दिसंबर, 1984 की एक स्याह रात को भोपाल में मौजूद यूनियन कार्बाइड के प्लांट से निकली जहरीली गैसों ने शहर की फिजा में मौत का सन्नाटा फैला दिया था।
लेकिन आज 23 सालों के बाद सरकार भोपाल के उस काले अध्याय को हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर देना चाहती है। इसके लिए सरकारी मशीनरी ‘पूरी लगन’ के साथ काम कर रही है। दूसरी तरफ, भोपाल से आया 60 लोगों का एक जत्था पिछले एक महीने से राजधानी दिल्ली में डेरा जमाए बैठा है।
इन लोगों की मानें तो भोपाल के गुनाहगार आजकल मंत्रियों पर डोरे डालने में जुटे हुए हैं।प्रधामंत्री कार्यलय अब तक इस मुद्दे पर इन कार्यकर्ताओं के साथ तीन बार बैठक कर चुका है। साथ ही, इस बारे में गठित मंत्रियों के समूह (जीओएम) ने पिछले हफ्ते यह फैसला किया कि वह पीड़ितों का पक्ष सुनेगी। वैसे, यह बात अलग है कि इस समूह की बैठकें कभी-कभार ही हुआ करती हैं।
पिछले तीन सालों में इस समूह की केवल तीन बैठकें ही हो पाईं हैं। इस समूह के अध्यक्ष और मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने 17 अप्रैल को पीड़ितों को आश्वासन दिया है कि इस त्रासदी पर एक आयोग गठित करने की उनकी मांग पर विचार किया जाएगा। ध्यान रहे कि भोपाल गैस त्रासदी के वक्त अर्जुन सिंह ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।
प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस मुद्दे का जल्द से जल्द समाधान चाहते हैं। इस मामले में पर उन्हें मंत्रियों के समूह की सिफारिशों का इंतजार है। प्रधानमंत्री कार्यालय के एक बड़े अफसर ने सोमवार को कार्यकर्ताओं के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की थी। कार्यकर्ता इस मुद्दे में आई तेजी से खुश तो काफी हैं, लेकिन उन्हें इस तेज रफ्तार के पीछे किसी साजिश की भी बू आ रही है।
उन्होंने एक अर्जी तैयार की है, जिसमें डाउ केमिकल को कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहराया गया था। इस पर करीब 300 कानूनी विशेषज्ञों के हस्ताक्षर थे। भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन के सतीनाथ सारंगी का कहना है कि, ‘सरकार ने 1989 में केवल 47 करोड़ डॉलर लेकर कारबाइड के समझौता कर लिया था।
इसके तहत कारबाइड को किसी भी तरह की जिम्मेदारी से भी मुक्त कर दिया गया था। अब सरकार उसी समझौते में थोड़ा-बहुत फेरबदल करके उसके उत्तराधिकारी डॉउ केमिकल्स को किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी से मुक्त कर देना चाहती है।’
डाउ केमिकल ने यूनियन कार्बाइडको खरीद लिया था। इस कंपनी का कहना है कि यूनियन कार्बाइड के कानूनी पचड़ों से उसका कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि, केंद्रीय रसायन मंत्रालय ने जबलपुर हाईकोर्ट में एक अर्ची दायर कर रखी है, जिसमें दिसंबर, 1984 में हुए गैस के रिसाव से हुए नुकसान पर हर्जाने की मांग की गई है। साथ ही, मंत्रालय ने कार्बाइड द्वारा पीछे छोड़े गए जहरीले कचरे की सफाई के लिए डॉउ से 100 करोड़ रुपये की भी मांग की है।
इसमें भोपाल स्थित कारबाइड प्लांट के परिसर में गड़े गए 9000 टन जहरीले जहरीले पदार्थ भी शामिल हैं। इस जहरीले कचरे की वजह शहर के उस इलाके का भूजल भी प्रदूषित हो गया है। सारंगी की मानें तो इस जहर की वजह से न केवल उस इलाके में, बल्कि उस इलाके से तीन किमी तक की दूर इलाके तक पानी तक जहरीला हो गया है।
रसायन मंत्रालय काफी समय से अपनी उस याचिका पर कायम है कि इस मामले में अब डॉउ केमिकल्स जिम्मेदार है। इसे लेकर ह्यतो कई बार उसकी उन दूसरे मंत्रालयों के साथ तूतू-मैंमैं भी हो चुकी है, जो डॉउ केमिकल्स को भारत में निवेश करने के लिए लुभाना चाहते थे।
रसायन मंत्री रामविलास पासवान ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि, ‘जब तक भोपाल गैस त्रासदी का मामला हल नहीं हो जाता, मैं डॉउ केमिकल्स की मुखालफत जारी रखूंगा। अगर इस मामले का हल करने, जहरीले कचरे की सफाई और सहायता राशि के वितरण की पूरी जिम्मेदारी मुझे सौंपी दी जाए, तो ये सारे मामले तो मैं केवल दो दिनों को हल कर दूं।’
वैसे, प्रधानमंत्री कार्यालय की सोच तो पासवान साहब की रफ्तार से भी तेज चल रही है। कार्यकर्ताओं के मुताबिक यह जल्दबाजी हो रही है, डॉउ की भारत में निवेश की योजनाओं और पीएमओ को पिछले साल विभिन्न मंत्रालयों द्वारा भेजे गए ज्ञापन की वजह से। इन ज्ञापनों में डॉउ को भोपाल त्रासदी की जिम्मेदारी से मुक्त करने की प्रार्थना की गई थी।
मंत्रियों के समूह ने पिछले साल यह कहा था कि भोपाल गैस त्रासदी के मामले में डॉउ को गुनाहगार या निर्दोष ठहराने का काम सिर्फ कोर्ट का है और वह इस मामले में अदालती कार्रवाई में कोई दखलअंदाजी नहीं करेगी। लेकिन इस मामले में कार्यकर्ता कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहते।सोमवार को उन्होंने एक अर्जी पेश की, जिस पर जस्टिस राजेंद्र सच्चर, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और इंदिरा जयसिंह जैसे 300 कानूनी विशेषज्ञों के हस्ताक्षर थे।
भूषण का कहना है कि,’हमारे पास जो कागजात मौजूद हैं, उसके मुताबिक तो डॉउ आजकल कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी (वह डॉउ के वकील भी हैं), रतन टाटा, वाणिज्य मंत्री कमलनाथ, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मॉन्टेक सिंह अहलुवालिया और तो और वित्त मंत्री पी. चिदंबरम पर डोरे डालने में व्यस्त है, ताकि उसकी नैया पार हो सके।’ सारंगी के मुताबिक यह तो अरबों डॉलर के निवेश के चक्कर में गुनाहगार को छोड़ना होगा।