विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की स्थापना 1 जनवरी, 1995 को की गई थी। इसे दूसरे विश्वयुद्ध के अंत के बाद सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक सुधार बताया गया था। ऐसा इसलिए कि इसने जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ्स ऐंड ट्रेड (जीएटीटी) का विस्तार करते हुए सेवाओं और बौद्धिक संपदा को व्यापार में शामिल कर दिया था। डब्ल्यूटीओ की शुरुआत के बाद विवाद निस्तारण की नई प्रक्रिया शुरू हुईं।
इससे तीन मसले उत्पन्न हुए। पहला, चीन को लगातार ‘विकासशील अर्थव्यवस्था’ दिखाए रखना। दूसरा चीन द्वारा विशेष सब्सिडी वाले सरकारी उपक्रमों का इस्तेमाल करना जिससे उसे अनुचित लाभ मिला और बाजार अर्थव्यवस्था बनने की उसकी प्रगति धीमी हुई। तीसरा, आरोप है कि डब्ल्यूटीओ अपील संस्था हद से आगे बढ़ गई है और कुछ देशों ने इसकी विवाद निस्तरण व्यवस्था का दुरुपयोग करके अनुचित लाभ हासिल किया है।
दोहा दौर की वार्ता पर सहमति नहीं बन पाने के बावजूद वैश्विक व्यापार का आकार दोगुना से अधिक हो गया और वैश्विक टैरिफ में 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट तक गिरावट आई। तब से क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसेप) और अटलांटिक पार साझेदारी के लिए व्यापक और प्रगतिशील समझौते जैसे क्षेत्रीय व्यापार समझौते आगे बढ़े हैं। परंतु इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि अमेरिका और चीन अब समांतर और प्रतिस्पर्धी कारोबारी क्षेत्र विकसित कर रहे हैं। इस बीच एक दूसरे के साथ उनका कारोबार जारी है।
अमीर देशों में विनिर्माण कमजोर होने तथा भारत समेत कई विकासशील देशों में समय से पहले ही औद्योगीकरण की प्रक्रिया समाप्त होने से मुक्त व्यापार का राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है। रिचर्ड बाल्डविन का कहना है कि वैश्वीकरण का अगला दौर सेवा व्यापार से उत्पन्न होगा जिसे वैश्वीकरण 4.0 का नाम दिया जाएगा।
परंतु 2020 से व्यापार में सुधार, खासकर सेवा क्षेत्र और सीमा पार के वित्तीय प्रवाह से यही संकेत मिलता है कि वैश्वीकरण जारी रह सकता है लेकिन उसकी गति काफी धीमी हो सकती है। यह गति वैश्विक वित्तीय संकट से पहले की तुलना में धीमी रहने वाली थी और भूआर्थिक कारणों से इसकी प्रकृति क्षेत्रीय रह सकती है।
आर्टिफिशल इंटेलिजेंस सेवा व्यापार में वृद्धि को लेकर चौंका सकती है लेकिन अब तक इसका प्रभाव अस्पष्ट है। मौजूदा वैश्विक व्यापार व्यवस्था में संरक्षणवाद बढ़ रहा है और कोविड तथा यूक्रेन युद्ध ने आपूर्ति श्रृंखला को झटका दिया है। अपने देश में तथा मित्र देशों में उत्पादन करने के प्रयास किए जा रहे हैं खासतौर पर अहम रणनीतिक क्षेत्रों मसलन सेमीकंडक्टर चिप आदि के मामले में। हालांकि जिंस के मामले में तमाम प्रतिबंधों के बावजूद व्यापार बढ़ रहा है। रूसी तेल पर प्रतिबंध की नाकामी यही दिखाती है।
डब्ल्यूटीओ ने विवाद निपटाने के लिए अधिक औपचारिक प्रणाली पेश की। इसमें विशेषज्ञों की एक अपील संस्था शामिल है जो विवादों पर निर्णय करती है लेकिन अब वह व्यवस्था अब सही नहीं रही। उसने विकासशील देश जैसे दर्जे की इजाजत दी जिसने खास अवधि के लिए विशेष प्रकार की रियायतों की व्यवस्था की। दोहा दौर की वार्ता में समझौते के अभाव के बावजूद डब्ल्यूटीओ व्यवस्था ने सही ढंग से काम किया। हालांकि बाद में दिक्कत होने लगी।
