शिवकाशी की औद्योगिक प्रकृति को देखते हुए पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस छोटे से शहर को ‘कुट्टी जापान’ नाम दिया था। तमिल भाषा में कुट्टी का मतलब होता है छोटा। यह औद्योगिक शहर पटाखा विनिर्माण के लिए प्रसिद्ध है। आज देश के हर गांव-कस्बे में त्योहार या खुशी के मौकों पर जो पटाखे जलाए जाते हैं, उनमें 85 प्रतिशत नेहरू के इसी कुट्टी जापान में बनते हैं।
भले ही शहर को यह मिनी जापान का तमगा हासिल हो, लेकिन आज यह अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। दिल्ली जैसे बड़े शहर में पटाखों पर प्रतिबंध और अन्य शहरों में पटाखे जलाने के नियम सख्त हो जाने, कोविड महामारी में बिक्री गिर जाने और बेरियम नाइट्रेट के इस्तेमाल के साथ इससे पटाखे बनाने और बेचने पर रोक लगी है। इससे संगठित क्षेत्र में पटाखे बनाने का काम धीमा हो गया है। इन चुनौतियों के कारण शहर के लोगों के हाथ से काम छिनता जा रहा है और वे आजीविका कमाने के लिए दूसरे विकल्प तलाशने को मजबूर हैं। उद्योग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस साल पटाखों की बिक्री पिछली दीवाली से बेहतर है, लेकिन बिक्री अभी भी महामारी से पहले के स्तर पर नहीं पहुंची है।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने बीते सोमवार को दीवाली से पहले ही सख्त कदम उठाते हुए सभी तरह के पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया है। पूरे दिल्ली-एनसीआर में यह प्रतिबंध अगले साल 1 जनवरी तक लागू रहेगा। समिति ने यह कदम राजधानी दिल्ली में दीवाली के त्योहार पर होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के मकसद से उठाया है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने ग्रीन पटाखे जलाने की इजाजत दी है।
इंडियन फायरवर्क्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (टीआईएफएमए) के अध्यक्ष एस श्रीराम अशोक ने कहा, ‘अभी पटाखों की मांग महामारी से पहले जैसी नहीं है, लेकिन यह धीरे-धीरे बढ़ रही है। दिल्ली में पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध और अन्य शहरों में पटाखे जलाने के सख्त नियम बनने के कारण यह उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है।’ एल्युमीनियम, सल्फर और पेपर उत्पादों जैसे कच्चे माल की कीमतें बढ़ने के कारण कंपनियों के कामकाम पर असर पड़ रहा है। शिवकाशी में पटाखा उद्योग अनुमानित तौर पर 3,00,000 लोगों को प्रत्यक्ष और 5,00,000 लोगों को अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार देता है। बेरियम पर प्रतिबंध से अनार, चकरी, फुलझड़ी और रॉकेट जैसे प्रमुख और लोकप्रिय पटाखे बनाने का काम धीमा पड़ गया है।
शिवकाशी फायरवर्क्स मैन्युफैक्चरर्स
एसोसिएशन के मुरली असैतंबी कहते हैं, ‘अवैध पटाखा निर्माताओं के कारण संगठित क्षेत्र में इनका उत्पादन कम हो गया है। ढीले नियमों के कारण अवैध पटाखा फैक्टरियां मशरूम की तरह फैल रही हैं।’
टीआईएफएमए के महासचिव टी कन्नान के अनुसार, ‘बाजार में मांग तो है, लेकिन संगठित क्षेत्र में पटाखों का उत्पादन 15 प्रतिशत तक कम हो गया है। अवैध रूप से पटाखे बनाने वाले खूब फल-फूल रहे हैं और उनका कारोबार चल रहा है।’
केयर रेटिंग की रिपोर्ट में तमिलनाडु फायरवर्क्स ऐंड अमॉर्सेस मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के हवाले से कहा गया है कि कोविड महामारी से पहले पटाखों का कारोबार लगभग 3,000 करोड़ रुपये का था और यह देश में सबसे अधिक पटाखे बनाने का केंद्र था। यहां की अकेली स्टैंडर्ड फायरवर्क्स (एसएफपीएल) कंपनी की बाजार हिस्सेदारी 5 प्रतिशत थी।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘पटाखा उद्योग का बहुत बड़ा हिस्सा असंगठित प्रकृति का है और यह कुटीर उद्योग की तरह चल रहा है। घरों या टिनशेड डालकर छोटी जगहों में ही काम हो रहा है। इसके अलावा, असंगठित क्षेत्र से प्रतिस्पर्धा, कम प्रतिबंध, शोर और प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय मुद्दों और उद्योग की जोखिम भरी प्रकृति होने के कारण एसएफपीएल जैसी कंपनियों का उभरना थोड़ा मुश्किल हो गया है।