देश भर में उद्यमी लॉकडाउन की वजह से ऑर्डरों को तरस रहे हैं मगर ग्वालियर-चंबल के मशहूर सैंडस्टोन उद्यमियों की मुश्किल दूसरी है। उनके पास ऑर्डरों की तो भरमार है मगर कच्चे माल की किल्लत ने उनके हाथ बांध दिए हैं।
इस अंचल में सफेद और हल्के पीले रंग का पत्थर पाया जाता है, जो मौसम के मुताबिक ठंडा और गर्म हो जाता है। इस पत्थर पर लोग फिसलते भी कम हैं। ऐसा सैंडस्टोन दुनिया में बहुत कम पाया जाता है। यही वजह है कि ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, इटली, दूसरे यूरोपीय देशों और पश्चिम एशिया में इसकी जबरदस्त मांग है। वहां इसे स्विमिंग पूल, बगीचों, फार्महाउस में फर्श के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसका इस्तेमाल सीढिय़ों, छत और दीवारों पर भी किया जाता है। इसकी मांग इसलिए ज्यादा है कि गर्मी में यह ज्यादा गर्म नहीं होता और सर्दियों में ज्यादा ठंडा नहीं होता। गुणवत्ता और आकार के हिसाब से इस पत्थर की कीमत 500 रुपये से 1,500 रुपये प्रति वर्गमीटर है।
ग्वालियर-चंबल अंचल में सैंडस्टोन की 400 छोटी-बड़ी इकाइयां हैं, जिनका 500 से 600 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार है। यहां से ज्यादातर पत्थर निर्यात किया जाता है। मध्य प्रदेश स्टोन एसोसिएशन के संरक्षक और ग्वालियर में स्टोन निर्यातक भानुप्रताप सिंह राठौर ने बताया कि लॉकडाउन में तो काम बंद था, लेकिन उसके खत्म होते ही स्टोन कारोबारियों को निर्यात के भरपूर ऑर्डर मिल रहे हैं। दिक्कत कच्चे माल की है, जिसकी वजह से ऑर्डर पूरे करना मुश्किल लग रहा है। कच्चे माल की कमी पत्थर की खदानों पर सरकारी बंदिश के कारण हो गई है। पिछले साल ही यहां घाटीगांव, जसौदा की 7-8 खदानों को खनन की मंजूरी मिल गई थी, लेकिन अधिकारियों की ढिलाई की वजह से खनन शुरू नहीं हो पाया है। एक स्टोन कारोबारी ने बताया कि उसे ऑस्ट्रेलिया से मिला 27 टन स्टोन का ऑर्डर तो पहले से पड़े कच्चे माल से पूरा हो जाएगा मगर आगे के निर्यात ऑर्डरों के लिए कच्चा माल ही नहीं बचेगा।
ग्वालियर-चंबल रीजन स्टोन एसोसिएशन के अध्यक्ष और बामौर के सैंडस्टोन निर्यात केके मित्तल ने बताया कि उनके इलाके में पडावली, रंछौली की खदानों से स्टोन आता है, जिसे मिंट स्टोन कहते हैं।
निर्यात बाजार में सबसे ज्यादा मांग इसी की है। लेकिन खदानें नहीं चलने के कारण माल ही नहीं है। बामौर के 200-250 करोड़ रुपये के सालाना कारोबार में 60 फीसदी से ज्यादा निर्यात की हिस्सेदारी है।
मगर इस बार लॉकडाउन के कारण 20-30 करोड़ रुपये का काम ही हो पाया है। लॉकडाउन खुलने के बाद मिले निर्यात ऑर्डरों में कच्चा माल समस्या बन रहा है। मित्तल ने कहा कि पर्याप्त मात्रा में पत्थर मिले तो बामौर का सैंडस्टोन कारोबार 400-500 करोड़ रुपये सालाना तक पहुंच सकता है।
इंडस्ट्री एसोसिएशन स्टोन पार्क ग्वालियर के अध्यक्ष सत्यप्रकाश शुक्ला ने बताया कि पार्क की 52 स्टोर इकाइयों में से 10 से ज्यादा निर्यात इकाइयां हैं। लॉकडाउन के कारण घरेलू मांग सुस्त पड़ी है मगर निर्यात मांग बहुत ज्यादा है। इसलिए घरेलू सुस्ती का कुल कारोबार पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। मगर कच्चे माल की कमी से निर्यात ऑर्डरों पर असर पड़ेगा तो चोट लग सकती है।
