बीते वित्त वर्ष 2007-08 के दौरान देश से किए जाने वाले औजारों का निर्यात घट सकता है।
इस्पात और अन्य कच्चे माल की कीमतों में लगी आग के कारण इस बार निर्यातकों की बैलेंस शीट में तीर का निशान झुका हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि बीते वित्त वर्ष के दौरान निर्यात में कम से कम 20 प्रतिशत की कमी आ सकती है।
देश से 2006-07 के दौरान 828 करोड़ रुपये के औजारों का निर्यात किया गया था जबकि उससे पूर्व वित्त वर्ष के दौरान यह आंकड़ा 909.32 करोड़ रुपये था। इस तरह 2006-07 के दौरान निर्यात में 8.94 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली। हालांकि, 2005-06 में निर्यात में 16.80 प्रतिशत का उछाल देखा गया था। बीते वित्त वर्ष के दौरान औजारों का निर्यात घटकर 662.40 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है।
इस तरह बीते वर्ष के मुकाबले इस दौरान निर्यात में 20 प्रतिशत की गिरावट आएगी।उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि कारोबार से जुड़े कच्चे माल की कीमतों में आई तेजी निर्यात में गिरावट के लिए खासतौर से जिम्मदार है। निर्यात में गिरावट का सबसे अधिक पंजाब पर पड़ा है। यहां जालंधर और लुधियाना जैसे शहरों की औजारों के निर्यात में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रही है।
देश से होने वाले औजारों के कुल निर्यात में पंजाब की हिस्सेदारी 80 से 85 प्रतिशत तक है। पंजाब में करीब 400 छोटी और मझोली इकाइयां औजारों को बनाने के काम में लगी हैं। कारोबार में कमी के चलते बीते वर्ष के दौरान करीब 50 इकाइयां बंद हो चुकी हैं या फिर उन्होंने दूसरे उद्योग को अपना लिया है।
अनुमान है कि यदि मौजूदा रुझान जारी रहे तो कई और इकाइयों पर ताला लग जाएगा। राज्य के उद्योगों की बुरी स्थिति का अंजादा इस बात से लगाया जा सकता है कि जालंधर और लुधियाना के निर्यातकों को इस बार जर्मनी में आयोजित कोलोंग हार्डवेयर प्रदर्शनी कोई भी आर्डर नहीं मिल सका।इस प्रदर्शनी का आयोजन 2 साल में एक बार किया जाता है। कारोबारियों का कहना है कि कच्चे माल की कीमतों में तेजी के कारण भारत में तैयार उत्पाद चीन के मुकाबले प्रतिस्पर्धी नहीं रह गए हैं।
इंजीनियरिंग निर्यात संवर्धन परिषद के हैंडटूल पैनल के संयोजक शरद अग्रवाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ‘पिछले कुछ महीनों के दौरान इनगॉट स्टील, स्टील फ्लैट और अन्य कच्चे माल की कीमत में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इसके कारण पूरा इंजीनियरिंग उद्योग प्रभावित हुआ है। उल्लेखनीय है इंजीनियरिंग उद्योग में लोहे का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। बीते साल के दौरान लोहे और स्टील की कीमतों में लगातार तेजी का रुख बना रहा है।’
उन्होंने कहा कि बीते साल इनगॉट स्टील की कीमत 20,000 रुपये प्रति टन थी जबकि इस साल कीमतें बढ़कर 36,000 रुपये प्रति टन हो चुकी हैं। इसी तरह स्टील फ्लैट की कीमत बढ़कर 41,000 रुपये प्रति टन हो चुकी है जबकि एक साल पहले कीमत महज 24,000 टन थीं। उन्होंने साथ ही कहा कि हैंडटूल के कुल उत्पादन लागत में लोहा और स्टील की हिस्सेदारी 60 से 65 प्रतिशत तक है।
लोहे और इस्पात की कीमत में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने पर हैंडटूल 6 प्रतिशत महंगे हो जाते हैं। इस्पात और लोहे की कीमतों में तेज बढ़ोतरी के कारण इंजीनियरिंग उद्योग की विकास की रफ्तार घटी है। इस कारण जिन फैक्ट्ररियों में पहले तीन पारियों में 24 घंटे काम होता था वहां अब काम घटकर 8 घंटे ही रह गया है।
उन्होंने कहा कि भारत और चीन में कच्चे माल की कीमतों में भारी अंतर है। उन्होंने कहा कि इन परिस्थितियों में कुछ नहीं किया गया तो भारतीय उद्योग चीन के हाथों अपना कारोबार खो देगा।
चीन के मुकाबले भारत में कच्चे माल की कीमत अधिक है और यदि सरकार इस्पात की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए कुछ सख्त कदम नहीं उठाती है तो उद्योग के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा। सुरक्षात्मक उपायों के बारे में अग्रवाल ने कहा कि लोहे और इस्पात के निर्यात पर रोक लगानी चाहिए। वित्त वर्ष 2006-07 के दौरान निर्यात में इससे पूर्व वर्ष के मुकाबले 49.13 प्रतिशत की जोरदार बढ़ोतरी देखने को मिली है।