उत्तर प्रदेश सरकार चीनी क्षेत्र को मांग और आपूर्ति के उतार-चढ़ावों से छुटकारा दिलाने के लिए अगले महीने उत्तर प्रदेश सुगर फैक्ट्रीज लाइसेंसिंग आर्डर 1966 में संशोधन करते जा रही है। इस संशोधन के बाद चीनी मिलों को गन्ने के रस को सीधे ईथेनॉल में बदलने की आजादी मिलेगी। ईथेनॉल को पेट्रोलियम ईधन में मिलाया जाता है।
उत्तर प्रदेश में 2006-07 के दौरान चीनी का उत्पादन अच्छा रहा था। इस दौरान 85 लाख टन उत्पादन के साथ उत्तर प्रदेश का स्थान दूसरा रहा। पहले स्थान पर महाराष्ट्र था। राज्य में चीनी की सालाना खपत करीब 50 लाख टन है। गन्ना विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस समय लाइसेंसिंग आर्डर के तहत मिलों को उत्पादन करने से रोका जा रहा है। ऐसा करने पर उन्हें दंड देना होगा।
केन्द्र सरकार पहले ही चीनी (नियंत्रण) आदेश, 1966 को पहले ही संशोधित कर चुकी है ताकि गन्ने को सीधे ईथेनॉल में बदला जा सके। केन्द्र सरकार ने अक्टूबर 2008 से ईधन में 10 प्रतिशत ईथेनॉल को मिलाना अनिवार्य कर दिया है। ऐसे में राज्य सरकार द्वारा आदेश में संशोधन करने से चीनी मिलों के लिए कमाई का एक और जरिया तैयार हो सकेगा और मिल मांग के मुताबिक चीनी का उत्पादन कर सकेंगी।
इस बीच राज्य सरकार ने गन्ने की कम तौर करने के आरोप में 13 चीनी मिलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है जबकि 188 क्लर्क को बर्खास्त कर दिया गया है। किसानों को समय पर अदायगी नहीं कर पाने के कारण निजी क्षेत्र की 70 चीनी मिलों को वसूली प्रमाणपत्र जारी किए गए हैं। चीनी मिलों पर अभी भी 500 करोड़ रुपये से अधिक का बकाया है। अधिकारी ने बताया कि उत्तर प्रदेश में इस साल निजी क्षेत्र की 5 नई मिलों की स्थापना होने की उम्मीद है।
