इटली का वेनिस शहर अद्भुत लगा। पहली दफा पहुंचे किसी शख्स को वहां की खूबसूरती पर एकबारगी शायद यकीन भी नहीं होगा।
हम भी इसकी भव्यता को नजरों में समेटने के लिए पहले से बहुत तैयार नहीं थे। अब तक हमने वेनिस की हल्की-फुल्की झलकियां कुछ फिल्मों में देखी थीं। हम लोग शहर के एक द्वीप पर खड़े थे। वेनिस ऐसे ही 117 द्वीपों से मिलकर बना है। हर द्वीप पर इमारतों की लंबी फेहरिस्त नजर आती है और चारों तरफ से जल से घिरा होने की वजह से ऐसा लगता है मानो ये इमारतें जल से ऊपर की ओर निकल रही हों।
इन इमारतों में से ज्यादातर करीब 100 साल पुरानी हैं, पर उनके सामने से गुजरती हुईं सड़कें बेहद नई और चमकीली। यहां घूमना ऐसा ही लगता है, मानो बाढ़ से प्रभावित किसी शहर की नाव से यात्रा करना।
दरअसल, हम लोग भारत में इटली के राजदूत एंटोनियो अर्मेलिनी के न्योते पर वेनिस में एक सेमिनार में शरीक होने पहुंचे थे। पर यह लेख मैं सेमिनार की तफसील देने के लिए नहीं, बल्कि दूसरे मकसद से लिख रहा हूं। वेनिस से वापस दिल्ली लौटते वक्त हवाई यात्रा की दांस्ता के दर्द को बयां करने के लिए मैं यह लेख लिख रहा हूं।
अक्सर हम भारतीय हवाईअड्डों और एयलाइनों की सेवा को बेहद बकवास करार देते हैं, पर इस यात्रा ने मेरी अवधारणा बदल दी और मुझे लगा कि अपने देश के हवाईअड्डों, उनकी सेवाओं और यहां की एयरलाइनों पर कीचड़ उछाले जाने से पहले हमें कई बार सोचना चाहिए। हमारी अग्निपरीक्षा की शुरुआत तब हुई, जब हम हम लोग पिछले रविवार को वेनिस से वियेना जाने वाली फ्लाइट (फ्लाइट नंबर ओएस 528) में बैठे और अपनी सीट बेल्ट बांध ली।
ठीक उसी वक्त फ्लाइट के पायलट ने ऐलान किया कि सभी यात्री प्लेन से नीचे उतर जाएं। उस वक्त सुबह के 7 बज रहे थे और हमें करीब 3 घंटे बाद वियेना की दूसरी फ्लाइट लेने को कहा गया। हम लोगों ने इस दौरान ऑस्ट्रिया की एयर डेस्क (जिस पर काम करने वाले कर्मचारी आउटसोर्स किए गए थे) पर इंतजार करना पड़ा। एयर डेस्क के कर्मचारियों का बर्ताव बेहद रूखा था। व्यवहार में ऐसा रूखापन आज तक मैंने किसी भी एयर डेस्क के कर्मचारियों का नहीं देखा था। ये कर्मचारी जितने रूखे थे, उससे कहीं ज्यादा अयोग्य।
अब जरा इनकी कारगुजारियों का सिलसिलेबार ब्योरा लीजिए। सबसे पहले हमें यह बताने की जरूरत नहीं समझी गई, हमें कनेक्टिंग फ्लाइट कब और कैसे मिलेगी। हमारी 10-11 लोगों की टीम थी। जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, हमारे सब्र का बांध टूटता गया। जब हमने डेस्क के कर्मचारियों से शिकायत की, तो उनमें से एक महिला कर्मचारी ने तुनककर कहा कि यदि आप लोगों को लगता है कि हम लोग अयोग्य हैं, तो आप हमारा काम करें।
पिछली फ्लाइट से उतार दिए गए लोगों में से कुछ को तो उसी वक्त दूसरे रूटों के जरिये वियेना भेज दिया गया। पर बाकी लोगों से कहा गया कि अब दूसरी एयरलाइनों में भी कोई सीट नहीं है। लिहाजा बाकी लोगों ने एयर डेस्क के पास प्रस्ताव रखा कि यदि हम लोग यहां एक दिन रुक जाते हैं, तो क्या इससे बात बन जाएगी। फिर एयर डेस्क के कर्मचारियों ने कहा कि हां यदि आप लोग ऐसा करते हैं, तो बात बन जाएगी।
