भारतीय स्टेट बैंक में ऋण वृद्धि अच्छी देखी जा रही है और चालू वित्त वर्ष में इसके दो अंक में बढ़ने की उम्मीद है। देश के सबसे बड़े बैंक के चेयरमैन सीएस शेट्टी ने मुंबई में मनोजित साहा और अभिजित लेले के साथ बातचीत में कहा कि प्रभावी लायबिलिटी प्रबंधन से बैंक को 3 फीसदी से ज्यादा मार्जिन बनाए रखने में मदद मिलेगी। मुख्य अंश:
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति इस हफ्ते के अंत में समीक्षा के नतीजे घोषित करेगी। क्या आपको लगता है कि रुपये में हालिया गिरावट, जमा वृद्धि में सुस्ती और ऋण-जमा अनुपात 80 फीसदी से ज्यादा होने की वजह से रीपो दर में और कटौती की गुंजाइश कम है?
रीपो दर के लिहाज से देखें तो मुझे नहीं लगता कि वे जमा जुटाने पर ध्यान दे रहे हैं। रीपो दर वृद्धि और महंगाई के गणित पर निर्भर करती है, कम से कम क्लासिकल मॉनेटरी थ्योरी तो यही कहती है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में मजबूत वृद्धि देखी गई और महंगाई में भी नरमी है। मुझे लगता है कि दर कटौती की राह में मजबूत वृद्धि दर मौद्रिक नीति के लिए चुनौती हो सकती है।
यह भी सच है कि जो थोड़ी महंगाई दिख रही है वह असल खाद्य पदार्थों की कीमतों की वजह से है। यह कभी भी बदल सकती है। जीडीपी के आंकड़े के बाद मुझे लगता है कि हर कोई ठहराव चाहता है। मोटे तौर पर आम राय दर कटौती पर विराम की लगती है लेकिन हमें नियामक के निर्णय का इंतजार करना होगा।
अब तक ऋण वृद्धि कैसी रही है? क्या कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां ज्यादा मांग दिख रही है?
हम मजबूत ऋण वृद्धि देख रहे हैं। मुझे लगता है कि जीएसटी सुधारों और आयकर में कटौती के बाद हमने पूरे वित्त वर्ष के लिए अपनी ऋण वृद्धि के अनुमान को बदलकर 12-14 फीसदी कर दिया है। हमें किसी भी क्षेत्र में अत्यधिक मांग या जोखिम वाली वृद्धि नहीं दिख रही है।
ऋण वृद्धि में कौन सा क्षेत्र अच्छा योगदान दे रहे हैं?
अगर आप देखें तो रिटेल, कृषि और एमएसएमई कई तिमाही से 14 से 15 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। नई बात यह है कि कॉरपोरेट ऋण की मांग भी बढ़ रही है। हमें उम्मीद है कि हम लगभग 10 फीसदी की वृद्धि हासिल करेंगे।
कॉरपोरेट ऋण वृद्धि के पीछे क्या वजहें हैं?
कॉरपोरेट ऋण वृद्धि कार्यशील पूंजी के इस्तेमाल से बढ़ती है। भारतीय कंपनियां कार्यशील पूंजी कस बेहतर उपयोग कर रही हैं। दर कटौती और आरबीआई के उपायों ने मांग को बनाए रखने में मदद की है। हमने टर्म लोन को मंजूरी दी है और लोग उन्हें ले रहे हैं। हालांकि स्टील और सीमेंट सहित कुछ क्षेत्र हैं जिनमें अभी भी पूंजीगत खर्च में तेजी नहीं आई है। अगर वे पूंजीगत खर्च कर भी रहे हैं तो इस इस क्षेत्र की कुछ बड़ी कंपनियों के पास अच्छी नकदी है और वे उसका इस्तेमाल कर रही हैं। मगर अक्षय ऊर्जा, सड़क, डेटा सेंटर और रिफाइनरियों में अच्छी ऋण वृद्धि देखी जा रही है।
क्या आपको लगता है कि आरबीआई की दर कटौती से जमा जुटाना और मुश्किल हो जाएगा?
