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उप्र: छाने लागा माया और मय का जादू

Last Updated- December 10, 2022 | 8:03 PM IST

उत्तर प्रदेश में चुनावी मौसम आते ही मय और माया का जादू चलना शुरू हो गया है। पानी की कमी शायद लोगों को झेलनी पड़ जाए, लेकिन आम आदमी के लिए मय यानी शराब की कमी होने का कोई अंदेशा नहीं है।
हालांकि चालू वित्त वर्ष के अंतिम महीने यानी इस महीने में पूरे राज्य में देसी शराब ढूंढे नहीं मिल रही है। इसी तरह अंग्रेजी शराब के लोकप्रिय ब्रांड भी इस समय बाजार से गायब हैं। आलम यह है कि आबकारी विभाग के अधिकारी राजधानी लखनऊ में रोजाना दौरे कर रहे हैं, ताकि शराब की दुकानों से कोई भी राजनीतिक प्रतिनिधि भारी तादाद में शराब न खरीदे।
लेकिन उनका पूरा असर शायद ही हो रहा है क्योंकि मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि राज्य में मतदाताओं को शराब और माया यानी नोट बांटे जा रहे हैं। जिलाधिकारियों और आयुक्तों के साथ बैठक में गोपालस्वामी ने साफ तौर पर कहा कि इसे रोकने के लिए जल्द से जल्द कदम उठाए जाने चाहिए।
हालांकि, यह बात अलग है कि तमाम कोशिशों के बावजूद राजनीतिक दलों के प्रत्याशी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। कमोबेश सभी प्रत्याशियों ने शराब की जमाखोरी शुरू कर दी है। आबकारी विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक नए आदेश के तहत 1 अप्रैल से यानी नया वित्त वर्ष शुरू होते ही शराब महंगी हो जाएगी। इसीलिए राजनीतिक प्रतिनिधि पहले से ही शराब खरीद रहे हैं।
अधिकारी ने बताया कि मंझोले तबके में ज्यादा पिए जाने वाले ब्रांड मसलन ओल्ड ट्रैवर्न, 8 पीएम, बैगपाइपर हाथोंहाथ लिए जा रहे हैं। उनकी जबरदस्त मांग है और बाजार में वे नजर नहीं आ रहे हैं। इसी तरह देसी शराब की 200 मिलीलीटर की बोतल के भी काफी मुरीद मौजूद हैं।
राज्य आबकारी विभाग ने इस बीच सुरक्षा बढ़ा दी है। बाहर से शराब राज्य में न आने पाए, इसके लिए मध्य प्रदेश और हरियाणा की सीमा से लगते जिलों में अतिरिक्त कर्मचारी भी नियुक्त किए गए हैं। अधिकारियों के मुताबिक राज्य में ज्यादातर शराब पड़ोसी राज्यों से तस्करी के जरिये आती है।
लेकिन जल्द होने वाले लोकसभा चुनावों ने राज्य सरकार की एक बड़ी चिंता दूर कर दी है। उत्तर प्रदेश के सालाना बजट को पेश करते समय राज्य सरकार की चिंताओं में शराब से जुटने वाला आबकारी राजस्व भी शामिल था।
साल 2008-09 में शराब का राजस्व फरवरी के महीने तक तय किए गए लक्ष्य से कम था। अगर पूरे साल की बात करें तो यह कमी करीब 1,200 करोड़ रुपये के आसपास ही होगी। लेकिन भला हो आने वाले लोकसभा चुनावों का और होली के त्योहार का कि अब शराब की बिक्री में काफी तेजी आएगी, जिससे लक्ष्य तक पहुंचने की उम्मीद है।
बीते एक पखवाड़े में ही उत्तर प्रदेश में करीब 1,100 करोड़ रुपये की शराब की खपत हो चुकी है। अगर आंकड़े देखें तो इस साल मार्च के महीने में ही शराब से आबकारी राजस्व में बीते साल की तुलना में 25 फीसदी का इजाफा होगा। आबकारी अधिकारियों की मानें तो कम से कम 15 फीसदी का इजाफा तो चुनाव के कारण ही हो गया है।
आबकारी प्रतिनिधि ठेकों के दौरे कर रहे हैं ताकि कोई भी प्रत्याशी शराब की जमाखोरी नहीं करे
अंग्रेजी शराब हो चुकी है बाजार की दुकानों से गायब, देसी शराब भी दुकानों से नदारद
मुख्य चुनाव आयुक्त ने माना कि मतदाताओं को रिझाने के लिए बांटे जा रहे हैं नोट और शराब

First Published - March 14, 2009 | 12:44 PM IST

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