देश के पर्यावरणविदों और नदी विशेषज्ञों ने कोसी में आई बाढ़ को प्राकृतिक आपदा मानने से इनकार कर दिया है।
पर्यावरणविदों की नजर में नदी के प्रवाह और इसकी विशेषताओं को समझे बगैर सिंचाई और बिजली परियोजनाओं के लिए नदी की गति को थामना कोसी के दिशा बदलने की मूल वजह है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में नदी इंजीनियरिंग पढ़ा रहे प्रो. यू. सी. चौधरी ने बताया कि हरेक नदी का एक ‘न्यूक्लियस’ होता है और इसका प्रवाह उसी से नियंत्रित होता है।
कोसी का मामला यह है कि इसके न्यूक्लियस के साथ छेड़खानी की गई है। बांधों के जरिए न केवल नदी के मुक्त प्रवाह में बाधा डाली गई बल्कि इसके तल में बालू के भारी जमाव की भी अनदेखी की गई। जैसे-जैसे कोसी उथली होती गई वैसे-वैसे बाढ़ की आशंका बढ़ती गई। ऐसे में कोसी की आपदा को प्रकृतिजनित नहीं बल्कि मानवजनित मानना चाहिए।
दिल्ली में नदी और जल-प्रबंधन मुद्दे पर काम कर रहे पर्यावरणविद एस. ए. नकवी की मानें तो हर नदी कुछ सालों बाद अपना रास्ता बदलती है और कोसी तो धारा बदलने के लिए जानी ही जाती है। चिंता की मुख्य वजह देश में तमाम नदियों के अतिक्रमण की प्रवृत्ति का सामान्य होना है।
टिहरी परियोजना में बतौर सलाहकार शामिल रहे चौधरी कहते हैं कि बड़े बांधों के निर्माण के चलते प्रवाह बाधित होने से गंगा जैसी नदी की गहराई में अब काफी कमी आ चुकी है। वे कहते हैं कि हर नदी की एक न्यूनतम गहराई और चौड़ाई होती है। उथल-पुथल बढ़ने और बहाव बाधित होने से कई नदियों की चौड़ाई और जल-अधिग्रहण क्षेत्र में तेजी से वृद्धि हो रही है। इससे बाढ़ का नुकसान पहले से ज्यादा बढ़ गया है। चौधरी कहते हैं कि बाढ़ और सूखे से निजात संभव है पर इसके लिए बड़े बांधों की बजाय छोटे बांधों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।