‘आम्ही कोली दर्याचे राजे आहोत’ इस मराठी पंक्ति का अर्थ है कि हम मछुआरे सागर के राजा हैं।
लेकिन हालत यह है कि महाराष्ट्र में मानसून की जोरदार दस्तक ने राज्य में फैले 720 किलोमीटर लंबे समुद्री तट से इन मछुआरों को अपना साम्राज्य यानी समुद्र वक्त से पहले छोड़ने के लिए विवश कर दिया है।
आगामी दो महीने तक समुद्री क्षेत्र में मछुआरों का मछली पकड़ने का अपना पारंपरिक व्यवसाय सुरक्षा कारणों से बंद हो जाएगा। अब नारियली पूर्णिमा के दिन से समुद्र में नौकाओं का दीदार होगा। इस दौरान महाराष्ट्र के मछली व्यवसाय को लगभग 200 करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
इस अवधि में राज्य के 1.20 लाख मछुआरे नौकाओं एवं मछली पकड़ने के उपयोग में आने वाले जाल के मरम्मत कार्य में जुट जाते हैं। इसके अलावा मछुआरों के घरों की महिलाएं झींगा और बोंबिल जैसी मछलियों को गर्मी के मौसम में सूखा कर रखती हैं। मानसून की अवधि में इन्हीं सूखी मछलियों तथा मीठे पानी(खाड़ी) में पायी जानेवाली मछलियां बाजार में बेचकर अपने परिवार का पेट पालती हैं।
महाराष्ट्र में मछुआरों की कुल 386 बस्तियां हैं और 184 छोटे-बड़े बंदरगाह हैं। इन बंदरगाहों पर कुल 13,000 यांत्रिक और 8,000 गैर यांत्रिक नौकाओं से मछली का कारोबार चलता है। महाराष्ट्र में सालाना 4 लाख टन मछलियों का उत्पादन होता है। इनमें से 1.12 लाख टन का निर्यात होता है। राज्य से 1038 करोड़ रुपये मूल्य की मछलियों का निर्यात होता है।
तेल की धार में फंसी मछलियां
पिछले पांच वर्षों के दौरान महाराष्ट्र के मत्स्य व्यवसाय में निरंतर गिरावट देखी जा रही है। अखिल महाराष्ट्र मच्छीमार कृति समिति के अध्यक्ष दामोदर तांडेल ने कहा कि इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियां और सरकारी नीतियां जिम्मेदार हैं। तांडेल ने बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी ओएनजीसी ने महाराष्ट्र के समुद्री क्षेत्र में 80 तेल कुएं खोद रखे हैं।
इन कुओं के 3 किलोमीटर दायरे के इर्द-गिर्द मछुआरों के मछलियां पकड़ने पर पाबंदी है। ऐसे में राज्य के मत्स्य व्यवसाय पर इस पाबंदी का असर होना स्वाभाविक है। ओएनजीसी का सालाना लाभ 12,000 करोड़ रुपये है और जिसमें 4,000 करोड़ रुपयों का राजस्व कंपनी को मुंबई के समुद्री क्षेत्र से प्राप्त होता है। समुद्र में स्थित कुओं में तेल उत्खनन से समुद्री पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, जिसकी वजह से बड़ी संख्या में समुद्र के भीतर ही मछलियां मारी जा रही हैं।
ओएनजीसी से मुआवजे की मांग
मछुआरों की मांग है कि ओएनजीसी उन्हें सालाना 100 करोड़ रुपये का मुआवजा दे ताकि डीजल के अतिरिक्त व्यय को कम किया जाय। मछुआरों की समस्या यहीं तक सीमित नहीं हैं, आलम यह है कि राज्य की औद्यागिक इकाइयों द्वारा भी मत्स्य व्यवसाय को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
महाराष्ट्र में तारापुर, रत्नागिरी के लोटे परशुराम एवं रायगढ़ के रोहा आदि समुद्री किनारों पर स्थापित एमआईडीसी की इकाइयों से निकलने वाले दूषित केमिकल और कचरे को सीधे समुद्र में छोड़ दिया जाता है। इन कल-कारखानों से निकलने वाले दूषित केमिकल के कारण खेकड़ा, न्यूटया, बोयी एवं खाड़ी की मछलियों के उत्पादन पर खासा असर पड़ रहा है।