उत्तर प्रदेश में बीते दिनों गन्ना किसानों को किए जाने वाले भुगतान पर सहमति न बन पाने के कारण चीनी मिलों को अदालत में गुहार लगानी पड़ी थी। चीनी मिलों ने राज्य सरकार द्वारा समर्थित
ज्यादातर चीनी मिल मालिक अक्टूबर से शुरू होने वाले चीनी सत्र के दौरान मिल मालिक गन्ना हासिल करने के लिए सरकार द्वारा समर्थित मूल्य के अलावा किसानों को पेशगी
, प्रीमियम और अन्य आकर्षक सुविधाएं देने पर विचार कर रहे हैं। इस बदलाव की वजह को समझना मुश्किल नहीं है। इस साल राज्य में गन्ने की पैदावर घटी है इसके कारण अगले सत्र में गन्ने की कमी होने की आशंका है।
सिंभावली सुगर मिल्स के वित्त निदेशक संजय तपरिया ने बताया कि
‘किसी भी सूरत में अगले वर्ष गन्ने की कमी होगी और चीनी की कीमत बेहतर होगी। इसके कारण चीनी मिल मालिक अधिक भुगतान के जरिए अधिक से अधिक गन्ना हासिल करने की कोशिश करेंगे। यदि किसी क्षेत्र में कोई मिल अधिक भुगतान करती है तो दूसरों को भी ऐसा करना होगा।‘
त्रिवेणी इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्रीज के उपाध्यक्ष निखिल साहनी ने बताया कि यदि चीनी का मार्जिन बेहतर होता है तो चीनी मिल और गुड़ इकाइयों के बीच अधिक से अधिक गन्ना हासिल करने के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। बीते साल रिकार्ड उत्पादन के कारण चीनी की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई थी।
किसानों को भुगतान नहीं करने के कारण कई मिलों ने देरी से पेराई की शुरूआत की। दूसरे विकल्प के अभाव में किसानों को अपनी फसल गुड़ और खांडसारी कारोबारियों के हाथों बेचनी पड़ी।
इसके अलावा केन्द्र सरकार ने गेहूं का समर्थन मूल्य
850 रुपये से बढ़ाकर 1,000 रुपये कर दिया है। इस कारण अगले सत्र में गन्ना के उत्पादन में 20 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है। गन्ने की आवक गुड़ और खांडसारी उत्पादकों की ओर बढ़ने का प्रभाव चीनी की कीमतों पर भी दिखाई देने लगा है।
पेराई की शुरूआत के समय चीनी की एक्स–फैक्टरी कीमत 1,375 रुपये प्रति क्विंटल थीं जबकि अब कीमत बढ़कर 1,550 रुपये प्रति क्विंटल हो गई हैं। कीमतों में बढ़ोतरी की सिलसिला अभी भी जारी है। उद्योग संघों ने चालू वर्ष के लिए उत्पादन के पूर्वानुमानों को 3.2 करोड़ टन से घटाकर 2.7 करोड़ टन कर दिया है।
चालू सत्र में गन्ने की कमी के कारण मिलों ने पेराई बंद करनी शुरू कर दी है। इस साल पेराई सत्र पिछले
15 वर्षो में सबसे छोटा था। यूपी सुगर मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सी बी पित्रोदा ने बताया कि ज्यादातर मिलों में क्षमता के मुकाबले 60 से 70 प्रतिशत काम ही हो रहा है। गन्ने का रकबा घटने के कारण मिलों को अगले साल अच्छी कीमत चुकानी पड़ेगी।