गरीब मजदूरों की मजदूरी की भुगतान समस्या को लेकर सोमवार को राज्य सरकार और बैंकों में फिर ठन गई।
राज्य सरकार ने कड़े शब्दों में बैंकों की बहानेबाजी को दरकिनार करते हुए दो टूक शब्दों में कह दिया कि यदि बैंक मजदूरों के खाते नहीं खोल सकते है तो राज्य के पास अन्य विकल्प मौजूद है।
राज्य के इस बयान को बैंकों ने गंभीरता से न लेते हुए कहा है कि बैंकों के पास कर्मचारियों की भारी कमी है और वे मजदूरों की मजदूरी के भुगतान के लिए खाते खोलने में कठिनाइयों का सामना कर रहें है।
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी जैसी योजनाओं में मजदूरी के नकद भुगतान में भ्रष्टाचार की शिकायतों के चलते, बैकों में खाता खोलना तथा मजदूरी का भुगतान बैंक खाते में जमा करना अनिवार्य कर दिया है।
राज्य के प्रमुख सचिव राकेश साहनी ने सोमवार को राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की विशेष बैठक में बैंकों से साफ कह दिया कि ‘कर्मचारियों की कमी, कागज की कमी और दीगर समस्याएं बैंको का निजी मामला है। इस कारण मजदूरों की मजदूरी का भुगतान नहीं रोका जा सकता।
यदि बैंकों ने राज्य में इस मामले में और ढिलाई बरती तो हमें केंद्रीय सहकारी बैंकों को यह काम सौंपना पड़ेगा। केन्द्र शासन से हम इसके लिए जरुरी अनुमति प्राप्त कर लेंगे’ केन्द्रीय सहकारी बैंकों ने इस कार्य के लिए अपनी सहमति जता दी है। जबकि बैंक अधिकारियों का कहना है कि काम इतना आसान नहीं है जितना राज्य सरकार समझ रही है।
राज्य स्तरीय बैकर्स समिति के संयोजक पी सी तिवारी ने माना कि बैंकों ने अभी तक 45 से 50 लाख खाते खोले है। ताकि मजदूरों को मजदूरी का भुगतान हो सकें। लेकिन समस्या कहीं ज्यादा बड़ी है।
राज्य के बैंकों की ओर से उन्होंने मांग की कि उन्हें मजदूरों के जॉब कार्ड की एक सूची मुहैया करा दी जाए तो वे आंकडें तैयार कर सकेंगे और उनका काम काफी हद तक आसान हो जाएगा। जबकि सूत्रों के मुताबिक बैंक चाहते है कि राज्य सरकार उन्हें दो फीसदी कमीशन मुहैया करवाएं।
