शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह छिनने के बाद सोमवार को उद्धव ठाकरे गुट को एक और बड़ा झटका लगा। शिंदे गुट ने विधान भवन में शिवसेना के कार्यालय पर कब्जा कर लिया है। चुनाव आयोग के फैसले के बाद शिवसेना का विधानसभा कार्यालय शिंदे गुट को दे दिया गया है। इस घटनाक्रम के बाद शिवसेना भवन में जिलाध्यक्षों की बैठक में उद्धव ठाकरे का आक्रामक अवतार देखने को मिला। उद्धव ठाकरे ने सीधे तौर पर आरोप लगाया कि शिवसेना को सुपारी देकर मारने की कोशिश की जा रही है ।
उद्धव ठाकरे ने कहा कि निर्वाचन आयोग का आदेश गलत है। उच्चतम न्यायालय उम्मीद की आखिरी किरण है। ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है, जब पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न सीधे एक गुट को दे दिया गया हो। इतनी जल्दबाजी में फैसला देने की क्या जरूरत थी। भले ही दूसरे गुट ने हमारा नाम और चिह्न ले लिया हो, लेकिन वे हमारा ठाकरे का नाम नहीं ले सकते। मैं भाग्यशाली हूं कि बालासाहेब ठाकरे के परिवार में पैदा हुआ। भाजपा ने आज हमारे साथ जो किया, वह किसी के साथ भी कर सकती है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो 2024 के बाद देश में लोकतंत्र या चुनाव नहीं होगा। ठाकरे ने कहा कि उन्होंने हिंदुत्व को कभी नहीं छोड़ा, हालांकि उन पर ऐसा करने का आरोप तब लगा, जब उन्होंने 2019 में भाजपा के साथ अपने दशकों पुराने गठबंधन को समाप्त कर दिया।
शिवसेना के आधिकारिक बैंक खातों से धन हस्तांतरित किए जाने पर ठाकरे ने कहा कि निर्वाचन आयोग को यह बोलने का कोई अधिकार नहीं है कि पार्टी के धन का क्या होता है और यह सुल्तान की तरह कार्य नहीं कर सकता। इसकी भूमिका केवल निष्पक्ष चुनाव कराने और किसी राजनीतिक दल के भीतर आंतरिक लोकतंत्र सुनिश्चित करने तक सीमित है। अगर निर्वाचन आयोग पार्टी के कोष वितरण में दखल देता है, तो उस पर आपराधिक मामला चलेगा।
शिंदे खेमे द्वारा शिवसेना की विभिन्न संपत्तियों को अपने कब्जे में लिए जाने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि मैं उन्हें मेरे पिता दिवंगत बालासाहेब ठाकरे के नाम और उनकी तस्वीर का इस्तेमाल बंद करने की चुनौती देता हूं। वे अपने पिता की तस्वीर लगाएं और फिर वोट मांगें। ठाकरे ने कहा कि आयोग पहले ही उनके खेमे को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नाम से अलग नाम दे चुका है और उसे प्रतीक के तौर पर मशाल भी दे चुका है। इसका मतलब है कि निर्वाचन आयोग ने हमारे अलग अस्तित्व को पहले ही मान्यता दे दी थी।
शिवसेना (यूबीटी) के मुखपत्र सामना के संपादकीय में आरोप लगाया गया है कि निर्वाचन आयोग ने पूरे मुद्दे को संपत्ति के सौदे की तरह लिया और ठाकरे द्वारा स्थापित, पोषित शिवसेना को दिल्ली के तलवे चाटने वालों के हाथों सौंप दिया। यह बात भी अब छिपी नहीं रह गयी है कि धनुष बाण चुनाच चिह्न भी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मेहरबानी से मिला है। यह आदमी महाराष्ट्र और मराठी जनता का एक नंबर का शत्रु है। मौजूदा सरकार (शिंदे-फडणवीस) बनाने और निर्वाचन आयोग से अनुकूल फैसला प्राप्त करने के लिए दो हजार करोड़ रुपये खर्च किये गये। मुमकिन है कि कल कोई अडाणी, अंबानी या नीरव मोदी सारे विधायकों और सांसदों को खरीदकर पूरी पार्टी, सरकार पर अपना मालिकाना हक जताएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए लिखा कि प्रधानमंत्री को अब लाल किले से ऐलान कर देना चाहिए कि उन्होंने आजादी के 75 साल बर्बाद कर दिये और देश में तानाशाही का शासन शुरू हो गया है। न्यायपालिका, संसद, समाचार मीडिया और निर्वाचन आयोग जैसी स्वायत्त संस्थाएं अब हमारे गुलाम के तौर पर काम करेंगी। आजादी के लिए आवाज उठाने वालों को राष्ट्रविरोधी कहा जाएगा और फांसी पर लटका दिया जाएगा। महाराष्ट्र पर हमला देश के लोकतंत्र पर हमला है। इतिहास में इससे पहले कभी सत्ता का इस तरह दुरुपयोग नहीं किया गया।