यकीन मानिए, सिर्फ आप ही नहीं बल्कि सारा देश इस समय चाय की चुस्कियों के साथ कुश्ती और मुक्केबाजी की ही चर्चा कर रहा है।
भिवानी के विजेन्द्र ने क्वार्टर फाइनल में शानदार जीत दर्ज करके गोल्ड जीतने की उम्मीदें जगा दी हैं। विजेन्द्र के पिता महिपाल सिंह हरियाणा रोडवेज के ड्राइवर हैं। उनका कहना है, ‘अपनी क्षमता के मुताबिक हमने हमेशा विजेन्द्र का साथ देने की कोशिश की। मैं और मेरी पत्नी कृष्णा देवी हमेशा उसका हौसला बढ़ाते रहते थे। हमारा सपना अब पूरा हो रहा है।’
कुछ ऐसी ही खुशियों से लबरेज हैं हरियाणा के बापरोड़ा गांव के दीवान सिंह। उनके फ्रीस्टाइल पहलवान बेटे सुशील कुमार ने कजाकिस्तान के लियोनिद स्पीरिदोनोव को पराजित कर कांस्य पदक जीता है। एमटीएनएल के ड्राइवर दीवान सिंह का कहना है, ‘2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स और 2012 के ओलंपिक के लिए भी सुशील से उम्मीदें हैं।’ सुशील 23 अगस्त को देश वापस लौट रहे हैं।
गौरतलब है कि पदक जीतने के बाद सुशील को 1 करोड़ 65 लाख रुपये का पुरस्कार मिल चुका है। अब विजेन्द्र की जीत के प्रति आश्वस्त उनके गुरु जगदीश सिंह की पीड़ा देखिए। जगदीश कहते हैं कि मुक्केबाजी या कुश्ती के खिलाड़ी मूलत: ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं लेकिन इन खेलों के लिए न तो सरकार, फेडरेशन और न ही मीडिया कोई खास ध्यान देती है।
क्रिकेट के सामने दूसरे खेलों को लेकर मीडिया भी भेदभाव करती है। खैर, इस बीच भिवानी में अब हर चाय की दुकान, ट्रेन और गली-मुहल्ले में मुक्केबाजी और कुश्ती की ही बात हो रही है। भिवानी में भी बच्चे बड़े उत्साह से विजेन्द्र और सुशील के घूंसों की बात कर रहे हैं।’ इस बीच ओलंपिक में कड़ी टक्कर देने वाले मुक्केबाज अखिल के पिता शिव भगवान मिश्रा बेटे की हार से मायूस तो जरूर हैं लेकिन वे 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स और अगले ओलंपिक की आस में हैं।