकरी देने वाली कंपनियां भी महिला कर्मचारियों का ख्याल रखने वाली जरूरतों के लिहाज से ज्यादा संवेदनशील हैं। भारती एयरटेल ने बच्चे के जन्म के बाद भी करीब 24 हफ्ते तक काम में सहूलियत देने की घोषणा की है। इसके अलावा के जब तक बच्चा 18 महीने का नहीं हो जाता है तब तक उसे 7,000 रुपये मासिक भत्ता दिया जाएगा। एक विविधता, इक्विटी और समावेशी (डीईवाई) कंसल्टेंसी अवतार ग्रुप के संस्थापक अध्यक्ष सौंदर्या राजेश का कहना है, ‘कंपनियां ब्रेक पर जाने वाली महिलाओं की भर्ती करने को लेकर बेहद दिलचस्पी ले रही हैं क्योंकि वे जल्द ही काम पर आने के लिए उपलब्ध होती हैं।’ वह कहती हैं, ‘काम की जगह को बदलने की जरूरत है ताकि असमानताएं कम की जा सकें।’