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उपभोक्ताओं व कारोबारी क्षेत्र में भरोसे की कमी

दुनिया में मची उथल-पुथल से भारत में पूंजी प्रवाह पर असर पड़ सकता है। वित्त वर्ष 2025 के पहले दस महीनों में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) कम होकर 1.4 अरब डॉलर रह गया

Last Updated- April 28, 2025 | 11:00 PM IST
AI

वैश्विक व्यापार युद्ध के बीच भारत की अर्थव्यवस्था दूसरे देशों से बेहतर स्थिति में नजर आ रही है क्योंकि विदेशी व्यापार में इसकी भागीदारी ज्यादा नहीं है। मगर यह भी सच है कि दुनिया के देश एक-दूसरे से ज्यादा जुड़े हैं और इसीलिए भारत भी अनिश्चितताओं से बेअसर नहीं रह सकता। व्यापार युद्ध शुरू होने से पहले ही भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर कमजोर पड़ने लगी थी। उपभोग पर खर्च नहीं हो रहा और निजी क्षेत्र से निवेश भी सुस्त बना हुआ है। ऐसे में वैश्विक व्यापार युद्ध से भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान और कम हो सकता है।

आर्थिक वृद्धि से जुड़ी चिंताओं के बीच अच्छी खबर है – नरम मुद्रास्फीति। इस कारण भारतीय रिजर्व बैंक ने अब अपना ध्यान आर्थिक वृद्धि तेज करने पर लगा दिया है और वह रीपो दर में 50 आधार अंक की कटौती भी कर चुका है। ब्याज दरें घटाने के साथ केंद्रीय बैंक ने अपना रवैया उदार भी बना लिया है, जिससे भविष्य में ब्याज दरों में और कटौती का संकेत मिलता है।

वित्त वर्ष 2025 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो उससे पहले के दो वित्त वर्षों की औसत 8.4 प्रतिशत वृद्धि से कम है। इसके लिए चुनावों के कारण सरकारी व्यय में सुस्ती को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। निजी क्षेत्र से अधिक निवेश नहीं आना भी एक वजह रही। साथ ही शहरी क्षेत्रों में उपभोग पर खर्च कम हुआ है. हां, ग्रामीण क्षेत्र में उपभोग लगातार बढ़ रहा है। वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में जीडीपी में तेज वृद्धि दिख सकती है। सरकारी निवेश में तेजी और महाकुंभ के कारण बढ़े व्यय से जीडीपी को दम मिल सकता है। मगर इतने से ही काम नहीं चलेगा क्योंकि रोजगार की स्थिति उत्साहजनक नहीं है और उपभोक्ता भी खर्च से हिचक रहे हैं। निजी क्षेत्र से निवेश पर भी अनिश्चितता है।

वित्त वर्ष 2026 में आयकर बोझ में कमी और मुद्रास्फीति नरम रहने से उपभोग में बढ़ोतरी हो सकती है। इस साल मॉनसून भी सामान्य रहने का अनुमान लगाया गया है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में सुधार जारी रहना चाहिए। ब्याज दरें कम होने से भी आर्थिक वृद्धि दर को मजबूती देने में मदद मिलेगी। मगर भारतीय अर्थव्यवस्था को सहारा देने वाले कुछ सकारात्मक पहलू वैश्विक स्तर पर अनिश्चितताओं से कमजोर पड़ सकते हैं। अमेरिका को वस्तु निर्यात भारत के जीडीपी का महज 2 प्रतिशत रहने और अन्य देशों की तुलना में शुल्क (26 प्रतिशत) कम रहने से हमारा अनुमान है कि ऊंचे शुल्क जीडीपी में 0.2-0.3 प्रतिशत चोट ही कर पाएंगे।

हां, व्यापार युद्ध के परोक्ष असर गंभीर हो सकते हैं। वैश्विक वृद्धि दर सुस्त पड़ने से भारत के निर्यात पर असर होगा, जिसमें सेवाओं का निर्यात भी शामिल है। पिछले छह साल में देश से वस्तु निर्यात में 6 प्रतिशत सालाना चक्रवृद्धि हुई है मगर सेवाओं (आईटी एवं आईटी समर्थित सेवाओं और वैश्विक क्षमता केंद्रों) का निर्यात 12 प्रतिशत दर से बढ़ा है। वैश्विक वृद्धि दर कमजोर रही तो भारत से सेवाओं का निर्यात भी घट सकता है। आईटी एवं आईटी समर्थित क्षेत्रों का रोजगार सृजन में काफी योगदान होता है, इसलिए इन क्षेत्रों में कमजोरी आने से रोजगार बाजार और उपभोक्ताओं के उत्साह पर प्रतिकूल असर हो सकता है।