फिर हमसे कहा गया कि अगले दिन यानी सोमवार को वियेना से दिल्ली की फ्लाइट के लिए 12 लोगों की सीट बुक कर दी गई है। फिर हमें वेनिस से वियेना के लिए रविवार 11.30 बजे दिन की फ्लाइट के बोर्डिंग पास दे दिए गए। पर हमें वियेना से दिल्ली की फ्लाइट के बोर्डिंग पास नहीं दिए गए। जब हमने वियेना-दिल्ली फ्लाइट के बोर्डिंग पास मांगे, तब हमसे कहा गया कि ये बोर्डिंग पास आपको वियेना में ऑस्ट्रियाई बोर्डिंग स्टाफ मुहैया कराएंगे।
हमें यह बात समझ में आ गई कि रविवार को वियेना पहुंचकर रात भर होटल में रुकने का खर्च हमें खुद देना होगा, इसीलिए हमें अगले दिन की दिल्ली की फ्लाइट के बोर्डिंग पास नहीं दिए गए हैं। खाने के कूपन की बात तो भूल ही जाइए। हम लोग बिजनेस क्लास के पैसेंजर थे, इसका रत्ती भर भी ख्याल नहीं रखा गया।
खैर, जब हम 11.15 पर फ्लाइट के लिए पहुंचे, तो गेट (जिस गेट से फ्लाइट तक गाड़ी ले जाती है) पर कोई भी कर्मचारी नहीं था। हम लोग इंतजार करते रहे। जब 11.30 बजे तक वहां कोई भी स्टाफ नहीं आया, तो हम चिंता में पड़ गए। उसी वक्त वियेना की एक और फ्लाइट के लिए दूसरे गेट से एंट्री हो रही थी। जब हम वहां पहुंचे, तब वहां भी एक बदमिजाज महिला कर्मचारी से हमारा सामना हुआ।
जब हमने उससे अपनी फ्लाइट की जानकारी मांगी, तो उसने हमारी बात सुनने तक से इनकार कर दिया। हमने उससे पूछा था कि वह जिस गेट पर तैनात है क्या उसी फ्लाइट से हमें भी जाना है और यदि ऐसा नहीं है तो हमारी फ्लाइट कब और कहां से मिलेगी? पर महिला के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। हमें साफ तौर पर नस्लीय भेदभाव नजर आ रहा था। यह बात और है कि हमारे साथ कुछ यूरोपीय लोगों को भी इन्हीं मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था।
अब तक हम लोग बेजार हो चुके थे। आखिरकार हमने इस उम्मीद में बिजनेस लॉन्च में जाने का फैसला किया कि शायद वहां कोई हमारी बात सुनने वाला मिले। वहां हमें गियोवाना नाम की एक महिला मिली। महिला ने इधर-उधर कॉल की, पर अपनी छुट्टियां बिताने में मशरूफ ऑस्ट्रियन एयरलाइंस के कुछ अधिकारियों ने तो फोन ही नहीं उठाया और ज्यादातर ने तो अपने फोन स्विच्ड ऑफ कर रखे थे।
आखिरकार गियोवाना ने ऑस्ट्रियन एयर के एक डिप्टी मैनेजर को खोज निकाला और इसके बाद चीजें अच्छी होने लगीं। इसके बाद हमें लुफ्थांसा के टिकट उपलब्ध कराए गए और फ्रैंकफर्ट भेजा गया। फिर फ्रैंकफर्ट से दिल्ली की फ्लाइट के टिकट दिए गए। फ्रैंकफर्ट पहुंचते ही लुफ्थांसा के एयर कर्मचारियों ने हमें अगले दिन की फ्लाइट के बोर्डिंग पास, रात में होटल में रुकने के वाउचर और सारी जरूरी चीजें मुहैया करा दीं।
दरअसल, हमें सोमवार को ऑस्ट्रियन एयरलाइंस की वियेना से दिल्ली की जिस फ्लाइट से जाने का सब्जबाग दिखाया गया था, वह फ्लाइट पहले से ही ओवरबुक्ड थी। इस पूरे वाकये को पढ़कर क्या आपको नहीं लगता कि भारतीय हवाईअड्डों और एयर इंडिया को लेकर हमारी शिकायतें कुछ ज्यादा ही हैं? लिहाजा मैं एयर इंडिया के सीएमडी वी. तुलसीदास से निजी तौर पर माफी मांगता हूं, जिन्हें अक्सर हमारे गुस्से का शिकार बनना पड़ता है।