जल्द ही उत्तर प्रदेश की सड़कों पर राज्य परिवहरन निगम की खटारा बसों की जगह टाटा और महिन्द्रा जैसे बड़े उद्योग समूहों की बसें फर्राटा भरती दिखाई देंगी।
प्रदेश के 460 करोड़ राष्ट्रीयकृत मार्गों पर अपनी बस सेवा चलाने के लिए देश के बड़े उद्योग समूहों सहित कई बड़ी ट्रेवल कंपनियों ने अपनी रूचि दिखाई है। उत्तर प्रदेश की सरकार ने परिवहन व्यवस्था के निजीकरण की ठान ली है और इस सिलसिले में सभी 460 राष्ट्रीयकृत मार्गों को निजी क्षेत्र को दिए जाने संबंधी अधिसूचना जारी कर दी है। सरकार के परिवहन व्यवस्था को निजी हाथों में देने का पक्का इरादा है और इसके लिए वह टेंडर प्रक्रिया को इस महीने शुरू करेगी।
मायावती सरकार का मूलमंत्र प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप का ही इस्तेमाल राज्य की परिवहन व्यवस्था को सुधारने में भी होगा यानि कि सरकार के पैसे का कोई रोल नहीं। उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री राम अचल राजभर के मुताबिक 460 राष्ट्रीयकृत मार्गों पर निजी बसें दौड़ाने की पूरी तैयारी है।
राजभर के अनुसार केवल वही ऑपरेटर इन मार्गों पर बसें चला सकेंगे जिनके बेड़े में कम से कम 1000 बसें हों। छोटे ऑपरेटर सोसाइटी के माध्यम से निजीकरण की प्रक्रिया में शमिल हो सकते है बशर्ते उनके बेड़े में भी कम से कम 1000 बसें हों। राज्य सरकार मार्गो को परिवहन निगम की एकाधिकार से मुक्त करा निजी क्षेत्र की बसें दौड़ाने के लिए विदेशी कंपनियों क ो भी टेंडर प्रक्रि या में शमिल कर सकती है।
गौरतलब है कि इस समय उत्तर प्रदेश के प्रमुख 460 राष्ट्रीयकृत मार्गों पर यात्री परिवहन सुविधा उपलब्ध कराने का जिम्मा राज्य परिवहन निगम के पास है। बीते कुछ सालों से इन मार्गो पर निजी क्षेत्र को डीलक्स व वातानुकूलित बस चलाने की अनुमति तो मिली पर परिवहन निगम के अनुबंध के तहत ही। नई परिवहन नीति के तहत 460 राष्ट्रीयकृत मार्गो पर परिवहन गुणवत्ता में परिवहन निगम को निजी क्षेत्र से टक्कर लेनी होगी। साथ ही यात्री बेहतर सुविधा का लाभ उठा सकेंगे।
निजी ऑपरेटरों को नई परिवहन नीति के बारे में बताने और उनके सुझाव जानने के लिए प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने बीते शनिवार 42 कंपनियों को प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया था। इन कंपनियों में टाटा, महिंद्रा, हरि टै्रवल, जेपीसीबीएस सहित कई राज्यों की कंपनियां शामिल थीं। इन कंपनियों के सुझाव सुनने के बाद इस महीने टेंडर मांग कर प्राइवेट ऑरपेरटर का चयन किया जाएगा।
राजभर के मुताबिक अभी नए मार्गों पर परमिट जारी करने पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की रोक है लेकिन एक बार अदालत फैसला आने के बाद सारी कार्रवाई को तेजी से निपटाया जा सकेगा।