नेपाल में माओवादियों का सत्ता में आना तय होने के बाद उत्तराखंड में 6 हजार मेगावाट उत्पादन क्षमता वाली पंचेश्वर बिजली परियोजना का भविष्य अधर में लटकता नजर आ रहा है।
पंचेश्वर भारत की अब तक की सबसे बड़ी पन बिजली परियोजना है। उत्तराखंड में पन बिजली परियोजनाओं के विकास की काफी संभावनाएं हैं। राज्य सरकार नई ऊर्जा नीति में इन परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रावधान भी किए है लेकिन राज्य में माओवादियों की बढ़ती गतिविधियों के कारण इन परियोजनाओं के भविष्य पर आशंकाएं गहराने लगी हैं।
उत्तराखंड-नेपाल बार्डर में माओवादियों की बढ़ती गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री बी सी खंडूड़ी ने कहा है कि अब पंचेश्वर बांध का भविष्य अंतरराष्ट्रीय समीकरणों पर निर्भर करेगा। खंडूड़ी ने हाल में केंन्द्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटील से नई दिल्ली में मुलाकात कर उत्तरांखड में माओवादियों की गतिविधियों के बढ़ने पर चिंता जाहिर की।
पंचेश्वर बिजली परियोजना टिहरी बांध के तीन गुने से ज्यादा बड़ी है। यह परियोजना पिथौरागढ़ की काली नदी, चंपावत जिले और नेपाल के कुछ भागों से जुड़ी हुई है। नेपाल में हाल में हुए आम चुनावों में माओवादियों के नेतृत्व वाली पार्टी को सबसे अधिक सीटें मिली हैं।
इस परियोजना के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की जा चुकी है। इस रिपोर्ट में कुल परियोजना व्यय को 30,000 हजार करोड़ से 40,000 हजार करोड़ रुपये के बीच आंका गया है। इस परियोजना में 540 मेगावाट वाली 12 इकाई है। इस योजना से पिथौरागढ़ और चंपावत जिले का एक बड़ा हिस्सा और लगभग 80,000 हजार लोग प्रभावित होंगे।
परियोजना से प्रभावित होने वाली भूमि का 80 फीसदी हिस्सा भारत के हिस्से में और 20 फीसदी हिस्सा नेपाल के अंतर्गत आता है। केंद्र ने इस परियोजना को 1996 में हुई महाकाली परियोजना के आधार पर शुरु किया था।
परियोजना के तहत पंचेश्वर बांध की ऊंचाई को 238 मीटर से बढ़ाकर 315 मीटर किया जाना है। इससे पंचेश्वर बांध भारत में सबसे ऊंचा और बड़ा बांध बन जाएगा। इस परियोजना के लिए 121 किलोमीटर लंबा एक जलाशय बनाने की योजना भी बनाई जा रही है।
परियोजना से लगभग 146 गांव पूरी तरह से पानी में समा जाएंगे। इसके साथ ही इस क्षेत्र में दो भूमिगत जल परियोजनाएं लगाने की योजना पर भी काम किया जा रहा है। इस बांध को लेकर राज्य के कई सामाजिक कार्र्यकत्ताओं ने हल्ला बोल शुरु कर दिया है कि वे इस राज्य में दूसरा टिहरी बांध नहीं चाहते है।