राजनीतिक दलों के प्रचार अभियान का जिम्मा संभाल रही विज्ञापन एजेंसियां रेडियो चैनलों पर इन दलों का प्रचार कराने की तैयारी कर रही हैं।
वहीं, इन चैनलों पर चुनाव प्रचार को मंजूरी मिलने के लिए अभी चुनाव आयोग के फैसले का इंतजार किया जा रहा है और सभी निगाहें फिलहाल इसी ओर लगी हुई हैं। फीवर एफएम की नैशनल सेल्स हेड पल्लवी बर्मन कहती हैं, ‘इस मंजूरी को लेकर अभी कुछ अनिश्चितता बनी हुई है। अगर इसको मंजूरी दी जाती है तो इससे सभी को फायदा पहुंचेगा। रेडियो चैनलों को भी राजनीतिक दलों के ‘विज्ञापन बजट’ का 2 से 4 फीसदी हिस्सा मिल सकता है।
रेडियो चैनलों से जुड़ी पल्लवी ही एकमात्र अधिकारी नहीं हैं जो इसको लेकर बहुत आशाएं लगाए हुए हैं। इंडस्ट्री में लगभग हर कोई ऐसा ही अनुमान लगाए हुए है। 93.5 रेड एफएम के मुख्य परिचालन अधिकारी अब्राहम थॉमस कहते हैं, ‘रेडियो स्थानीय स्तर पर बहुत फायदा पहुंचा सकता है।
मुझे उम्मीद है कि रेडियो के महत्व को समझते हुए इस इंडस्ट्री को राजनीतिक दलों के कुल विज्ञापन बजट में से 10 फीसदी तक तो मिल ही सकता है। ‘ रेडियो इंडस्ट्री के जानकारों का मानना है कि गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में रेडियो चैनलों को और अधिक राजनीतिक विज्ञापन मिल सकते हैं।
बिग 92.7 एफएम के मुख्य परिचालन अधिकारी तरुण कत्याल कहते हैं, ‘चुनावों के लंबे दौर में रेडियो चैनल राजनीतिक दलों के विज्ञापन से 30 करोड़ रुपये तक की कमाई कर सकते हैं। ‘ हालांकि उन्होंने उस एजेंसी का नाम बताने से तो इनकार कर दिया जिसने उनसे संपर्क किया था लेकिन इतना कहा कि एक रेडियो चैनल एक दिन में 10 से 15 पॉलिटिकल स्पॉट प्रसारित कर सकता है।
इसके अलावा एक घंटे में 4 विज्ञापन प्रसारित करने की भी गुंजाइश दिखती है। कत्याल का कहना है, ‘प्रिंट और टेलीविजन की तुलना में रेडियो की पहुंच बहुत व्यापक है और यह बात इस माध्यम के हक में जाती है। बराक ओबामा ने अमेरिकी चुनावों में रेडियो का बखूबी इस्तेमाल किया, भारतीय राजनेता भी ऐसा कर सकते हैं। ‘
वैसे रेडियो इंडस्ट्री ने सूचना प्रसारण मंत्रालय में इस मामले को लेकर लॉबिंग की है। मंत्रालय ने भी इंडस्ट्री को आगे बढ़ने के लिए हरी झंडी दिखा दी है। फिलहाल सबकी नजरें ‘निर्वाचन सदन’ यानि चुनाव आयोग के दफ्तर से आने वाले फैसले पर टिकी हुई हैं।
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने चार साल पहले ऑल इंडिया रेडियो के कॉमर्शियल एडवरटाइजिंग कोड के आलोक में रेडियो पर राजनीतिक विज्ञापनों पर रोक लगा दी थी। आयोग का मानना था कि ये अभियान इस कोड का मखौल उड़ा रहे हैं।
फीवर एफएम की बर्मन का कहना है, ‘पिछले कुछ वक्त में नियामक संस्था के अभाव में मंत्रालय ने भी राजनीतिक विज्ञापनों को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है। लेकिन जब टेलीविजन पर इसको मंजूरी मिल चुकी है तो रेडियो के मामले में भी ऐसा ही करना चाहिए। ‘
कांग्रेस के प्रचार अभियान का जिम्मा संभाल रही एजेंसी क्रेयोन्स के अध्यक्ष रंजन बरगोटिया कहते हैं कि रेडियो पर अभियान चलाने से राजनीतिक दलों को फायदा पहुंचेगा। इस माध्यम के जरिये उनका संदेश बड़े तबके तक जाएगा।
उनका कहना है, ‘रेडियो के साथ कई फायदे हैं। मसलन, अनपढ़ आदमी तक भी संदेश चला जाता है। रेडियो की पहुंच 99 फीसदी तक है। इसके चलते हमें युवाओं, शहरी और ग्रामीण आबादी के लिए विशेष अभियान तैयार करने में भी मदद मिलेगी। ऐसे वक्त में जब प्रिंट मीडिया में विज्ञापन की दरें बहुत ज्यादा हैं, रेडियो हमारा मददगार साबित हो सकता है। ‘