दिल्ली में कारखानों को लॉकडाउन से छूट मिले एक महीना होने को है, इस अवधि में कारखानों में उत्पादन तो बढ रहा है, लेकिन इसकी गति धीमी है। उत्पादन में सुस्ती की वजह मांग में तेजी नहीं आना है। इसके अलावा सुस्त मांग के बीच उद्यमी महंगे कच्चे माल पर बहुत ज्यादा उत्पादन कर स्टॉक बढ़ाने के पक्ष में नहीं है।
दिल्ली फैक्टरी ऑनर्स फेडरेशन के अध्यक्ष राजन शर्मा कहते हैं कि कहने को तो कारखाने खुले एक महीना होने को है, लेकिन बाजार पूरी तरह 15 दिन पहले ही खुले हैं। बाजारों में मांग ने अभी जोर नहीं पकडा है, जो मांग निकली है, उसकी पूर्ति पुराने स्टॉक से हो रही है। सुस्त मांग का असर कारखानों में उत्पादन पर भी पड रहा है। आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन को छोडकर अन्य का कारखानों में उत्पादन क्षमता का 40 फीसदी ही उत्पादन हो रहा है। उदयोग को पटरी पर आने में 4 से 6 महीने लग सकते हैं।
पटपड़गंज आंत्रप्रन्योर एसोसिएशन के मुख्य संरक्षक संजय गौड़ ने कहा कि उत्पादन में धीमी गति की अहम वजह तो बाजार में मांग कमजोर होना ही है। लेकिन कच्चा माल महंगा होने से कोई भी उद्यमी बडे स्तर पर स्टॉक के लिए माल तैयार नहीं करना चाहता है। इससे भी कारखानों में क्षमता का आधे से भी कम उत्पादन हो रहा है। दिल्ली होजरी व रेडीमेड गारमेंट निर्माता संघ के अध्यक्ष के के बल्ली ने कहा कि कपड़ा उदयोग में कारखानों में उत्पादन की गति बहुत धीमी है, क्योंकि इस साल गर्मियों के सीजन में कपड़ों का कारोबार चौपट हो गया है। गर्मियों में 25 से 30 फीसदी ही कारोबार होने का अनुमान है। जिसके बड़े हिस्से ही पूर्ति लॉकडाउन से पहले बने माल से हो जाएगी। इन दिनों कारखानों में क्षमता का 30 फीसदी ही उत्पादन हो रहा है। बल्ली ने कहा कि 50 फीसदी से ज्यादा स्टॉक निकल चुका है।
बवाना चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के चेयरमैन प्रकाशचंद जैन ने कहा कि धीरे-धीरे हालात सुधर रहे हैं। हालांकि उत्पादन धीमी गति से हो रहा है। लॉकडाउन के पहले जितने कारखानों में मजदूर नहीं है। लेकिन सुस्त मांग के कारण कारखानों में उत्पादन बढ़ाने पर जोर न देने से मजदूरों की कमी जैसी स्थिति भी नहीं है। उद्यमियों को बकाया भुगतान न मिलने की समस्या से जूझना पड रहा है। जिससे कार्यशील पूंजी का संकट बढ़ रहा है। जिससे उद्यमी उधारी पर माल देने से परहेज कर रहे हैं।