चीन जैसे कुछ देशों खुद ही खुद को विकासशील देश बताया जाना अनुचित था क्योंकि उनके पास भारी भरकम व्यापार अधिशेष था। ध्यान रहे अब चीन दुनिया का सबसे बड़ा कारोबारी और दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। विशेष सब्सिडी वाले सरकारी उपक्रमों का इस्तेमाल भी एक मुद्दा था खासकर चीन के मामले में क्योंकि यह अनुचित लाभ देता है।
अमेरिका ने अपील संस्था में नए सदस्यों की नियुक्ति को रोक दिया है जिससे कामकाज प्रभावित हो रहा है। चीन और यूरोपीय संघ समेत 26 देशों के समूह ने एक वैकल्पिक प्रणाली तैयार की है जिसे बहुपक्षीय अंतरिम अपील मध्यस्थता समझौते (एमपीआईए) का नाम दिया गया है लेकिन उनके निर्णय उन पर लागू नहीं हैं जो इसके पक्ष नहीं हैं। उसने हाल के वर्षों में एकतरफा ढंग से शुल्क बढ़ा दिया गया और बाकियों ने प्रतिरोध किया जिसका असर डब्ल्यूटीओ की कार्यप्रणाली पर पड़ा।
बहुपक्षीय समझौतों पर प्रगति नहीं होने को लेकर हताशा का माहौल है। इसके लिए सहमति की आवश्यकता है इसलिए मतदान की व्यवस्था बनाने की मांग उठ रही है। भारत तथा कई विकासशील देशों ने ऐसे रवैयों का विरोध किया है। ई-कॉमर्स, निवेश संरक्षण और पर्यावरण तथा श्रम मानकों को लेकर भी कोई हल नहीं निकल पा रहा है।
बारहवीं मंत्रिस्तरीय कॉन्फ्रेंस में कुछ मुद्दों पर सहमति बनी मसलन मछलीपालन की सब्सिडी, महामारी को लेकर प्रतिक्रिया, खाद्य असुरक्षा और ई-कॉमर्स आदि अहम थे क्योंकि वे बहुपक्षीय थे और इन्होंने सबसे कठिन मुद्दों को हल करने की उम्मीद दी। परंतु तेरहवें सम्मेलन में इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई। सेवा क्षेत्र का व्यापार तेजी से बढ़ा और इसमें आगे और इजाफा होने की उम्मीद है। ई-कॉमर्स में टैरिफ पर 25 वर्ष की रोक को तेरहवें सम्मेलन में 2026 तक दो वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया। इसके जारी रहने की उम्मीद है।
अतीत में भारत को वैश्विक व्यापार समझौतों को बिगाड़ने वाला माना गया है जबकि उसने खुद को विकसित देशों के अनुकूल व्यवस्था में अपने तथा विकासशील देशों के हितों का बचाव करने वाले देश के रूप में देखा। वैश्विक व्यापार में धीमापन आने के बावजूद भारत का विकास विश्व निर्यात में हिस्सेदारी बढ़ाने की उसकी क्षमता पर निर्भर करता है। यह 1990 के 0.5 फीसदी से बढ़कर 2022 में 2.5 फीसदी हो गया और 2030 तक इसके चार फीसदी होने की उम्मीद है।
करीब दो अरब डॉलर के इस अनुमानित निर्यात में सेवा निर्यात की हिस्सेदारी आधी होगी। देश में संरक्षणवादी लॉबी के बढ़ने के बावजूद हमारे हित अधिक खुली विश्व व्यवस्था से जुड़े हुए हैं। संभव है कि डब्ल्यूटीओ अधिक खुली व्यापार व्यवस्था का उत्तर न रह जाए। भारत को मुक्त व्यापार समझौतों पर अधिक यकीन करना होगा। यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ और अमेरिका के साथ समझौते जरूरी होंगे। आरसेप में शामिल होना भी एक विकल्प है लेकिन तब भारतीय बाजार चीन के आयात से पट जाएगा।
यूरोपीय संघ की कार्बन बॉर्डर समायोजन प्रणाली तथा अमेरिका के उच्च टैरिफ के कारण बढ़ते संरक्षणवाद की आशंका के बीच और चीन के सब्सिडी आधारित निर्यात मॉडल पर काम करते रहने के कारण व्यापार नियमों पर वैश्विक सहमति बन पाने की संभावना बहुत कम है। वैश्विक समृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान के बावजूद डब्ल्यूटीओ बड़ी कारोबारी शक्तियों के लिए अनुकूल नहीं रह गया है और अगर कुछ नाटकीय नहीं घटित होता है तो यह अपने अंतिम पड़ाव पर है।
(लेखक जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनैशनल इकनॉमिक पॉलिसी के प्रतिष्ठित विजिटिंग स्कॉलर हैं)