Business Standard Manthan 2024: ओलिंपियन और पद्मश्री तथा खेल रत्न से सम्मानित लंबी कूद की खिलाड़ी अंजू बॉबी अंजू ने आज कहा कि भारत के पास क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों में भी विश्व स्तर पर दबदबा कायम करने की पूरी क्षमता है, लेकिन उसके लिए कम उम्र में ही खिलाड़ियों को पहचानने और निखारने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अच्छी बात यह है कि लोग अब क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों के खिलाड़ियों को भी अब हीरो मानने लगे हैं।
विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली पहली भारतीय एथलीट अंजू ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के सालाना कार्यक्रम बिजनेस मंथन के मंच से आज कहा कि कुछ साल पहले तक जो खेल अनजाने थे उनकी भी लोकप्रियता बढ़ना भारत के खेलों के लिए बहुत अच्छा संकेत है।
अंजू इस कार्यक्रम में 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने में क्रिकेट और आईपीएल के अलावा अन्य खेलों की भूमिका पर पैनल चर्चा में हिस्सा ले रही थीं। उनके साथ अर्जुन पुरस्कार विजेता तीरंदाज अभिषेक वर्मा और टाटा स्टील के स्पोर्ट्स एक्सीलेंस सेंटर के प्रमुख मुकुल चौधरी भी थे। तीनों ने साल 2036 के ओलिंपिक से पहले भारतीय खेलों के सामने मौजूद चुनौतियों पर चर्चा की।
भारत की वर्तमान खेल संस्कृति को बदलने या बनाने पर अंजू ने कहा कि भारत में कभी भी खेल संस्कृति का हिस्सा नहीं रहा है। लेकिन, धीरे-धीरे अब इसमें बदलाव आ रहा है। उन्होंने कहा, ‘अब खेलों के प्रति हमारा नजरिया बदल रहा है और खिलाड़ी आज के दौर के नायक बन रहे हैं। अब संस्कृति बदल रही है।’
उन्होंने कहा कि बच्चों और अभिभावकों को जिस चीज ने खेल से दूर किया है वह है इसमें करियर तलाशना। खेल के क्षेत्र में नौकरी नहीं है जिससे कई लोग अपने बच्चों को खिलाड़ी बनाने से कतराते हैं। अंजू ने कहा, ‘खासकर एथलेटिक्स छोटे स्तर का है। कोई नहीं जानता कि किसी बड़े आयोजन में भी कोई खिलाड़ी कितना कमा सकता है।’ मगर उनका कहना है कि सरकार के प्रयास से अब चीजें काफी बदलने लगी हैं।
अंजू की बातों पर सहमति जताते हुए दिग्गज तीरंदाज और ओलिंपिक खिलाड़ी अभिषेक वर्मा ने कहा कि 2036 ओलिंपिक तक अगले 12 वर्षों को देखने से पहले हमें पिछले 12 वर्षों पर ध्यान देना जरूरी है। पिछले 12 वर्षों में सरकार के निरंतर प्रयासों के कारण ही काफी आगे आ गए हैं। उन्होंने कहा, ‘अब अगर आप किसी खेल में बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं तो आप प्रसिद्ध होंगे। साथ ही आपको नकद पुरस्कार और मेडल से भी सम्मानित किया जाएगा। सरकार भी अब खिलाड़ियों को नौकरी दे रही है। मैं फिलहाल आयकर विभाग में सहायक आयुक्त हूं।’
मगर टाटा स्टील के स्पोर्ट्स एक्सीलेंस सेंटर के प्रमुख मुकुल चौधरी ने कहा कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है। उन्होंने कहा, ‘खेल में करियर बनाना आसान नहीं है। जमीनी स्तर पर अगर देखें तो अभी भी हमारे पास वह संस्कृति नहीं है। हम उन खेलों को चुन रहे हैं जो हमारे कार्यक्षेत्र (तीरंदाजी, फुटबॉल, हॉकी आदि) में मशहूर है। जहां तक खेल संस्कृति का सवाल है अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है।’
