प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
दिल्ली उच्च न्यायालय ने आईफोन बनाने वाली ऐपल इंक की एक याचिका पर केंद्र सरकार और भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) से जवाब मांगा है। आईफोन विनिर्माता ने प्रतिस्पर्धा नियमों में हालिया संशोधनों पर चुनौती दी है, जिसमें कंपनी के वैश्विक कारोबार के आधार पर जुर्माना लगाने की अनुमति दी गई है।
यह संशोधन 6 मार्च, 2024 से प्रभावी हुआ है। इसके तहत प्रतिस्पर्धा आयोग को प्रतिस्पर्धा विरोधी आचरण अथवा दबदबा का दुरुपयोग का दोषी पाए जाने वाली संस्थाओं पर पिछले तीन वित्त वर्ष के औसत कारोबार के 10 फीसदी तक का जुर्माना लगाने का अधिकार दिया गया है।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला के पीठ के समक्ष ऐपल की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दिया कि यह प्रावधान असंवैधानिक और अनुपातहीन है। सिंघवी ने अदालत को बताया कि एक से अधिक उत्पाद वाली कंपनियों के लिए जुर्माना भी उस खास उत्पाद से होने वाले कारोबार तक ही सीमित होना चाहिए, जो भारत के भीतर कथित उल्लंघन में शामिल है। यह न हो कि जुर्माना की राशि दुनिया भर के राजस्व पर गणना की जानी चाहिए।
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सिंघवी ने संशोधन के पूर्वव्यापी आवेदन पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने तर्क दिया कि यह लंबित मामलों को भी अनुचित तरीके से प्रभावित करता है। सिंघवी ने कहा, ‘इंगलैंड के मेरे कारोबार के भारत के कारोबार से कोई लेना-देना नहीं है। मेरा मामला यहां 2021 में शुरू हुआ। यह संशोधन 6 मार्च, 2024 को लागू हुआ। इसका प्रभाव बहुत बड़ा है।’
इसके बाद अदालत ने सरकार और प्रतिस्पर्धा आयोग से यह स्पष्ट करने को कहा कि किसी विशेष बाजार के लिए जुर्माने की गणना में असंबंधित उत्पादों के कुल कारोबार को कैसे शामिल किया जा सकता है।
पीठ ने पूछा, ‘कृपया हमें बताएं कि अगर प्रतिस्पर्धा आयोग एक उत्पाद के संबंध में कार्यवाही शुरू करता है, तो आप अन्य उत्पादों के संबंध में टर्नओवर को कैसे ध्यान में रख सकते हैं? क्या अन्य उत्पादों को शामिल करना बहुत अनुचित नहीं लगता?’
सरकार और प्रतिस्पर्धा आयोग की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह ने कहा कि आयोग प्रासंगिक टर्नओवर के सिद्धांत को लागू करता है और वैश्विक टर्नओवर तभी लागू होता है जब कंपनियां वित्तीय डेटा रोकती हैं।