केन्द्र सरकार मुंबई मेट्रो परियोजना के पहले कॉरिडोर के निर्माण के लिए जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) से वित्तीय सहायता देने पर विचार कर रही है।
अगर सरकार इस प्रस्ताव को अमली जामना पहनाती है तो मंबई मेट्रो देश में निजी हिस्सेदारी वाली ऐसी पहली परियोजना बन जाएगी जिसे जेएनएनयूआरएम से अनुदान प्राप्त होगा।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में जेएनएनयूआरएम शहरी बुनियादी ढांचा, पीने के पानी और नाला आदि परियोजनाओं के लिए शहरी निगमों को फंड मुहैया करवाती है। मुंबई में मेट्रो का निर्माण कार्य रिलायंस धीरुभाई अंबानी गु्रप (एडीएजी) द्वारा किया जाएगा।
मुंबई मेट्रो जैसी निजी-हिस्सेदारी वाली परियोजनाओं के लिए अनुदान में विस्तार करने के लिए कैबिनेट को सबसे पहले जेएनएनयूआरएम की दिशा-निर्देशों में संशोधन करना होगा। जेएनएनयूआरएम की दिशा-निर्देशों में बदलव लाने के बारे में शहरी विकास सचिव एम रामाचंद्रन ने बताया कि इस दिशा में सरकार जल्द ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचेगी। इस परियोजना को शहरी नवीकरण मिशन द्वारा दिया जाने वाला अनुदान 500 करोड़ रुपये का हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि 2005 में जेएनएनयूआरएम की शुरूआत की गई थी। इस मिशन के लिए भारत सरकार ने 50,000 करोड़ रुपये देने की घोषणा की थी। केद्रीय स्तर पर उपलब्ध 50,000 करोड़ रुपये में से मौटे तौर पर 31,000 करोड़ रुपये शहरी विकास मंत्रालय के अधीन था। इसके अलावा बाकी बचे फंड को शहरी गरीबी मिटाने और अन्य योजनाओं के निपटारे के लिए आवंटित किया गया।
एक अनुमान के मुताबिक भारत सरकार द्वारा फंड का 20 फीसदी मेट्रो परियोजना के लिए आवंटित किया जा सकता है। मुंबई मेट्रो का पहला कॉरिडोर करीब 11.5 किलो मीटर लंबा होगा और यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इसमें 2,400 करोड़ रुपये से लेकर 2,500 करोड़ रुपये तक की राशि खर्च हो सकती है। यह कॉरिडोर वर्सोवा से होते हुए अंधेरी से घाटकोपर तक जाएगी।
मुंबई मेट्रो परियोजना को अंजाम देने के लिए एडीएजी गु्रप के साथ मुंबई महानगरीय क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए) ने भी गठजोड़ किया है। इसके अलावा इस परियोजना में कई रियल एस्टेट और प्रॉपर्टी डिवेलपर्स भी शामिल हैं।
पूरी मुंबई में मेट्रो को 62.8 किलो मीटर के दायरे में फैलाया जाएगा। इस परियोजना को पूरा करने के लिए करीब 18,600 करोड़ रुपये की बड़ी राशि का जरूरत होगी। मेट्रो परियोजना से जुड़ी सभी बड़ी कंपनियों के सामने सबसे बड़ी चिंता का विषय है कि इसे पूरा करने के लिए शेष राशि कहां से आएगी।