आजादी की पहली जंग 1857 में लखनऊ में ही लड़ी गई। अवध के लोग आजादी की पहली लड़ाई के लिए मरे और खपे। जंग मेरठ से शुरू हई पर अंजाम पर लखनऊ में पहुंची।
बेगम हजरत महल, जो वाजिद अली शाह की बेगम थी, ने जंग के आखिरी दिनों में मोर्चा संभाला। युध्द में खेत रही। आज आजादी के 61 सालों के बाद अवध में लोग फिर उन्हीं दिनों को याद कर रहे हैं। बेगमात-ए-अवध की मुखिया प्रिंसेस फरहाना मालिकी की आंखों में आंसू हैं।
मालिकी का कहना है कि आजादी की जंग से जुड़े लोगों को भुला दिया गया है। ‘बेगम हजरत महल’ के नाम पर कुछ भी स्मारक, पार्क और हॉल नहीं है। वाजिद अली शाह के नाम पर तो लखनऊ में एक पत्थर तक नहीं है। शिया नेशनल फ्रंट के मौलाना चासूब अब्बास आजादी के लड़ाकों की उपेक्षा से खासे दुखी हैं। ‘सर जमीने हिंद’ के लिए जो लोग लड़े उनका अवध में यह हाल शर्म से बढ़कर कुछ नहीं है।
उत्तर प्रदेश प्रेस क्लब के सामने राजा जयलाल सिंह को फांसी दे दी गई आजादी की पहली जंग में पर कोई इस जगह को नहीं जानता। वह पेड़ वहीं हैं जहां फांसी दे दी गई पर बिना किसी पत्थर के। इस संववादाता ने जब कारोरी ट्रेन लूट कांड का स्थल देखा तो वहां कुछ लोग शराब पीते जरूर दिखे और बच्चे कंच्चा खेलते। आजादी की लड़ाई के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था।
काकोरी ट्रेन डकैती के मुख्य अभियुक्त रामकृष्ण खत्री की प्रतिभा के सर पर मूंग की दाल मेले रख एक साहब शराब की चुस्कियां ले रहे थे। राज्य सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि काकोरी के लिए सरकार ने पैसा दिया है और जल्दी ही यहां स्मारक बनेगा। स्मारक भव्य और सुंदर बनेगा।