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कानून से खत्म होंगे कमीशन एजेंट?

Last Updated- December 14, 2022 | 10:53 PM IST

यह खरीद सत्र नहीं है और पंजाब में ज्यादातर मंडियां सुनसान नजर आ रही हैं, लेकिन एशिया का सबसे बड़ा अनाज बाजार खन्ना गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है। बिहार और पश्चिम बंगाल के मजदूर खुले में बैठे हैं और गेहूं के ढेर की छंटाई-सफाई कर रहे हैं। धीरे-धीरे ट्रक आते हैं, गेहूं उतारते हैं तथा सैकड़ों कमीशन एजेंट (आढ़ती) खरीदारों और किसानों से सौदे करने में व्यस्त हैं।

केंद्र सरकार ने दो प्रमुख बातों के आधार पर कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सुगमता) अधिनियम को सही ठहराया है। पहला, यह किसानों को अधिक विकल्प प्रदान करता है और दूसरा, इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह उन्हें कमीशन एजेंटों के चंगुल से आजाद करता है। लेकिन पंजाब में कई किसान कमीशन एजेंटों की सेवाएं जाने से नाखुश हैं जो न केवल उनकी उपज को ही बेचते हैं और बिक्री मूल्य पर 2.5 प्रतिशत कमीशन लेते हैं, बल्कि जरूरत के वक्त पर उन्हें पैसा भी उधार देते हैं।

पंजाब में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और विभिन्न मंडियों में निजी कंपनियों द्वारा खरीद हमेशा कमीशन एजेंटों के माध्यम से ही की जाती है। यहां तक ​​कि अदाणी एग्री लॉजिस्टिक्स की भंडारण सुविधाओं में भी सरकार द्वारा खरीदे गए गेहूं का भुगतान सालों से इन एजेंटों के जरिये ही किया जाता रहा है जो बिना कमीशन एजेंटों के किसानों की सीधी बिक्री क्षमता की बात करती है।

कमीशन एजेंट किसानों द्वारा मंडियों में लाई जाने वाली उपज की छंटाई, सफाई, तुलाई और बिक्री करता है। खरीद करने वाली एजेंसी इस कमीशन एजेंट को भुगतान करती है जो किसानों को चेक सौंपने से पहले 2.5 प्रतिशत राशि काट लेता है। सरकार ने अक्सर कमीशन एजेंटों से किसान को पूरा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) हस्तांतरित करने और फिर अपनी सेवाओं के लिए पैसा लेने का आग्रह किया है, लेकिन इस नियम का कभी-कभार ही पालन किया जाता है।

पंजाब के कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम में कहा गया है कि इस कमीशन का भुगतान खरीदारों द्वारा किया जाना है। लेकिन चूंकि किसानों का पैसा प्राप्त करने और उसका वितरण करने के लिए कमीशन एजेंट ही जिम्मेदार होता है, इसलिए कमीशन का भुगतान करने वाले की जवाबदेही बहुत कम रहती है। कमीशन एजेंट किसानों को ऋण सहायता देने वाली प्रणाली होती है। भले ही उनके द्वारा दिए जाने वाले इस ऋण पर ब्याज दर 18 से 24 प्रतिशत ही क्यों न हो, लेकिन ज्यादातर किसान इसे चुकाने की परवाह नहीं करते हैं। संगरूर के किसान 62 वर्षीय बहादुर सिंह ने कहा कि जब हमें जरूरत होती है तो आढ़ती हमें पैसों से मदद करते हैं। वे हमें बीजों, खेती के काम और यहां तक ​​कि हमारे बच्चों की शिक्षा के लिए भी पैसा देते हैं। क्या कोई बड़ी कंपनी या बैंक बिना किसी कागजी कार्रवाई के कुछ ही घंटों में मुझे पैसा दे देगा?

