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भूख के बारे में क्या बताते हैं आहार के आंकड़े

दो वक्त का भोजन मिलने का मतलब यह नहीं है कि भारत में खाद्य सुरक्षा की स्थिति सुधर गई है। विस्तार से बता रहे हैं

Last Updated- January 02, 2025 | 9:40 PM IST
India Ranks 111th in Global Hunger Index 2023, Faces Alarming Rate of Child Wasting
प्रतीकात्मक तस्वीर

विश्व में खाद्य सुरक्षा एवं पोषण की स्थिति (सोफी) की 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 2020 और 2022 के दरम्यान 7.4 करोड़ लोग अल्पपोषण के शिकार थे। इससे भारत में खाद्य असुरक्षा एवं भूख की स्थिति बयां होती है। 2023 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 125 देशों के बीच भारत को 111वां स्थान दिया गया। यह सूचकांक बताता है कि किस देश के बच्चों में बौनेपन, दुर्बलता की समस्या और पोषण की कमी बहुत अधिक है। इससे यह भी पता चलता है कि उस देश की आबादी को रोजाना पर्याप्त भोजन मयस्सर नहीं हो रहा है। इस इंडेक्स की रिपोर्ट पर मीडिया और राजनीतिक हलकों में बहस छिड़ गई है मगर इससे भारत में लगातार चली आ रही खाद्य असुरक्षा की चुनौती भी उजागर होती है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध आंकड़े तो बता रहे हैं कि बड़े स्तर पर लोग भूखे रहते हैं मगर यह आंकड़ा आसानी से नहीं मिलता कि रोज रात कितने लोगों को भूख पेट सोना पड़ता है। हाल ही में घरेलू खपत व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) 2022-23 के आंकड़े जारी किए गए, जिसमें सर्वेक्षण से तीस दिन पहले तक खाए गए आहार की संख्या बताई गई है। तय परिभाषा के मुताबिक ‘आहार’ पकाई गई एक या एक से अधिक खाद्य सामग्री होती है, जिसमें बड़ा भाग अनाज का होता है। सर्वेक्षण में दर्ज की गई आहार की संख्या से पता चल जाता है कि कितने लोग दिन में दो जून की रोटी नहीं खा पा रहे हैं यानी 30 दिन के भीतर 60 बार भोजन नहीं कर पा रहे हैं। जो एक महीन में 60 से कम बार आहार ले पा रहे हैं, उन्हें भूख का शिकार माना जाता है और उनका अनुपात जितना ज्यादा होता है, भूख की स्थिति भी उतनी ही तीव्र मानी जाती है।

सर्वेक्षण से पता चला कि पिछले 30 दिन में 60 से कम बार आहार करने वालों की संख्या कुल आबादी की महज 3.2 प्रतिशत थी यानी बेहद मामूली आबादी ही भूख से पीड़ित है। 90 प्रतिशत से अधिक लोगों ने रोजाना दो या तीन आहार के हिसाब से 60 से 90 आहार लिए। इससे पता चलता है कि ज्यादातर लोग पर्याप्त पोषण के लिए जरूरी या इससे अधिक भोजन की जरूरत आसानी से पूरी कर लेते हैं।

सर्वेक्षण में लोगों के दैनिक आहार के तरीके पर भी आंकड़े जुटाए गए हैं। इन आंकड़ों के अनुसार ज्यादातर लोग (56.3 प्रतिशत) रोजाना तीन बार भोजन करते हैं, जबकि 42.8 प्रतिशत दो बार भोजन करते हैं। केवल 0.1 प्रतिशत को रोजाना एक बार भोजन मिलता है और 0.8 प्रतिशत एक बार भी भोजन नहीं करते (इस समूह में नवजात शिशु सहित कई लोग हैं जो केवल दूध पर निर्भर रहते हैं)। कुल मिलाकर 99.1 प्रतिशत लोग रोजाना दो या तीन बार भोजन कर पाते हैं। रोजाना एक बार या बिल्कुल नहीं खाने वालों को छोड़ दें तो कुल आबादी का 97.5 प्रतिशत हिस्सा कम से कम सर्वेक्षण से पहले 30 दिन की अवधि में 60 बार भोजन करता था। यह जरूरी नहीं है कि एक महीने में जिन 2.5 प्रतिशत लोगों ने 60 बार भोजन नहीं किया उनके पास आय या भोजन की कमी थी। कई बार लोग स्वेच्छा से भी भोजन नहीं करते हैं। यह समझना जरूरी है कि ‘आहार’ या भोजन में स्नैक्स, नाश्ता या अन्य हल्के जलपान नहीं आते हैं। इससे संकेत मिलता है कि भारत में भूख की समस्या काफी कम है और भोजन की बुनियादी जरूरत पूरी हो जा रही है।