दुनिया में मची उथल-पुथल से भारत में पूंजी प्रवाह पर असर पड़ सकता है। वित्त वर्ष 2025 के पहले दस महीनों में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) कम होकर 1.4 अरब डॉलर रह गया, जो वित्त वर्ष 2024 की समान अवधि में 11.5 अरब डॉलर रहा था। शुद्ध विदेशी संस्थागत निवेश (एफआईआई) भी वित्त वर्ष 2025 में 2.7 अरब डॉलर के साथ कमजोर रहा। वित्त वर्ष 2024 में यह 41 अरब डॉलर रहा था। वित्त वर्ष 2026 में भी पूंजी प्रवाह कमजोर दिख सकता है। अनिश्चित आर्थिक माहौल को देखते हुए निजी निवेश भी सुस्त रहने की आशंका है। हमें वित्त वर्ष 2026 में आर्थिक वृद्धि दर कम होकर 6.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है। अमेरिकी ने एशिया के कुछ देशों पर अधिक शुल्क लगा दिए हैं, जिनसे भारत के लिए कुछ अवसर जरूर दिख रहे हैं। मगर इन अवसरों का लाभ उठाने के लिए सरकार को सुधार कार्यक्रम तेज करने होंगे।

पिछले कुछ महीनों में आर्थिक वृद्धि से जुड़ी चिंताएं और गहराने लगी हैं मगर मुद्रास्फीति ने राहत दी है। अक्टूबर 2024 में 6.2 प्रतिशत तक पहुंचने के बाद मार्च 2025 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति कम होकर 3.3 प्रतिशत रह गई। खाद्य मुद्रास्फीति में कमी का इसमें बड़ा योगदान रहा और मुख्य मुद्रास्फीति भी लगभग 4 प्रतिशत के सहज स्तर पर रही। इस साल मॉनसून में सामान्य से अधिक वर्षा के अनुमान और दुनिया में जिंसों की कीमतें नरम पड़ने से वित्त वर्ष 2026 में मुद्रास्फीति नियंत्रण में रह सकती है। पिछले साल की तुलना में दुनिया में तेल के दाम लगभग 15 प्रतिशत कम हो गए हैं। मगर भू-राजनीतिक टकरावों के कारण वैश्विक आपूर्ति व्यवस्था में बाधा की आशंका पर सतर्क रहने की जरूरत है। मौसम से जुड़ी बाधाएं और उनके खाद्य मुद्रास्फीति पर असर भी जोखिम पैदा कर सकते हैं।

व्यापार युद्ध के बीच रुपये में तेज गिरावट आई तो आयात के कारण महंगाई आ सकती है। मगर खाद्य मुद्रास्फीति कमजोर पड़ने और मुख्य मुद्रास्फीति नियंत्रण में रहने से हमें मुद्रास्फीति से जुड़े जोखिमों पर ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। चालू वित्त वर्ष में रुपये में भी कोई बड़ी एवं लंबी गिरावट आती नहीं दिख रही क्योंकि अमेरिका की आर्थिक वृद्धि दर पर खतरा मंडराने से डॉलर मजबूती खो सकता है।

रिजर्व बैंक चालू वित्त वर्ष में ब्याज दरें 50 आधार अंक और घटा सकता है। व्यापार युद्ध के कारण वैश्विक आर्थिक वृद्धि पर असर हुआ तो दरों में कटौती का सिलसिला लंबा चल सकता है। अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के लिए मुश्किलें और बढ़ सकती हैं क्योंकि अमेरिका में आर्थिक वृद्धि से जुड़ी चिंता और मुद्रास्फीति से जुड़े जोखिम अब बढ़ गए हैं। अगर फेडरल रिजर्व ने आर्थिक वृद्धि को प्राथमिकता देते हुए 2025 में ब्याज दरों में कटौती जारी रखी तो रिजर्व बैंक भी दरों में लंबे समय तक कटौती कर सकता है। ब्याज दरें घटने पर भारतीय अर्थव्यवस्था को राहत मिलेगी मगर वैश्विक उथल-पुथल के बीच उपभोक्ताओं और कारोबार का डगमगाया विश्वास चिंता का सबब बने रहेंगे।

(लेखिका केयरएज रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री हैं)

 

First Published - April 28, 2025 | 10:20 PM IST

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