राजू (काल्पनिक नाम) के पिता कई गुनाह के जुर्म में जेल के सलाखों के पीछे अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं।
राजू के दो दोस्त भी काफी समय से अपने पिता से नहीं मिल पाए हैं क्योंकि वे भी कई गैरकानूनी गतिविधियों के लिए गुनाहगार साबित हो चुके हैं।
इन अनाथ बच्चों की जिंदगी को बेहतर बनाने का बीड़ा उठाया है स्कूल ऑफ द वर्ल्ड कोलकाता ने। केवल इन बच्चों की ही नहीं बल्कि कोलकाता की झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लगभग 700 बच्चों की जिंदगी में शिक्षा की रोशनी फैलाने की कोशिश हो रही है।
यह कोशिश इन गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया कराने के लिए की जा रही है ताकि ये एक सामान्य जिंदगी बिता सकें। स्कूल ऑफ द वर्ल्ड कोलकाता एक ट्रस्ट है जिसने इस शहर में दो प्री-प्राइमरी और कोचिंग स्कूल खोलने की पहल की है। इस ट्रस्ट का लक्ष्य दक्षिण कोलकाता के टौलीगंज इलाके के गरीब बच्चों की स्वास्थ्य सुविधाओं और शैक्षणिक स्तर को ऊपर उठाना है।
इस ट्रस्ट के इलाकों में कालाबगान, बोरोबगान, खास महल समेत स्लम एरिया के लगभग 94 वार्ड शामिल हैं। दक्षिणी कोलकाता के जॉयजीत दास मेमोरियल स्कूल में 300 बच्चें और कोलकाता से छह किमी दूर गंगा सागर आईलैंड के गंगा सागर पाठशाला में 400 बच्चे पढ़ते हैं।
पांच साल पहले इन स्कूलों की स्थापना शिमंती दास नाम की एक शिक्षिका ने की थी। उन्होंने इस स्कूल का नाम अपने बेटे जॉयजीत के नाम पर रखा जिसका देहांत 15 साल की उम्र में हो गया था। जॉयजीत की मौत के बाद दास को मानसिक आघात पहुंचा। एक दिन उन्होंने अपने पड़ोस में कुछ बच्चों को खेलते हुए देखा और उसके बाद यह फैसला कर लिया कि वह बच्चों के लिए कुछ जरूर करेंगी।
जॉयजीत दास मेमोरियल स्कूल में 5 साल पहले महज 34 बच्चे थे लेकिन अब प्री प्राइमरी क्लासेज के लिए 132 विद्यार्थी हो गए हैं। प्री प्राइमरी क्लास में 4 घंटे की पढ़ाई होती है जिसके जरिए बच्चों को औपचारिक स्कूली पढ़ाई के लिए तैयार किया जाता है। इन्हीं बच्चों में से लगभग 168 बच्चों को इस शहर के सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाया गया है।
दास का कहना है, ‘हमारी कोशिश है कि जिन बच्चों ने अभी स्कूल जाना शुरू किया है उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी न हो और वे स्कूल जाना न छोड़े। इसके लिए हमने कोचिंग की व्यवस्था की है ताकि वे अपने होमवर्क को पूरा कर सकें।’
बकौल दास जॉयजीत दास स्कूल के लिए फिलहाल 1 हजार वर्ग फीट जमीन ही है लेकिन स्कूल एरिया के लिए पर्याप्त जमीन पाने के लिए आवेदन कर दिया गया है। दास के मुताबिक शुरुआत में उन्हें नजदीक के स्लम में जाकर इस स्कूल के बारे में बताना पड़ता था। लेकिन अब स्थितियां बदली हैं, लोग इस स्कूल के बारे में जानने लगे हैं।
इस स्कूल को स्माइल फाउंडेशन ऑफ इंडिया, हेल्गो इव- हैमबर्ग,जर्मनी और दी अल्फा फाउंडेशन से फंड और डोनेशन भी मिलने लगा है। दास का कहना है, ‘इस पहल को अंजाम तक पहुंचाने के लिए हर एक साल औसतन 12 लाख रुपये की जरूरत होती है। इसके अलावा अल्फा फाउंडेशन बच्चों के लिए भोजन का इंतजाम भी करती है।’
इस स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों को 15 हजार से 35 सौ रुपये प्रतिमाह वेतन के तौर पर दिए जाते हैं। शिमंती दास को जॉयजीत दास मेमोरियल स्कूल के लिए शांतिरखा कमिटी ने मुफ्त जमीन मुहैया कराई है।