पंजाब में लाइसेंस प्राप्त 27,000 कमीशन एजेंट हैं। हरेक के पास 100 से अधिक किसानों का एक नेटवर्क है जो अपने ही गांव और आस-पास के इलाकों के किसान होते हैं। ये किसान उनके जरिये बिक्री करते हैं और उनके द्वारा इन्हें कर्ज दिया जाता है।

खन्ना के एक कमीशन एजेंट संजीव धम्मी 30 साल से इस कारोबार में हैं, जबकि उनके परिवार को इस कारोबार में 50 साल हो गए हैं। उन्होंने कहा कि जिन किसानों को हम उधार देते हैं, उनके साथ हमारे परिवार का पीढिय़ों से परिचय है। जब कोई किसान कर्ज के लिए मुझसे संपर्क करता है, तो मैं उसे बिना किसी कागजी कार्रवाई या जमानत के कर्ज दे देता हूं। इसका कारण है हमारे बीच विश्वास और एक-दूसरे का आदर। सरकार इस नए कानून के जरिये मंडियों को समाप्त करते हुए हमें खत्म करना चाहती है। उसे यह समझना चाहिए कि हमारी सेवाओं के बिना खरीद प्रणाली एक बुरा सपना बन जाएगी।

एक ओर धम्मी जैसे आढ़ती किसानों के वित्त पोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, दूसरी ओर कृषि भंडारण में सबसे बड़ी कंपनी के रूप में उभरकर सामने आने वाली फेयरफैक्स जैसी कंपनियां भी इस जगह काम कर रही हैं। इसे लगता है कि फेयरफैक्स या धम्मी की गतिविधियों पर शायद नए कानून का ज्यादा असर न पड़े।

फेयरफैक्स के स्वामित्व वाली नैशनल कॉलेटरल मैनेजमेंट सर्विस (एनसीएमएस) फसल के बाद वाली अवधि के दौरान किसानों को ऋण उपलब्ध कराती है। उस समय बाजार में उपज की अधिकता होती है और इसके परिणामस्वरूप दामों में गिरावट आ जाती है। जो किसान सुरक्षा की दृष्टि से गैर-सत्र वाली अवधि में अधिक दामों की उम्मीद करते हैं, वे अपनी उपज के लिए एनसीएमएस के गोदामों और साइलो से संपर्क करते हैं।

एनसीएमएस का 68 बैंकों के साथ गठजोड़ है। यह किसानों की उपज को बैंकों के पास जमानत के रूप में गिरवी रख देती है जिसके जरिये किसान इसके मूल्य का 70 प्रतिशत तक ऋण प्राप्त कर सकते हैं। बैंक एनसीएमएस से गोदाम की रसीद के लिए कहते हैं और वह गुणवत्ता के लिए उपज की सावधानीपूर्वक जांच के बाद रसीद जारी कर देती है। इसलिए किसान को न केवल संस्थागत ऋण की मदद मिल जाती है, बल्कि जब कभी कीमतें बढ़ती हैं, तब वे अपनी उपज के लिए अधिक मूल्य भी प्राप्त कर पाते हैं। फसल कटाई के बाद वाले सत्र में एनसीएमएस की भूमिका सीमित हो जाती है। किसान ज्यादातर कर्ज बुआई से पहले वाले सत्र में लेते हैं। बैंकों द्वारा अधिकांशत: बड़े किसानों को उधार देने की वजह से भारत के 86 प्रतिशत किसानों के उस बड़े हिस्से को धम्मी जैसे कमीशन एजेंटों की ओर रुख करना पड़ता है जिन्हें छोटे और सीमांत किसानों में वर्गीकृत किया जाता है। एनसीएमएस के कारोबार परिचालन प्रमुख रवि शंकर का कहना है कि वे कोटा और श्रीगंगानगर में एक परियोजना चला रहे हैं जहां कमीशन एजेंट और किसान सीधे तौर पर बिक्री कर सकते हैं।

First Published - October 11, 2020 | 11:11 PM IST

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