दर में कटौती से ज्यादा हमें बैकिंग तंत्र में नकदी की उपलब्धता बढ़ाने पर ध्यान देने की जरूरत है और आरबीआई इस दिशा में लगातार प्रयास करता रहता है। रीपो दर पर मौद्रिक नीति समिति का जो भी फैसला हो, आरबीआई तरलता बढ़ाने पर ध्यान जरूर देगा। जब भी ऋण वृद्धि होगी जमा भी आएगा।
दूसरी तिमाही में एसबीआई का ऋण जमा अनुपात 69 फीसदी के करीब था। क्या यह अब 70 फीसदी तक पहुंच गया है?
मुझे लगता है कि यह अब 70 फीसदी के पार पहुंच गया है। लेकिन तरलता और पूंजी के मामले में चिंता की कोई बात नहीं है। हमारा मानना है कि अगर हमारे पास 12 लाख करोड़ रुपये की ऋण वृद्धि की संभावना हो तो हम उसे भी आराम से पूरा कर सकते हैं। इसलिए अगर आप 12 से 14 फीसदी ऋण वृद्धि भी मान लें तो भी यह साल भर में शायद 5 लाख करोड़ रुपये या इससे थोड़ा अधिक हो सकता है।
क्या आपको जमा दर में और कमी दिख रही है?
मुझे लगता है सावधि जमा पर ब्याज दर घटना मुश्किल होगा। हमें यह समझना होगा कि रीपो दर में 100 आधार अंक की कटौती के बावजूद सावधि जमा की ब्याज दर में 100 आधार अंक की कटौती नहीं हुई है। हम में से कई लोग कासा (सीएएसए) जमाएं बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। हम कोविड में कासा के 45-46 फीसदी के स्तर तक नहीं पहुंचे हैं। बैंकिंग तंत्र में यह 38-49 फीसदी रहना अच्छा है।
…लेकिन बचत खाते पर ब्याज दर तो अभी तक सबसे निचले स्तर पर है?
बचत खाता असल में ऑपरेशनल खाता बन जाएगा। क्योंकि यह प्राथमिक बचत खाता बन जाए। उदाहरण के लिए हम हर दिन लगभग 70,000 से 75,000 खाता खोलते हैं, जिसका मतलब है कि बचत खातों की संख्या बढ़ रही है। हमने महसूस किया है कि अगर हमारे कर्मचारी कहते हैं कि हम बचत खाता खोल रहे हैं तो इसका मतलब है कि मकसद बचत करना है। पहले जो खाते खुलते थे उनमें पैसा आने में ज्यादा समय लगता था। आज जो खाते खुले हैं उनमें से 70 फीसदी में 90 दिनों के अंदर पैदा जमा हो जाता है। इसका मतलब है कि आपका दैनिक औसत बैलेंस बढ़ रहा है। हम ज्यादा से ज्यादा सैलरी अकाउंट खोल रहे हैं। एक सामान्य खाते में दैनिक औसत शेष राशि 90,000 रुपये से 1 लाख रुपये तक होती है। लेकिन कॉरपोरेट सैलरी खाते में यह 1.6 लाख से 2 लाख रुपये तक होता है।
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क्या इन सभी कदमों से शुद्ध ब्याज मार्जिन और बेहतर होगा?
एक बार जब आप लायबिलिटी का प्रबंधन सही से कर लेते हैं तो इससे संसाधन की लागत कम करने में मदद मिलती है। यह मार्जिन को बचाने में मदद कर रहा है। दर कटौती की संभावना तो नहीं है मगर दिसंबर में रीपो घटाई भी गई तब भी हमारा मार्जिन 3 फीसदी से ऊपर रहेगा।