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चीनी के शोध पर नमक छिड़का

Last Updated- December 07, 2022 | 4:04 PM IST

भारत सरकार के एकमात्र चीनी शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान को एक नया झटका लगा है।


केन्द्र सरकार द्वारा चलाए जाने वाले इस संस्थान को आवंटित किये जाने वाले कोष में से चालीस फीसदी की कटौती कर दी गई है। ऐसा होने से संस्थान में चल रहें शोध और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के सीधे तौर पर प्रभावित हो गये है। और कई कार्यक्रमों को बंद करने की योजना बनाई जा रही है।

इस संस्थान को केन्द्र सरकार के उपभोक्ता मामलों,खाद व जनवितरण विभाग के अंतर्गत चलाया जा रहा है। यह विभाग ही इस संस्थान में चीनी तकनीक और इससे संबधित क्षेत्रों में शोध और प्रशिक्षण के कार्यक्रम संचालित करता है। यह संस्थान शुगर मिलों को अपनी क्षमता को बढ़ाने और समस्याओं से निबटने के लिए तकनीकी सहायता भी उपलब्ध कराता है।

संस्थान के आधिकारिक सूत्रों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ‘संस्थान में कर्मचारियों की संख्या में भारी कमी है। लेकिन पर्याप्त कोष के उपलब्ध न होने के कारण इनकी भरपाई नहीं हो पा रही है। हमारी सरकार से अतिरिक्त कोष को उपलब्ध कराने के लिए बात भी चल रही है। हमें उम्मीद है कि सरकार अतिरिक्त कोष को जल्द से जल्द उपलब्ध करवा देगी।’

कोष में सबसे ज्यादा कटौती संस्थान के लिए होने वाले विभिन्न उत्पादों की आपूर्ति और दफ्तरी काम में होने वाले खर्चे में की गई है। संस्थान के लिए पहले लगभग 43 लाख रुपये का कोष उपलब्ध करवाया गया था। लेकिन अब इसे घटाकर मात्र 20 लाख रुपये कर दिया गया है। यही नहीं सरकार ने संस्थान के दूसरे परिचालनों के लिए मिलने वाले कोष को भी घटाकर लगभग आधा कर दिया है।

इसके अंतर्गत वर्ष 2005-06 के लिए संस्थान को लगभग 80 लाख रुपये का कोष उपलब्ध कराया गया था। जिसे घटाकर वर्तमान सत्र के लिए 58 लाख रुपये कर दिया गया है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि  शोध के ऊपर ही प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख रुपये का व्यय होता है। इसे घटाकर लगभग 5 लाख रुपये कर दिया गया है।

संस्थान के निदेशक आर पी शुक्ला ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि हमें उम्मीद है कि हमारी समस्याओं पर जल्द ही विचार किया जाएगा। इस महीने के अंत तक अतिरिक्त कोष के उपलब्ध होने की भी संभावना है। कन्नौज के सांसद अनिल शुक्ला वर्सी ने इस मुद्दें के ऊपर अपना अंसतोष जाहिर किया है। यह एकमात्र संस्थान ऐसा है जो शुगर मिलों के लिए शोध कार्यो से जुड़ा हुआ है।

इस संस्थान के बंद होने से इस क्षेत्र में शोध कार्य रुकेगें। वर्सी ने कहा संस्थान के कोष में कमी होने के कारण केन्द्र सरकार में बैठे हुए लोगों का व्यक्तिगत स्वार्थ है। शुक्ला ने कहा कि ‘अगर यह संस्थान बंद हो जाता है तो इससे पूणे में खोलने वाले चीनी शोध संस्थान को सीधे तौर पर फायदा होगा।’

पैसे का रोना

चीनी शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान के सरकारी कोष में 40 फीसदी की कटौती कर दी गयी है। कर्मचारियों की संख्या पहले से ही कम है। जिससे शोध कार्य प्रभावित हो रहा है।

First Published - August 10, 2008 | 10:54 PM IST

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