यह विश्लेषण दर्शाता है कि रोजाना दो बार भोजन की परिभाषा के अनुसार भारत में भूख की समस्या तुलनात्मक रूप से कम है यानी आबादी के बड़े हिस्से की खाद्य जरूरतें मोटे तौर पर पूरी हो पा रही हैं। बेशक ऐसे लोगों की तादाद कम है, जिन्हें रोजाना दो बार से कम भोजन मिलता है मगर आंकड़ों को बारीकी से देखने पर तस्वीर कुछ अलग नजर आती है। 140 करोड़ आबादी वाले देश में 2.5 प्रतिशत हिस्सा 3.5 करोड़ लोगों के बराबर है, जो एक बड़ा आंकड़ा है। इसमें उस 6.7 प्रतिशत आबादी को भी जोड़ लें, जो पूरे महीने दिन में दो बार भोजन नहीं कर पाती तो संख्या बढ़कर 9.38 करोड़ तक पहुंच जाती है। प्रतिशत में ये आंकड़े भले ही कम लग सकते हैं मगर असल आंकड़े भारी भरकम हैं। सोफी 2024 रिपोर्ट में भूख के बारे में जानकारी नहीं है मगर इसमें यह जरूर कहा गया है कि 7.4 करोड़ लोगों में पोषण की कमी है। इससे खाद्य असुरक्षा की समस्या सामने आती है।

घरेलू खपत व्यय सर्वेक्षण 2022-23 में आहार की गुणवत्ता पर विचार नहीं किया गया, जबकि यह बहुत मायने रखती है। भूख को पूरी तरह समझने के लिए भोजन की मात्रा ही नहीं उसमें मौजूद पोषण की जानकारी मिलना भी जरूरी है। इसलिए भोजन की खपत और दिन में उसकी आवृत्ति अहम जानकारी उपलब्ध कराती है मगर आंकड़ों में भोजन की सामग्री और गुणवत्ता के बारे में विस्तृत जानकारी की कमी खलती है। खाद्य असुरक्षा और आहार में मौजूद पोषण के बारे में कुछ कहने के लिए यह जानकारी जरूरी है। इसलिए भूख और खाद्य असुरक्षा का आकलन अलग-अलग होना चाहिए क्योंकि भूख भोजन की मात्रा से जुडी है और खाद्य असुरक्षा उसकी गुणवत्ता यानी उसमें मौजूद पोषण से। उपलब्ध आंकड़े भूख से छुटकारे का संकेत देते हैं मगर जरूरी नहीं कि ये खाद्य सुरक्षा भी साबित करते हों। उसका पता करने के लिये कितनी बार का भोजन के बजाय उसके घटकों और खाद्य विविधता की जांच करना जरूरी है।

घरेलू खपत व्यय सर्वेक्षण 2022-23 से निकले भोजन के आंकड़े भारत में आहार की उपलब्धता पर रोशनी डालते हैं मगर भूख और खाद्य असुरक्षा अब भी पेचीदा मसले हैं। भूख की तीव्रता या गंभीरता पर विश्वसनीय आंकड़े नहीं होना बड़ी चुनौती है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 78वें चरण (2020-21) के सर्वेक्षण में परिवारों की खाद्य असुरक्षा पर आंकड़े जुटाए गए। उसमें यह भी पूछा गया कि परिवार के किसी सदस्य को पैसे या संसाधनों की कमी की वजह से पिछले 30 दिन में किसी एक वक्त भूखा तो नहीं रहना पड़ा। लेकिन इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए। कितने वक्त का भोजन मिला, यह पूछने से कुछ जानकारी हो जाती है मगर गहरी समझ के लिए भोजन की मात्रा, गुणवत्ता और पोषण की विस्तृत जानकारी जरूरी है।

भारत में केंद्र एवं राज्य सरकारों गरीबों को निःशुल्क अनाज उपलब्ध कराती हैं मगर खाद्य सुरक्षा का असली मतलब पोषक तत्वों से भरपूर और स्थायी भोजन से है। भूख पूरी तरह खत्म करने के लिए हमें ऐसी नीतियां चाहिए, जो पोषक तत्वों से भरपूर भोजन के वितरण, उपलब्धता तय करने और उसे किफायती रखने में मददगार हो सकें। इसके लिए क्षेत्रीय विषमताओं की जानकारी होनी चाहिए और उनके हिसाब से कारगर समाधान तैयार होने चाहिए।

(वाचस्पति शुक्ला सरदार पटेल इंस्टीट्यूट ऑफ इकनॉमिक ऐंड सोशल रिसर्च और संतोष कुमार दास इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आणंद में सहायक प्राध्यापक हैं)

First Published - January 2, 2025 | 9:33 PM IST

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