झामुमो के संस्थापक और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली में इलाज चल रहा था। (फाइल फोटो: पीटीआई)
झारखंड के गठन में अहम भूमिका निभाने वाले और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक, दिग्गज आदिवासी नेता शिबू सोरेन (Former Jharkhand Chief Minister Shibu Soren) देश की राजनीति को नई दिशा देने वाली एक विरासत छोड़ गए हैं। 81 वर्षीय सोरेन के निधन के साथ एक ऐसा राजनीतिक दौर खत्म हो गया, जिसने आदिवासी आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक Shibu Soren का सोमवार को निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे। उनके बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने निधन की जानकारी दी। शिबू सोरेन किडनी संबंधी समस्याओं के कारण एक महीने से ज्यादा समय से दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में इलाज करा रहे थे। हेमंत सोरेन ने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सबको छोड़कर चले गए… मैं आज ‘शून्य’ हो गया हूं।’’ शिबू सोरेन लंबे समय से नियमित रूप से अस्पताल में इलाज करा रहे थे। हेमंत सोरेन ने 24 जून को बताया था, ‘‘उन्हें (शिबू सोरेन को) हाल में यहां भर्ती कराया गया था, इसलिए हम उन्हें देखने आए हैं। फिलहाल उनकी स्वास्थ्य जांच की जा रही है।’’
11 जनवरी 1944 को रामगढ़ जिले के नेमरा गांव (तत्कालीन बिहार, वर्तमान झारखंड) में जन्मे सोरेन को ‘दिशोम गुरु’ (धरती के नेता) और झामुमो के शीर्ष नेता के तौर पर जाना जाता था। वे देश के आदिवासी और क्षेत्रीय राजनीतिक परिदृश्य के सबसे लंबे समय तक प्रभाव रखने वाले नेताओं में से एक थे। उनका राजनीतिक जीवन लगातार आदिवासी अधिकारों की पैरवी के लिए समर्पित रहा।
परिवार के अनुसार, सोरेन का बचपन व्यक्तिगत त्रासदी और सामाजिक-आर्थिक संघर्षों से भरा था। जब वे 15 साल के थे, तो 27 नवंबर 1957 को उनके पिता शोबरन सोरेन की लुकैयातांड जंगल में कथित रूप से महाजन द्वारा हत्या कर दी गई। यह घटना उनके जीवन पर गहरा असर डाल गई और आगे चलकर उनके राजनीतिक संघर्ष की प्रेरणा बनी।
1973 में, सोरेन ने बंगाली मार्क्सवादी ट्रेड यूनियन नेता ए.के. रॉय और कुरमी-माहतो नेता बिनोद बिहारी माहतो के साथ मिलकर धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में आयोजित एक जनसभा में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना की।
जल्द ही झामुमो अलग आदिवासी राज्य की मांग का प्रमुख राजनीतिक चेहरा बन गया और छोटानागपुर तथा संथाल परगना क्षेत्रों में व्यापक समर्थन हासिल किया। जमींदारी शोषण के खिलाफ सोरेन का जमीनी आंदोलन उन्हें आदिवासी समाज का प्रतीक बना गया। दशकों के संघर्ष के बाद, 15 नवंबर 2000 को झारखंड का गठन हुआ, जो इस मांग की बड़ी जीत थी।
सोरेन का प्रभाव सिर्फ राज्य की राजनीति तक सीमित नहीं था। वे कई बार लोकसभा के लिए चुने गए- दुमका से आठवीं बार 2014 से 2019 के बीच 16वीं लोकसभा के सदस्य रहे। जून 2020 में वे राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में उन्होंने केंद्रीय कोयला मंत्री के तौर पर 23 मई से 24 जुलाई 2004, 27 नवंबर 2004 से 2 मार्च 2005 और 29 जनवरी से नवंबर 2006 तक कार्य किया।
हालांकि, केंद्र में उनके मंत्री कार्यकाल पर गंभीर कानूनी चुनौतियों का साया रहा। जुलाई 2004 में 1975 के चिरूडीह नरसंहार मामले में, जिसमें 11 लोगों की हत्या हुई थी, उन्हें मुख्य आरोपी बनाए जाने पर गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ। वे कुछ समय तक भूमिगत रहे, फिर गिरफ्तार किए गए। सितंबर 2004 में जमानत मिलने के बाद नवंबर में उन्हें फिर से मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। मार्च 2008 में अदालत ने उन्हें इस मामले में सभी आरोपों से बरी कर दिया।
उनकी कानूनी मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुईं। 28 नवंबर 2006 को उन्हें अपने पूर्व निजी सचिव शशिनाथ झा के 1994 में अपहरण और हत्या के सनसनीखेज मामले में दोषी ठहराया गया। सीबीआई का आरोप था कि झा को रांची में इसलिए मारा गया, क्योंकि उन्हें 1993 में कांग्रेस और झामुमो के बीच अविश्वास प्रस्ताव के दौरान हुए एक राजनीतिक सौदे की जानकारी थी। हालांकि, बाद में अपील में सोरेन बरी हो गए और अप्रैल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने उनके बरी होने के फैसले को बरकरार रखा।
विवादों के बावजूद, सोरेन झारखंड की राजनीति में एक बड़ा नाम बने रहे। वे तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे- मार्च 2005 (सिर्फ 10 दिन, 2 मार्च से 11 मार्च), 27 अगस्त 2008 से 12 जनवरी 2009, और 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010 तक। प्रत्येक कार्यकाल गठबंधन राजनीति की नाजुक स्थिति के कारण छोटा रहा।
जून 2007 में वे हत्या के प्रयास से बचे, जब देवघर जिले के दुमरिया गांव के पास उनकी गाड़ी पर बम फेंके गए। उस समय वे गिरिडीह की एक अदालत में पेशी के बाद डुमका जेल ले जाए जा रहे थे। यह घटना उनके राजनीतिक जीवन के खतरनाक और अस्थिर माहौल को दर्शाती है।
उनका राजनीतिक वर्चस्व झारखंड में उनके व्यक्तिगत करिश्मे और पार्टी नेतृत्व दोनों के बल पर बरकरार रहा। सोरेन ने 38 साल तक झामुमो के अध्यक्ष के रूप में काम किया और अप्रैल 2025 में उन्हें पार्टी का संस्थापक संरक्षक बनाया गया। उनके बेटे हेमंत सोरेन, जो कार्यकारी अध्यक्ष थे, को झामुमो का अध्यक्ष चुना गया। पार्टी फिलहाल राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का हिस्सा है।
शिबू सोरेन का निजी जीवन भी उनकी राजनीतिक यात्रा से जुड़ा रहा। उनके परिवार में पत्नी रूपी सोरेन, तीन बेटे और बेटी अंजनी (पार्टी की ओडिशा इकाई प्रमुख) हैं। बड़े बेटे दुर्गा सोरेन का मई 2009 में निधन हो गया। दूसरे बेटे हेमंत सोरेन ने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया और कई कार्यकालों में झारखंड के मुख्यमंत्री रहे। छोटे बेटे बसंत सोरेन विधायक हैं।
झारखंड में बहुतों के लिए शिबू सोरेन उनकी पहचान और आत्मशासन के लंबे संघर्ष का प्रतीक बने रहेंगे- एक ऐसी विरासत, जो अब अगली पीढ़ी के हाथों आगे बढ़ रही है।
इनपुट: पीटीआई