स्वास्थ्य विशेषज्ञ अब मानने लगे हैं कि उत्तर प्रदेश और बिहार में पल्स पोलियो अभियान आनुवांशिक कारकों की वजह से असफल रहा है। देश में पोलियो के ताजा मामलों में उत्तर प्रदेश और बिहार की करीब
राष्ट्रीय पोलियो शिक्षा की भारतीय बालरोग अकादमी के सदस्य यश पॉल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पोलियो की दवा में कोई कमी नहीं है लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार के बच्चों में कुछ आनुवांशिक कारकों के कारण दिक्कत है। पाल ने कहा कि यही दवा पूर्वोत्तर सहित देश के बाकी हिस्सों में कारगार साबित हुई है।
पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के तहत देश भर में पांच साल से कम उम्र के बच्चों को पोलियो की दवा पिलाई जाती है जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार में इस दवा का असर नहीं दिखा है।
उन्होंने कहा कि दूसरे राज्यों में पोलियो के जो मामले आए हैं, उनमें से ज्यादातर ऐसे बच्चे हैं तो उत्तर प्रदेश या बिहार से वहां गए हैं।
उन्होंने कहा कि ‘इससे साफ पता चलता है कि इन दोनों राज्यों में पोलियो की दवा के असर को कुछ आनुवांशिक कारक कम कर रहे हैं। इस कारण सरकार और अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसियों की सहायता से गहन शोध और क्लीनिकल अध्ययन और परीक्षण करने की जरुरत है।‘ विशेषज्ञों का यह दावा भी है कि साफ–सफाई की बुरी दशा और कोल्डचेन के अभाव के कारण भी इन राज्यों में लोगों की प्रतिरोधक क्षमता भी काफी कम है।
आम तौर पर पोलियो का वायरस मानसून के दौरान फैलता है। पोलियो उन्मूलन के लिए सघन अभियान चलाने के बावजूद भारत में
2006 में पोलियो के 676 मामले सामने आए। इनमें से ज्यादातर उत्तर प्रदेश और बिहार से थे। पॉल ने कहा कि अन्य देशों में ओपीवी के साथ इनैक्टिीवेटेड पोलियो वैक्सीन (आईपीवी) के इस्तेमाल के बेहतर परिणाम सामने आए हैं। आईपीवी की दवा ओपीवी के मुकाबले अधिक महंगी है।