उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग, सांप्रदायिकता और विकास को मुद्दा बना कर उतारने वाले लगभग सभी दलों को बिजली के संकट पर जनता की शिकायतों से दो चार होना पड़ेगा।
संभावित खतरों को देखते हुए सत्तारूढ़ दल बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों ने तो अभी से बिजली संकट को दूर करने की गुहार लगा दी है। इन प्रत्याशियों का मानना है कि गर्मी के चरम में जब चुनाव होंगे तो बिजली एक बड़ा मुद्दा बनकर सामने आएगा।
साथ ही बोर्ड और स्नातक की परीक्षाएं भी इसी समय हो रही हैं, जिनमें बिजली की आपूर्ति को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। राज्य सरकार ने बीते एक महीने से ही इंजीनियरों के पेंच कसने शुरू कर दिए हैं। राज्य सरकार का कहना है कि अगर ब्रेकडाउन पर ही लगाम लग जाए तो मुश्किल से निजात मिल सकती है।
सरकार ने चुनावी नजरिए से संवेदनशील इलाकों में बिजली की आपूर्ति बनाए रखने के आदेश दिए हैं। इन क्षेत्रों में फैजाबाद, वाराणसी, गाजियाबाद और लखनऊ शामिल हैं। लखनऊ राज्य का अकेला ऐसा शहर है जहां 24 घंटे बिजली की आपूर्ति की जाती रही है। इस समय सरकार की प्रतिबंधित मांग 7,000 मेगावाट से ऊपर की है जोकि चुनाव के समय में बढ़कर 8,000 मेगावाट को पार कर जाती है।
संभावित बिजली संकट के मद्देनजर राज्य सरकार ने मांग और कनेक्शन के आधार पर केंद्र से निर्यात का कोटा तय करने का शिगूफा उछाल दिया है। इस समय राज्य केंद्र से 3,500 मेगावाट बिजली लेती है और व्यवस्ततम घंटों में मांग बढ़ने पर केंद्र 12 रुपये प्रति इकाई की दर पर बिजली देता है। राज्य सरकार को इसी बढ़ी हुई दर पर बिजली दिए जाने पर ऐतराज है।