मध्य प्रदेश में सोया किसान खाद की कमी से जूझ रहे हैं। सोयाबीन के उत्पादन में अव्वल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज्य में खेती को मुनाफे का सौदा बनाने का दावा कर रहे हैं लेकिन किसानों की परेशानी का कोई अंत नहीं है।
एक अनुमान के मुताबिक मध्य प्रदेश में इस साल 3,65,000 टन सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी) की जरुरत है जबकि आपूर्ति कुल मांग के मुकाबले आधी ही है। राज्य सरकार भी मानती है कि इस साल एसएसपी की कमी है। ऐसा राजस्थान में चल रहे गूर्जर आंदोलन के कारण है। राजस्थान एसएसपी में इस्तेमाल होने वाले रॉक फास्फेट का मुख्य आपूर्तिकर्ता है।
भोपाल, विदिशा, शाजापुर, शुजालपुर, उज्जैन, सीहोर, मंदसौर, नीमच और अन्य पश्चिमी जिलों में किसान खाद संकट का सामना कर रहे हैं। इन जिलों में सोया की पैदावार काफी अधिक होती है। इन इलाकों में किसानों को सरकारी दुकानों से भी राहत नहीं मिल रही है जबकि सोयाबीन की खेती के लिए खाद का छिड़काव बेहद जरूरी है। रायसेन जिले के महेश्वरी गांव के किसान अजय सिंह ने बताया कि ‘इस साल काफी दिक्कत है। कहीं भी खाद नहीं मिल रही है।’
सूत्रों ने बताया है कि रायसेन, विदिशा, सीहोर और मंदसौर में राज्य सरकार के स्वामित्व वाली कृषि सहकारी एजेंसियां भी एसएसपी और डीएपी (डाई अमोनियम फास्फेट) की कमी से जूझ रही हैं। जब इस संवाददाता ने भोपाल में सरकारी किसान सहकारी विपणन दुकान में एसएसपी की पांच बोरी की मांगी तो दुकानदार ने खाद देने से मना कर दिया। उसका कहना था कि ‘खाद (डीएपी, एसएसपी और यूरिया) नहीं है।’ उसने यह भी बताया कि राज्य भर में खाद की नकद बिक्री पर रोक है।
गोविंदपुर इलाके में एक अन्य सरकारी दुकान से भी ऐसा ही जवाब मिला। निजी रिटेलर्स ने 50 किलो खाद की कीमत बढ़ाकर 200 रुपये से 240 रुपये के बीच कर दी है जबकि सरकारी दुकानों में सब्सिडी वाली दरें 182 रुपये है। हालांकि, इन रिटेलर्स ने भी एसएसपी की उपलब्धता से इनकार किया है। मध्य प्रदेश में किसान एक एकड़ में एक बोरी खाद डालते हैं।
पंजाब में हालात सामान्य
पंजाब में किसानों को खाद की ऐसी कमी का सामना नहीं करना पड़ रहा है जैसा कि दक्षिणी राज्यों में देखने को मिला है। इसके अलावा सरकार ने धान सत्र के दौरान किसानों को खाद की आपूर्ति के लिए पर्याप्त इंतजाम किए हैं।
गेहूं के मुकाबले धान को कम खाद की जरुरत होती है लेकिन धान की खेती में पानी और कीटनाशकों की खपत अधिक होती है। इसलिए राज्य में किसान खाद की उपलब्धता को लेकर अधिक चिंतित नहीं हैं। खरीफ सत्र में पंजाब में किसानों को खाद की कमी के मुकाबले दूसरे राज्यों से आने वाले मजदूरों की कमी भी झेलनी पड़ रही है।
फतेहगढ़ साहिब जिले के चनारतां कलां के गुरदेव सिंह ने बताया कि 15 जून से बुवाई शुरू हो जाती है लेकिन इस बार मजदूर ही नहीं मिल रहे हैं। उन्होंने बताया कि ‘कमी के चलते बीते साल के मुकाबले इस साल मजदूरी बढ़कर तीन गुनी हो गई है।’ पंजाब के फतेहगढ़ साहिब और पटियाला जिलों में सहकारी सोसाइटियों को मार्च में ही डीएपी की खेप पहुंचा दी गई थी।
चनारतां कलां सहकारी सोसाइटी के सचिव ने बताया कि ‘हमें मार्च में डीएपी की 3,500 बोरियां मिली थीं जबकि जगह की कमी के चलते 500 बोरियां लौटा दी गई थीं।’ चालू खरीफ सत्र के दौरान पंजाब में कुल 2.60 लाख मीट्रिक टन डीएपी और 13 लाख मीट्रिक टन यूरिया की की जरुरत है। इस समय राज्य सरकार के पास 1.24 लाख मीट्रिक टन डीएपी और 6.80 लाख मीट्रिक टन का स्टॉक है।
सूत्रों ने बताया है कि शेष स्टॉक इस महीने या अगले महीने तक आ जाएगा। बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत के दौरान संगरूर जिले के किसान निर्भय सिंह ने बताया कि ‘इस समय हमारे क्षेत्र में खाद की कमी नहीं है। डीएपी खाद हमाने क्षेत्र में मौजूद है। सामान्य तौर पर हमें गेहूं सत्र के दौरान खाद की कमी का सामना करना पड़ता है।’
अमृतसर जिले के किसान राजिंदर सिंह ने बताया कि ‘हमारे जिले में खाद की कोई कमी नहीं है। डीएपी, यूरिया, पोटाश और जिंक जैसी खाद हमारे क्षेत्र में मौजूद हैं।’ विश्लेषकों का कहना है कि मई में बारिश होने के कारण बुवाई जल्दी शुरू हो गई है। इसलिए आने वाले दिनों में खाद की आवक पर दबाव बढ़ेगा।