चौधरी ने बड़े शहरों में बुनियादी ढांचे की कमी पर भी प्रकाश डाला और कहा कि एथलेटिक्स और अन्य खेलों को बढ़ावा देने के लिए मझोले और छोटे शहरों की ओर भी देखने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘हमारे पास शहरी इलाकों में खुले क्षेत्रों जैसी सुविधा नहीं है। शहरी इलाकों में खेल की संस्कृति को बढ़ावा देना मुश्किल है। हमें मझोले और छोटे शहरों का रुख करना पड़ेगा।’
अंजू और वर्मा ने अपने-अपने खेलों में नाम कमाने से पहले जिन चुनौतियों का सामना किया था उसके बारे में भी बात की। अंजू ने कहा, ‘मेरी मां ने मुझे खेल की दुनिया में भेजा। मैं जब पांच साल की थी तब से वह मेरी रीढ़ बनी रहीं। एक खिलाड़ी बनना उनका सपना था। मैंने छोटी प्रतियोगिताओं में जीत हासिल करना शुरू किया। फिर मुझे अहसास हुआ कि मैं खेल में कुछ कर सकती हूं।’
तीरंदाजी के अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए अभिषेक ने बताया कि एक बच्चे के तौर पर उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा महाकाव्य रामायण और महाभारत थी। 6-7 वर्ष के बच्चों के जीवन में खेल को बढ़ावा देने के लिए स्कूल प्रणाली में क्या बदलाव करना चाहिए इस पर अंजू ने कहा कि फिलहाल हमारी शिक्षा प्रणाली काफी सख्त है और बच्चों को स्कूल के अलावा कहीं जाने की अनुमति ही नहीं है।
अंजू ने कहा, ‘दसवीं कक्षा तक बच्चों को खेलने देने चाहिए और उन्हें अपना बचपन जीने देना चाहिए। स्कूलों में ही ऐसी प्रणाली तैयार होनी चाहिए। हमारे समय में अगर कोई खेल में रुचि दिखाता था तो शिक्षक ही उसे ऐसा करने से रोकते थे और कहते थे कि अगर खेलोगे को स्कूल से बाहर कर दिए जाओगे। छात्रों को उनकी मर्जी से जिंदगी जीने की अनुमति स्कूलों से ही मिलनी चाहिए।’
वहीं दूसरी ओर अंजू की बातों से इत्तफाक रखने वाले अभिषेक ने यह भी कहा कि स्कूलों के पीटी शिक्षकों को विभिन्न खेलों में बच्चों की प्रतिभा और कौशल निखारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘स्कूल में पीटी टीचर को ही बच्चों के लिए कोच की भूमिका निभानी चाहिए। यदि उन्हें कुछ बच्चों में बतौर खिलाड़ी प्रतिभा दिखती है तो उन बच्चों को खेल पर ज्यादा ध्यान देने के लिए अधिक समय देना चाहिए।’
अभिषेक कहते हैं कि स्कूल में तीरंदाजी नहीं दिखने की सबसे बड़ी वजह यह है कि इसे खतरनाक खेल माना जाता है। उन्होंने कहा, ‘तीरंदाजी को आउटडोर खेल ही मान लिया जाता है जहां 50 और 70 मीटर दूर निशाना लगाया जाता है। मगर तीरंदाजी इनडोर भी होता है, जिसमें केवल 18 मीटर की दूरी पर निशाना लगाना होता है। इसे स्कूलों में आसानी से खिलाया जा सकता है। कई स्कूलों ने इस दिशा में कदम भी बढ़ाए हैं और माता-पिता को समझाया जा रहा है।’
अंत में क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों में विज्ञापनदाताओं की रुचि पर अंजू ने साल 2003 की याद करते हुए कहा कि उस वक्त किसी ने भी नहीं सोचा था कि कोई भारतीय लड़की विश्व एथलेटिक्स में जीत दर्ज करेगी। सबका ध्यान क्रिकेट पर था, इसलिए मेरे खेल पर किसी का ध्यान नहीं गया। मगर मेडल जीतने के बाद जब मैं आई तो मुझे मेरे हिस्से का सम्मान और दुलार मिल गया।