केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी विकेंद्रीकृत अनाज भंडारण क्षमता तैयार करने के लिए एक लाख करोड़ रुपये के कार्यक्रम को मंजूरी दी है, उसका प्रभाव खाद्य सुरक्षा के लिए अनाज को सुरक्षित रूप से भंडारित करने से कहीं परे तक है।
इस परियोजना के तहत ब्लॉक स्तर पर जो गोदाम बनाए जाने हैं उन्हें कुछ इस प्रकार डिजाइन किया जाना है कि वे सहकारी समितियों द्वारा संचालित विभिन्न कार्यों में काम आने वाले केंद्र की भूमिका निभा सकें। इससे किसान अलग-अलग कामों में इनका उपयोग कर सकेंगे।
इन गोदामों के बनने से न केवल खाद्यान्न का अपव्यय रोका जा सकेगा तथा देश की प्राथमिक सहकारी समितियों की आर्थिक स्थिति में बेहतरी आएगी। इनकी मदद से किसानों की आय में भी सुधार होगा। तमाम व्यावहारिक वजहों से सहकारी समितियां खाद्यान्न की सरकारी खरीद एजेंसी, उचित मूल्य की दुकान, किसानों को कृषि उपकरण उपलब्ध कराने वाले केंद्रों तथा कृषि उपज को छांटने, परखने, गुणवत्ता निर्धारित करने वाली एजेंसी की भूमिका निभाती हैं।
किसानों को इससे होने वाले लाभ में परिवहन लागत में बचाव भी शामिल है क्योंकि इनके बनने के बाद उन्हें अपनी उपज को सुदूर मंडियों में नहीं ले जाना होगा और वे अपनी उपज को सुरक्षित रखकर, कम उपज वाले मौसम में ऊंची कीमत पर बेचकर अच्छी कीमत भी हासिल कर सकेंगे। ये गोदाम भंडारित सामग्री के लिए जो रसीद जारी करेंगे उसे संस्थागत ऋण के लिए वैध माना जाएगा।
किसानों को यह लाभ होगा कि उन्हें अपनी उपज फसल कटने के बाद के उस मौसम में नहीं बेचनी होगी जब कीमतें आम तौर पर औंधे मुंह गिर चुकी होती हैं। वृहद स्तर पर देखें तो इस कदम से अनाज भंडारण की जगह की कमी से निपटने में मदद मिलेगी।
फिलहाल उपलब्ध अनाज भंडारण क्षमता 14.5 करोड़ टन की है जहां कुल उत्पादन के 47 फीसदी हिस्से को ही रखा जा सकता है। करीब 12 से 14 फीसदी उपज समुचित संरक्षण के अभाव में बरबाद हो जाती है। यह महती परियोजना अनाज भंडारण क्षमता में 7 करोड़ टन का इजाफा करके इसे 21.5 करोड़ टन तक पहुंचा देगी।
दिलचस्प बात यह है कि हालांकि 2023-24 के बजट भाषण में जिस विशालकाय विकेंद्रीकृत भंडारण क्षमता के निर्माण का वादा किया गया था उसे पूरा करने के लिए यह कार्यक्रम आवश्यक है लेकिन हकीकत में इसके लिए किसी बजट आवंटन की आवश्यकता नहीं होगी या फिर यह राजकोष पर अतिरिक्त बोझ नहीं डालेगा।
वास्तव में इसका क्रियान्वयन सहकारिता मंत्रालय द्वारा उन कोषों के माध्यम से किया जाएगा जो विभिन्न मंत्रालयों की मौजूदा अलग-अलग योजनाओं में बकाया है। खासतौर पर कृषि, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय तथा खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में। सबसे उल्लेखनीय है इसके क्रियान्वयन के लिए निर्धारित की गई समयसीमा, जो यह भी दर्शाती है कि सरकार इस मामले में गंभीर है।
इसमें मंत्रिमंडल की मंजूरी के एक सप्ताह के भीतर राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय समिति के गठन की बात कही गई है, 15 दिन में दिशानिर्देश और 45 दिन के भीतर सहकारी समिति के स्तर पर निर्माण कार्य शुरू करने की बात कही गई है। 10 चयनित जिलों में प्रायोगिक परियोजना शुरू करने की योजना है ताकि ऐसे अनुभव जुटाए जा सकें जो देश भर में वास्तविक क्रियान्वयन के दौरान उपयोगी साबित हो सकते हैं।
बहरहाल, ये सारी बातें स्वागतयोग्य हैं लेकिन तथ्य यह भी है कि फसल कटाई के बाद उसका प्रबंधन और उसे सुरक्षित रखने का काम अनाज की तुलना में फलों और सब्जियों के मामले में अधिक दुष्कर है क्योंकि ये चीजें जल्दी खराब हो जाती हैं। फसल कटाई के बाद 20 से 30 फीसदी फसल का नुकसान हो जाता है।
ऐसे में जरूरत इस बात की है कि उच्च मूल्य वाली लेकिन जल्दी खराब होने वाली बागवानी फसलों के लिए भी ऐसी ही योजना तैयार की जाए। ये दोनों पहल देश के कृषि क्षेत्र के लिए बड़ा बदलाव लाने वाली साबित हो सकती हैं।